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साहित्याकाश के केंद्र में रहा है वो एक नाम, अपनी-अपनी लेखनी... अपने-अपने राम

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Published : Feb 20, 2022, 6:57 PM IST

रमते कणे कणे इति रामः' यानी कण-कण में जिनका वास है, वही राम हैं. शायद यही वजह है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम सदियों से साहित्य के केंद्र में रहे हैं. कला जगत में भी समय-समय पर भगवान राम को लेकर फिल्म आदि के निर्माण होते रहे हैं. पुरातन काल में संतों ने अपनी वाणी के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में अहम योगदान दिया. वहीं, भक्तिकाल और आधुनिक काल में भी राम को कई परिदृश्यों में रूपायित किया गया है. लेखनी में आज हम बात करने जा रहे हैं, साहित्य में अपने-अपने राम की....

Lord Shri Ram in Literature
साहित्य में राम.

हैदराबाद: कहते हैं राम की महिमा अपरंपार है, यही वजह है कि सदियों से समाज और साहित्य के केंद्र में हमेशा राम रहे हैं. साहित्य में समय-समय पर राम के विविध रूप को रूपायित किया गया है. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि राम के ऊपर जितनी रचनाएं ((Lord Shri Ram in Literature)) सम्भव हुई हैं, शायद ही किसी अन्य आराध्य देवी-देवताओं पर हुई हों. साहित्याकाश में मर्यादा पुरुषोत्तम राम को विविध रूपों में रुपायित किया गया है. साहित्य में राम के स्वरूप को अलग-अलग रूपों में उकेरा गया है.

हालांकि राम के इन स्वरूपों को सीमाओं में बांध पाना बहुत ही मुश्किल है, क्योंकि भगवान श्री राम सीमातीत हैं. ऐसे में लेखकों की लेखनी से निकले श्री राम के विभिन्न रूप कुछ इस प्रकार हैं. सबसे पहले बात करते हैं वाल्मीकि कृत रामायण में राम के चरित्र को लेकर. रामायण में राम को एक साधारण, लेकिन उत्तम पुरुष के रूप में ही चित्रित किया है.

नीलाम्बुजश्यामलकोमलांग सीतासमारोपितवामभागम्‌।

पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्‌॥3॥

अर्थात, वाल्मीकि लिखते हैं नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, सीताजी जिनके वाम भाग में विराजमान हैं और जिनके हाथों में अमोघ बाण और सुंदर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी भगवान रामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूं.

Lord Shri Ram in Literature
वाल्मीकि के राम.

अब बात करते हैं महान साहित्यकार और संत गोस्वामी तुलसीदास के राम की. कहते हैं जब कहते हैं जन्म के समय तुलसीदास रोये नहीं थे बल्कि उनके मुंह से राम शब्द निकला था और मुंह में 32 दांत थे. इस अद्भुत बालक को देखकर माता-पिता काफी चिंतित थे. तुलसीदास राम के अनन्य भक्त थे. तुलसीदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राम के उस मंगलकारी रूप को समाज के सामने प्रस्तुत किया, जो संपूर्ण जीवन को विपरीत धाराओं और प्रवाहों के बीच संगति प्रदान कर उसे आगे बढ़ाने में सहायक है. कहा जा सकता है कि तुलसीदास ने राम भक्ति के निरूपण को अपने साहित्य का उद्देश्य बनाया.

मंगल भवन अमंगल हारी।

द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी।।

होइहि सोइ जो राम रचि राखा।

को करि तर्क बढ़ावै साखा॥

Lord Shri Ram in Literature
तुलसीदास के राम.

अर्थात, जो सुख के सागर हैं, मंगल करने वाले और अमंगल दूर करने वाले हैं, वो दशरथ नंदन श्री राम हैं वो मुझपर अपनी कृपा करें. इसके साथ ही तुलसी दास लिखते हैं. जीवन में वैसा ही होगा जैसा भगवान राम ने रचा है. फिर क्यों हम बेकार में सोच कर अपना वक्त बर्बाद करें. इसे कोई टाल भी नहीं सकता, जिसे भगवान राम ने रच दिया है.

भक्तिकाल में राम को केंद्र में रखकर कई कालजयी रचनाएं लिखी गई. एक ओर तुलसी सगुण रूप की उपासना करते हैं तो वहीं दूसरी ओर अख्खड़ फक्कड़ और वाणी के डिकेटेट्र कबीर समाज में व्याप्त बाह्याडंबर मिटाने के लिए भक्तिकाल में निर्गुण राम का सहारा लेते हैं. एक ओर कबीर लिखते हैं, 'कबीरा कुत्ता राम का, मोतिया मेरा नाम । गले राम की जेवरी, जित खैंचे तित जाऊँ' अर्थात कबीर कहते हैं कि मैं तो राम का कुत्ता (भक्त) हूं, मेरे गले में राम नाम की जंजीर पड़ी है, वह जिधर ले जाते हैं मैं ऊधर ही चला जाता हूं. इसके अलावा कबीर कहते हैं...

