शिमला: भारत-चीन सीमा पर तनाव के चलते देश से कई चीनी कंपनियों के टेंडर रद्द किए जा रहे हैं. हिमाचल में भी चीनी कंपनियों का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं है. शिमला की महत्वपूर्ण ठियोग-हाटकोटी सड़क के निर्माण कार्य में लगी चीन की लांगजियान कंपनी बीच में काम छोड़कर चली गई थी, जिसके कारण दशकों तक सड़क का काम अटका रहा.
चीन की सड़क निर्माण कंपनी लांगजियान इस रोड़ का काम कर रही थी. सेब सीजन की लाइफ लाइन कहे जाने वाले 80 किलोमीटर लंबी ठियोग-हाटकोटी सड़क पर चीनी कंपनी की सुस्ती भारी पड़ी थी. 10 साल से भी अधिक समय तक इस सड़क के निर्माण का काम पूरा नहीं हो पाया था, जिसके बाद विश्व बैंक की फंडिंग से बन रही इस सड़क के लिए बैंक ने और फंड देने से साफ इनकार कर दिया था.
323 करोड़ की लागत का है प्रोजेक्ट:
कारण ये है कि विश्व बैंक ने इस सड़क मार्ग को हर पहलू से कंपलीट करने के लिए 30 जून की समय सीमा तय की थी. अभी भी सड़क का 20% काम बाकी है. कुल 323 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट की बाकी बची हुई 70 करोड़ रुपये की लागत अब हिमाचल सरकार को वहन करनी होगी. हालांकि बीजेपी नेता और स्थानीय विधायक नरेंद्र बरागटा के अनुसार मामले में तत्कालीन प्रदेश सरकार की नकारात्मक भूमिका रही है. इस समय सड़क निर्माण का ठेका गुड़गांव की कंपनी सीएंडसी के पास दे दिया गया.
बीजेपी व कांग्रेस सड़क का काम पूरा करने में रही नाकाम:
ये सड़क कई विवादों में रही है. बीजेपी व कांग्रेस की सरकारें इसका काम समय पर पूरा करने में नाकाम रही. हालात यहां तक पहुंचे कि निर्माण के काम को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल हुई. हाईकोर्ट ने इसके निर्माण पर नजर रखने के लिए कमेटी बनाने का आदेश दिया. कमेटी की रिपोर्ट समय-समय पर हाईकोर्ट में पेश की जाती रही, लेकिन विश्व बैंक की तरफ से घोषित 30 जून 2017 की डैडलाइन पर हिमाचल सरकार खरा नहीं उतर पाई.
डैडलाइन बढ़ाने को तैयार नहीं विश्व बैंक:
सड़क निर्माण में हो रही देरी से नाराज विश्व बैंक न तो डैडलाइन को 30 जून से आगे बढ़ाने को तैयार हुआ और न ही निर्माण लागत 323 करोड़ की टेंडर लागत से अधिक रकम लगाने को राजी हुआ. विश्व बैंक के अधिकारियों ने हिमाचल सरकार को 30 जून की डैडलाइन तक हुए काम की रिपोर्ट 30 अक्टूबर तक हर हाल में जमा करवाने को कहा है. फिलहाल इस रोड प्रोजेक्ट पर अभी 80 % काम हुआ है और 20 % काम अभी बाकी है.
वीरभद्र सिंह ने खुद कई बार निर्माण के काम की सीमक्षा की:
इस मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट भी अपने स्तर पर मॉनिटरिंग कर रहा है. खुद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह सड़क निर्माण की समय-समय पर समीक्षा करते रहे हैं. राज्य का लोक निर्माण विभाग भी वीरभद्र सिंह के ही पास था. फिलहाल राज्य सरकार ने अब प्रोजेक्ट की डैडलाइन 6 महीने और बढ़ाने की तैयारी की है. इस प्रस्ताव पर हालांकि अभी कैबिनेट से मंजूरी ली जानी बाकी है. इस दशा में काम संदर्भ में प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.
सीएंडसी कंपनी से काम करवाना चाहती है राज्य सरकार:
राज्य सरकार की मंशा है कि बचा 20% काम भी गुडग़ांव की सीएंडसी कंपनी से करवाया जाए. ये बात अलग है कि इस अवधि में होने वाले काम की लागत हिमाचल सरकार को वहन करनी होगी. 20% काम की लागत 70 करोड़ रुपये आएगी. कंपनी इसके लिए पुराने रेट पर काम को राजी है और इसके लिए कंपनी ने वादा किया है कि वो किसी भी परिस्थिति में किसी भी अदालत में नहीं जाएगी. सीएंडसी कंपनी से राज्य सरकार ने लिखित में ये आश्वासन लिया है.
निर्माण कार्य से नाखुश बीजेपी नेता गए थे हाईकोर्ट:
हिमाचल की पूर्व सरकार के मंत्री नरेंद्र बरागटा इस सड़क के निर्माण में हो रही देरी पर याचिका के माध्यम से अदालत पहुंचे थे. उनकी याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने निगरानी कमेटी बनाई थी. इस सड़क का निर्माण शुरू से ही विवादों में रहा है.
बाद में सीएंडसी कंपनी को सौंपा था काम:
कांग्रेस से पहले बीजेपी सरकार सत्ता में थी, लेकिन सड़क का काम पूरा नहीं हुआ. इस सड़क के निर्माण के लिए वैश्विक टेंडर बुलाए गए थे. शुरुआत में चीन की कंपनी लांगजियान ने इसका ठेका लिया. बाद में वीजी संबंधी दिक्कतों व लेबर की कमी के कारण चीन की कंपनी काम छोड़कर भाग गई. फिर इसका काम गुडग़ांव की चड्डा एंड चड्डा (सीएंडसी) को सौंपा गया.
विश्व बैंक बढ़ा चुका था मियाद:
इससे पहले विश्व बैंक ने समय से काम पूरा न होने पर भी हिमाचल सरकार के आग्रह को देखते हुए काम की मियाद जून 2017 तक बढ़ाई थी. पहले ये मियाद जून 2016 में खत्म हो रही थी. उस समय सड़क का केवल 40% काम ही हुआ था. विश्व बैंक की टीम खुद 2 बार इस सड़क के निर्माण की समीक्षा कर चुकी थी.
समय पर मंडी नहीं पंहुचती सेब की उपज:
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने भी कई बार इस सड़क प्रोजेक्ट की अधिकारियों के साथ समीक्षा की थी. शिमला जिला का सारा सेब कारोबार इस सड़क के आसरे टिका है. बरसात में सेब सीजन पीक पर होता है, लेकिन उस समय यह सड़क बदहाल हो जाती है. कीचड़ भरी इस सड़क से सेब से लदे ट्रक मुश्किल से गुजरते हैं. इससे बागवानों की उपज समय पर मंडियों में नहीं पहुंच पाती.