शिमला: हिमाचल में लंबे समय के बाद हुई बारिश-बर्फबारी सेब सहित अन्य फसलों के लिए अमृत समान है. फरवरी महीने में हुई बारिश-बर्फबारी के बाद सेब और अन्य फलों के अच्छे उत्पादन के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स का पीरियड फिर से शुरू हो गया है. हालांकि इस बार दिसंबर महीने में ही कड़ाके की ठंड पड़ने से चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू हो गया था. प्रदेश में ऐसा 20 साल बाद हुआ था कि दिसंबर महीने में चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू हुआ था, लेकिन जनवरी महीने में बारिश और बर्फबारी न होने से तापमान में वापस बढ़ोतरी दर्ज की गई. जिस कारण चिलिंग आवर्स का पीरियड रुक गया था. प्रदेश में इस दौरान चिलिंग आवर्स के केवल 300 घंटे ही पूरे हो पाए थे. अब बारिश-बर्फबारी के बाद फिर से चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू होने से बागवानों में अच्छी पैदावार की उम्मीद जगी है. बशर्ते आने वाले दिनों में भी मौसम यू ही बना रहे और बारिश-बर्फबारी होते रहे. वहीं, विशेषज्ञों ने बारिश के बाद अभी सेब के तौलिए का काम शुरू न करने की सलाह दी है. इससे जमीन से नमी गायब हो सकती है.
बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने बताया, "प्रदेश भर में बारिश-बर्फबारी होने से चिलिंग आवर्स का रुका हुआ पीरियड शुरू हो गया है. अगर आने वाले दिनों में बारिश और बर्फबारी होती है तो फलों के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स जल्दी पूरे हो सकते हैं."
किन फलों को कितने चिलिंग आवर्स की जरूरत
सेब सहित अन्य फलों के लिए भी चिलिंग आवर्स का पूरा होना जरूरी है. विशेषज्ञों के मुताबिक सेब की रेड डिलीशियस वैरायटी के लिए सबसे अधिक 1200 घंटे के चिलिंग आवर्स की जरूरत होती है. वहीं, रॉयल सेब के लिए 1000 से 1100 घंटे के चिलिंग आवर्स पूरा होना जरूरी है. स्पर वैरायटी सेब के लिए 800 से 900 घंटे व गाला प्रजाति सेब के लिए 700 से 800 घंटे तक के चिलिंग आवर्स पूरा होना आवश्यक है. इसी तरह से स्टोन फ्रूट में प्लम के लिए 300 से 400 घंटे, खुबानी के लिए 300 से 400 घंटे, नाशपाती के लिए 700 से 800 घंटे व अंगूर के लिए 300 से 400 घंटे और चेरी के लिए 1200 घंटे के चिलिंग आवर्स का पूरा होना जरूरी है. तभी सेब सहित स्टोन फ्रूट का उत्पादन अच्छा रहता है.
फलों के लिए चिलिंग आवर्स | |
फल | जरूरी चिलिंग आवर्स |
रेड डिलीशियस वैरायटी सेब | 1200 घंटे |
रॉयल सेब | 1000 से 1100 घंटे |
स्पर वैरायटी सेब | 800 से 900 घंटे |
गाला प्रजाति सेब | 700 से 800 घंटे |
प्लम | 300 से 400 घंटे |
खुबानी | 300 से 400 घंटे |
नाशपाती | 700 से 800 घंटे |
अंगूर | 300 से 400 घंटे |
चेरी | 1200 घंटे |
क्या है चिलिंग आवर्स?
बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने बताया कि सर्दियों के मौसम में जब एक हफ्ते तक 24 घंटे तापमान सामान्य तौर पर 0 से 7 डिग्री सेल्सियस रहता है, तो उसे चिलिंग आवर्स कहते हैं. इससे ही चिलिंग आवर्स का पीरियड शुरू होता है. हिमाचल में सेब सहित अन्य फलों के चिलिंग आवर्स का पीरियड दिसंबर महीने से मार्च महीने तक रहता है. इस दौरान दिसंबर और जनवरी महीने में कड़ाके की ठंड रहने से चिलिंग आवर्स पूरा होने की संभावना रहती है. इसके लिए दिसंबर महीने की बर्फबारी किसी संजीवनी से कम नहीं है. बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने बताया, "चिलिंग आवर्स के पूरा होने से पौधों में एक ही समय पर एक बराबर फ्लोरिंग होती है. जिससे फूल सही तरह से खिलता है और फलों की सेटिंग भी अच्छी होने की संभावना रहती है."