घाट-घाट राम बसत हैं भाई, बिना ज्ञान नहीं देत दिखाई।

आतम ज्ञान जाहि घट होई, आतम राम को चीन्है सोई।

कस्तूरी कुण्डल बसै , मृग ढूंढ़े वन माहि।

ऐसे घट - घट राम हैं, दुनिया खोजत नाहिं ।

Lord Shri Ram in Literature
कबीरदास के राम.

कबीर कहते हैं कि जिस तरह से कस्तूरी हिरण की नाभि में होता है, लेकिन इससे अनजान हिरण उसकी सुगन्ध के कारण चारों ओर ढूंढता फिरता है. ठीक ऐसे ही राम यानी ईश्वर भी प्रत्येक मनुष्य के हृदय में निवास करते हैं, लेकिन उन्हें कोई ढूंढ नहीं पाता. उन्हें ढूंढने के लिए मंदिर और मस्जिद आदि तीर्थ स्थानों पर जाते हैं.

इसके अलावा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त 'साकेत' में कुछ इस तरह से भगवान राम को रुपायित करते हैं...

'राम तुम मानव हो, ईश्वर नहीं हो क्या? विश्व में रमे हुए नहीं, सभी कहीं हो क्या? तब मैं निरीश्वर हूं ईश्वर क्षमा करे, तुम न रमो तो मन तुम में रमा करे.'

अर्थात, राम ने ईश्वर होते हुए भी मानव का रूप धारण कर मानव जाति को मानवता का पाठ पढ़ाया.

वहीं, मैथिलीशरण गुप्त यशोधरा में कहते हैं...

राम, तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है।

कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है।

Lord Shri Ram in Literature
मैथिलीशरण गुप्त के राम.

कहा जा सकता है कि यशोधरा में मैथिलीशरण गुप्त ने राम के आदर्शमय महान जीवन को बखूबी उकेरा है. उनकी रचनाओं में राम के विविध रूप दिखाई देते हैं.

कहते हैं छायावादी चतुष्टयी में से एक प्रसिद्ध साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने तो भगवान श्री राम पर लिखते हुए बहुत ही भावुक हो उठे थे. निराला 'राम की शक्ति पूजा' में लिखते हैं.

रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखा

अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर।

आज का तीक्ष्ण शरविधृतक्षिप्रकर, वेगप्रखर,

शतशेल सम्वरणशील, नील नभगर्जित स्वर,

.......................................

राघव लाघव रावण वारणगत युग्म प्रहर,

उद्धत लंकापति मर्दित कपि दलबल विस्तर,

Lord Shri Ram in Literature
निराला के राम.
Lord Shri Ram in Literature
निराला के राम.

राम की बात हो और मशहूर शायर अल्लामा इक़बाल की बात न हो ये भला कैसे हो सकता है. अल्लामा इक़बाल ने राम के नाम एक नज़्म ‘एमाम-ए-हिंद राम’ लिखकर गंगा-जमुनी तहजीब का परिचय दिया. जिस पर उस दौर में काफी चर्चा हुईं और आज भी होती हैं. इक़बाल लिखते हैं....

लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिंद

सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्ता-ए-मग़रिब के राम-ए-हिंद

ये हिन्दियों की फ़िक्र-ए-फ़लक-रस का है असर

रिफ़अत में आसमाँ से भी ऊँचा है बाम-ए-हिंद

Lord Shri Ram in Literature
अल्लामा इक़बाल के राम.

वहीं, बाबरी विध्वंस पर मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी की नज़्म 'राम का दूसरा वनवास' ने काफी सुर्खियां बटोरी. इस नज़्म के बाद एक ओर उनकी आलोचना हुई तो दूसरी ओर काफी तारीफ भी हुई.

राम बनवास से जब लौटकर घर में आए

याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए

रक्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा

छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा

इतने दीवाने कहा श्रीराम ने सोचा होगा

इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आए.

Lord Shri Ram in Literature
कैफ़ी आज़मी के राम.

