शिमला: इस वित्तीय वर्ष में मार्च से भी तक जयराम सरकार (Jairam government) ने अभी तक कोई कर्ज नहीं लिया. प्रदेश की हालत यह कि हिमाचल सरकार (Himachal Government) को हर छोटे और बड़ा काम करने के लिए कर्ज लेना पड़ता है, लेकिन इस बार जीएसटी (GST) की राशि से प्रदेश सरकार को राहत मिली है. फिलहाल कर्मचारियों को सैलरी और पैंशन अदा करने के लिए सरकार को कर्ज नहीं लेना पड़ेगा. अब सरकार की रणनीति यह है कि जब कर्मचारियों के लिए नया वेतन आयोग लागू किया जाएगा उस समय सरकार कर्ज लेगी.
पिछले वित्त वर्ष में जीएसटी क्षतिपूर्ति के रूप में बकाया धनराशि के रूप में केंद्र से 1271 करोड़ रुपये हिमाचल सरकार को मिले हैं. पिछले वित्त वर्ष में जीएसटी शॉर्ट फल के तौर पर केंद्र सरकार (central government) से मिलने वाली वित्तीय मदद रुक गई थी. केंद्र सरकार ने अपने राजस्व में आई गिरावट के कारण इसे जारी करने से मना कर दिया था. इसके एवज में राज्यों को विकल्प दिया था कि वो लोन उठा सकते हैं. हिमाचल सरकार ने भी लोन का ही विकल्प चुन था. इसी बीच कुछ राज्यों की तरफ से आपत्ति जताई गई थी, जिसके बाद केंद्र ने खुद ही लोन लेकर राज्यों को देने का निर्णय लिया था.
दरअसल प्रदेश पर साठ हजार करोड़ रुपए का कर्ज है. देवभूमि के पास खुद के आर्थिक संसाधन बहुत कम हैं. प्रदेश सरकार आर्थिक सहारे के लिए केंद्रीय परियोजनाओं, बाह्य वित्त पोषित परियोजनाओं पर निर्भर रहती है. हिमाचल प्रदेश के बजट का बड़ा हिस्सा सरकारी कर्मियों के वेतन और पेंशन पर खर्च होता है. विकास के लिए सौ रुपए में से केवल 43.94 पैसे ही बचते हैं. अब पंजाब ने नया वेतन आयोग लागू कर दिया है.
वेतन आयोग के लिए हिमाचल पंजाब पैटर्न को फॉलो करता है. नए वेतन आयोग का सिफारिशों को लागू करने, डीए व अंतरिम राहत आदि के लिए हिमाचल को सालाना 5000 करोड़ रुपए और खर्च करने पड़ेंगे. इससे कर्ज का बोझ और बढ़ेगा. हिमाचल प्रदेश चाह कर भी कर्ज के बोझ को कम नहीं कर पा रहा है. सरकारी सैक्टर (government sector) में नियमित नियुक्तियों की बजाय कई जगह आउटसोर्स (outsource) का सहारा लिया जा रहा है, लेकिन खर्च पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है.
इस बार हिमाचल सरकार ने 50192 करोड़ रुपए का बजट पेश किया. पहली बार हिमाचल ने बजट में पचास हजार करोड़ रुपए का आंकड़ा पार किया. यदि इस बजट में सौ रुपए को मानक रखा जाए तो इसका अधिकांश हिस्सा सरकारी कर्मियों के वेतन और पेंशन पर ही खर्च होगा. इस सौ रुपए में सरकारी कर्मियों के वेतन पर 25.31 रुपए खर्च होंगे. इसी तरह पेंशन पर 14.11 रुपए खर्च होंगे. इसके अलावा हिमाचल को ब्याज की अदायगी पर 10 रुपए, लोन की अदायगी पर 6.64 रुपए चुकाने होंगे.
इन सारे खर्चों के बाद सरकार के पास विकास कार्यों के लिए महज 43.94 रुपए ही बचेंगे. हिमाचल का राजकोषीय घाटा 7789 करोड़ रुपए अनुमानित है. यह घाटा हिमाचल के सकल घरेलू उत्पाद का 4.52 प्रतिशत है. ये स्थिति चिंताजनक है. हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का बोझ 60544 करोड़ रुपए है. पिछले साल यानी 2020 में मार्च महीने तक यह आंकड़ा 56107 करोड़ रुपए था. यदि 2013-14 की बात करें तो कर्ज का यह बोझ 31442 करोड़ रुपए था, यानी आठ साल में ही यह दोगुना होने के करीब है.
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