6 हजार करोड़ की बागवानी अर्थव्यवस्था
हिमाचल देश में फल राज्य के नाम से मशहूर है. हिमाचल में बागवानी अर्थव्यवस्था 6 हजार करोड़ की है. वहीं, बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने बताया कि हिमाचल में फलों की पैदावार सर्दियों में पड़ने वाली बर्फ और कड़ाके की ठंड पर निर्भर है. सर्दियों के मौसम में सेब समेत स्टोन फ्रूट जैसे कि बादाम, आड़ू, आम, स्ट्रॉबेरी, प्लम, लीची, बेर, खुबानी और खजूर आदि की अच्छी पैदावार के लिए चिलिंग आवर्स का पूरा होना बहुत जरूरी है. प्रदेश में दिसंबर और जनवरी महीने में पड़ने वाली कड़ाके की ठंड से चिलिंग आवर्स के पूरा होने की पूरी संभावना रहती है. जिस भी साल सर्दियों में चिलिंग आवर्स का पीरियड पूरा होता है, फ्लोरिंग अच्छी होती है और गर्मियों में भी मौसम साफ देता है, उस साल प्रदेश में फलों का उत्पादन काफी अच्छा रहता है.
हिमाचल के इतने हेक्टेयर में होती है बागवानी
हिमाचल प्रदेश में बागवानी के तहत कुल 2,36,950 हेक्टेयर क्षेत्र आता है. जिसमें सेब का हिस्सा करीब 85 फीसदी है. जबकि बाकी हिस्से में अन्य फलों का उत्पादन किया जाता है. प्रदेश में बागवानी का लगातार विस्तार हो रहा है. हिमाचल में 2023-24 में 1,16,240 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब के तहत आता है, जबकि 27,373 हेक्टेयर में स्टोन फ्रूट के तहत है. ड्राई फ्रूट का उत्पादन 9,277 हेक्टेयर में किया जाता है. सिट्रस फ्रूट के तहत बागवानी का 26,432 हेक्टेयर एरिया कवर होता है. प्रदेश में वर्ष 1950-51 में 400 हेक्टेयर में सेब की पैदावार होती थी, ये क्षेत्र 2023-24 में अब बढ़कर में 1,16,240 हेक्टेयर तक फैल गया है. मगर चिंता की बात ये है कि प्रदेश में बागवानी के तहत क्षेत्र तो लगातार बढ़ रहा है, लेकिन उत्पादन में इतनी अधिक बढ़ोतरी नजर नहीं आ रही है. जिसमें पिछले कई सालों से मौसम में हो रहा बदलाव एक मुख्य कारण है.
हिमाचल में बागवानी का क्षेत्र- 2,36,950 हेक्टेयर (2023-24) | |
फल | क्षेत्र (हेक्टेयर में) |
सेब | 1,16,240 |
स्टोन फ्रूट | 27,373 |
सिट्रस फ्रूट | 26,432 |
ड्राई फ्रूट | 9,277 |
बागवान अभी न करें ये काम
बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने का कहना है, "बारिश के बाद अभी बगीचे में तोलिए का काम अभी शुरू न करें. इससे नमी गायब हो सकती है. अगर आने वाले दिनों में और बारिश होती है तभी तोलिए का कार्य शुरू किया जाना चाहिए."
- सेब के बगीचे में तौलिए का काम न करें.
- पौधों के आस-पास घास से भी छेड़छाड़ न करें, इससे नमी कम हो सकती है.
- जरूरी होने पर ही पौधों के पास हल्की कांट छांट करें.
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