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि लेखकों ने समय के हिसाब से साहित्य में राम को विविध रूपों को रूपायित किया गया है. जिसमें उनके विविध स्वरूपों को उकेरा गाया है. वाल्मीकि ने रामायण में राम को एक आदर्श पुत्र, भाई और पति के रूप में चित्रित किया है. वहीं, इसके अलावा मराठी, असमी, उड़िया, बंगाली, कश्मीरी, तमिल और कन्नड़ आदि भाषाओं में भी भगवान राम पर रचनाएं लिखी गई हैं. इतना ही नहीं विश्व साहित्य में भी राम को केंद्र में रखकर कई रचनाएं सृजित की गई हैं.

ये भी पढ़ें: किस्सा सियासत का: हिमाचल का वो मुख्यमंत्री जो इस्तीफा देकर सीधा फिल्म देखने चला गया

हैदराबाद: कहते हैं राम की महिमा अपरंपार है, यही वजह है कि सदियों से समाज और साहित्य के केंद्र में हमेशा राम रहे हैं. साहित्य में समय-समय पर राम के विविध रूप को रूपायित किया गया है. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि राम के ऊपर जितनी रचनाएं ((Lord Shri Ram in Literature)) सम्भव हुई हैं, शायद ही किसी अन्य आराध्य देवी-देवताओं पर हुई हों. साहित्याकाश में मर्यादा पुरुषोत्तम राम को विविध रूपों में रुपायित किया गया है. साहित्य में राम के स्वरूप को अलग-अलग रूपों में उकेरा गया है.

हालांकि राम के इन स्वरूपों को सीमाओं में बांध पाना बहुत ही मुश्किल है, क्योंकि भगवान श्री राम सीमातीत हैं. ऐसे में लेखकों की लेखनी से निकले श्री राम के विभिन्न रूप कुछ इस प्रकार हैं. सबसे पहले बात करते हैं वाल्मीकि कृत रामायण में राम के चरित्र को लेकर. रामायण में राम को एक साधारण, लेकिन उत्तम पुरुष के रूप में ही चित्रित किया है.

नीलाम्बुजश्यामलकोमलांग सीतासमारोपितवामभागम्‌।

पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्‌॥3॥

अर्थात, वाल्मीकि लिखते हैं नीले कमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, सीताजी जिनके वाम भाग में विराजमान हैं और जिनके हाथों में अमोघ बाण और सुंदर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी भगवान रामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूं.

Lord Shri Ram in Literature
वाल्मीकि के राम.

अब बात करते हैं महान साहित्यकार और संत गोस्वामी तुलसीदास के राम की. कहते हैं जब कहते हैं जन्म के समय तुलसीदास रोये नहीं थे बल्कि उनके मुंह से राम शब्द निकला था और मुंह में 32 दांत थे. इस अद्भुत बालक को देखकर माता-पिता काफी चिंतित थे. तुलसीदास राम के अनन्य भक्त थे. तुलसीदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राम के उस मंगलकारी रूप को समाज के सामने प्रस्तुत किया, जो संपूर्ण जीवन को विपरीत धाराओं और प्रवाहों के बीच संगति प्रदान कर उसे आगे बढ़ाने में सहायक है. कहा जा सकता है कि तुलसीदास ने राम भक्ति के निरूपण को अपने साहित्य का उद्देश्य बनाया.

मंगल भवन अमंगल हारी।

द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी।।

होइहि सोइ जो राम रचि राखा।

को करि तर्क बढ़ावै साखा॥

Lord Shri Ram in Literature
तुलसीदास के राम.

अर्थात, जो सुख के सागर हैं, मंगल करने वाले और अमंगल दूर करने वाले हैं, वो दशरथ नंदन श्री राम हैं वो मुझपर अपनी कृपा करें. इसके साथ ही तुलसी दास लिखते हैं. जीवन में वैसा ही होगा जैसा भगवान राम ने रचा है. फिर क्यों हम बेकार में सोच कर अपना वक्त बर्बाद करें. इसे कोई टाल भी नहीं सकता, जिसे भगवान राम ने रच दिया है.

भक्तिकाल में राम को केंद्र में रखकर कई कालजयी रचनाएं लिखी गई. एक ओर तुलसी सगुण रूप की उपासना करते हैं तो वहीं दूसरी ओर अख्खड़ फक्कड़ और वाणी के डिकेटेट्र कबीर समाज में व्याप्त बाह्याडंबर मिटाने के लिए भक्तिकाल में निर्गुण राम का सहारा लेते हैं. एक ओर कबीर लिखते हैं, 'कबीरा कुत्ता राम का, मोतिया मेरा नाम । गले राम की जेवरी, जित खैंचे तित जाऊँ' अर्थात कबीर कहते हैं कि मैं तो राम का कुत्ता (भक्त) हूं, मेरे गले में राम नाम की जंजीर पड़ी है, वह जिधर ले जाते हैं मैं ऊधर ही चला जाता हूं. इसके अलावा कबीर कहते हैं...

घाट-घाट राम बसत हैं भाई, बिना ज्ञान नहीं देत दिखाई।

आतम ज्ञान जाहि घट होई, आतम राम को चीन्है सोई।

कस्तूरी कुण्डल बसै , मृग ढूंढ़े वन माहि।

ऐसे घट - घट राम हैं, दुनिया खोजत नाहिं ।

Lord Shri Ram in Literature
कबीरदास के राम.

कबीर कहते हैं कि जिस तरह से कस्तूरी हिरण की नाभि में होता है, लेकिन इससे अनजान हिरण उसकी सुगन्ध के कारण चारों ओर ढूंढता फिरता है. ठीक ऐसे ही राम यानी ईश्वर भी प्रत्येक मनुष्य के हृदय में निवास करते हैं, लेकिन उन्हें कोई ढूंढ नहीं पाता. उन्हें ढूंढने के लिए मंदिर और मस्जिद आदि तीर्थ स्थानों पर जाते हैं.

इसके अलावा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त 'साकेत' में कुछ इस तरह से भगवान राम को रुपायित करते हैं...

'राम तुम मानव हो, ईश्वर नहीं हो क्या? विश्व में रमे हुए नहीं, सभी कहीं हो क्या? तब मैं निरीश्वर हूं ईश्वर क्षमा करे, तुम न रमो तो मन तुम में रमा करे.'

अर्थात, राम ने ईश्वर होते हुए भी मानव का रूप धारण कर मानव जाति को मानवता का पाठ पढ़ाया.

वहीं, मैथिलीशरण गुप्त यशोधरा में कहते हैं...

राम, तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है।

कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है।

Lord Shri Ram in Literature
मैथिलीशरण गुप्त के राम.

कहा जा सकता है कि यशोधरा में मैथिलीशरण गुप्त ने राम के आदर्शमय महान जीवन को बखूबी उकेरा है. उनकी रचनाओं में राम के विविध रूप दिखाई देते हैं.

कहते हैं छायावादी चतुष्टयी में से एक प्रसिद्ध साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने तो भगवान श्री राम पर लिखते हुए बहुत ही भावुक हो उठे थे. निराला 'राम की शक्ति पूजा' में लिखते हैं.

रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखा

अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर।

आज का तीक्ष्ण शरविधृतक्षिप्रकर, वेगप्रखर,

शतशेल सम्वरणशील, नील नभगर्जित स्वर,

.......................................

राघव लाघव रावण वारणगत युग्म प्रहर,

उद्धत लंकापति मर्दित कपि दलबल विस्तर,

Lord Shri Ram in Literature
निराला के राम.
Lord Shri Ram in Literature
निराला के राम.

राम की बात हो और मशहूर शायर अल्लामा इक़बाल की बात न हो ये भला कैसे हो सकता है. अल्लामा इक़बाल ने राम के नाम एक नज़्म ‘एमाम-ए-हिंद राम’ लिखकर गंगा-जमुनी तहजीब का परिचय दिया. जिस पर उस दौर में काफी चर्चा हुईं और आज भी होती हैं. इक़बाल लिखते हैं....

लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिंद

सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्ता-ए-मग़रिब के राम-ए-हिंद

ये हिन्दियों की फ़िक्र-ए-फ़लक-रस का है असर

रिफ़अत में आसमाँ से भी ऊँचा है बाम-ए-हिंद

Lord Shri Ram in Literature
अल्लामा इक़बाल के राम.

वहीं, बाबरी विध्वंस पर मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी की नज़्म 'राम का दूसरा वनवास' ने काफी सुर्खियां बटोरी. इस नज़्म के बाद एक ओर उनकी आलोचना हुई तो दूसरी ओर काफी तारीफ भी हुई.

राम बनवास से जब लौटकर घर में आए

याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए

रक्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा

छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा

इतने दीवाने कहा श्रीराम ने सोचा होगा

इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आए.

Lord Shri Ram in Literature
कैफ़ी आज़मी के राम.

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि लेखकों ने समय के हिसाब से साहित्य में राम को विविध रूपों को रूपायित किया गया है. जिसमें उनके विविध स्वरूपों को उकेरा गाया है. वाल्मीकि ने रामायण में राम को एक आदर्श पुत्र, भाई और पति के रूप में चित्रित किया है. वहीं, इसके अलावा मराठी, असमी, उड़िया, बंगाली, कश्मीरी, तमिल और कन्नड़ आदि भाषाओं में भी भगवान राम पर रचनाएं लिखी गई हैं. इतना ही नहीं विश्व साहित्य में भी राम को केंद्र में रखकर कई रचनाएं सृजित की गई हैं.

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