शिमला: भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. दुनिया के सबसे बडे़ लोकतंत्र के लिये संविधान निर्माण कोई आसान काम नहीं था. इसके निर्माण में 2 साल 11 महीने और 17 दिन लगे. इस दौरान 165 दिनों में कुल 11 सत्र बुलाये गए. देश की आजादी के कुछ दिन बाद 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने संविधान का मसौदा तैयार करने के लिये डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन किया.
26 नवंबर 1949 को हमारा संविधान स्वीकार किया गया और 24 जनवरी 1950 को 284 सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर करके इसे अपनाया. इसके बाद जब 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के साथ संविधान सभा भंग कर दी गई. संविधान लेखन का कार्य पूरा होने के बाद इसके मुद्रण की बारी आई. इसके मुद्रण के लिए शिमला स्थित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस को उपयुक्त पाया.
ब्रिटिश काल में देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला की पहचान यूं तो कई ऐतिहासिक ईमारतों से की जाती है, लेकिन वर्ष 1872 में यहां स्थापित प्रिंटिग प्रेस की ईमारत का अलग ही महत्व है. शिमला में टूटीकंडी में यह प्रेस स्थापित की गई थी. यहां ब्रिटिशकाल में महत्वपूर्ण दस्तावेज प्रिंट होकर देश भर में पहुंचते थे.
इस प्रेस में उस जमाने के हिसाब से आधुनिक प्रिंटिंग मशीनें मौजूद थीं. वर्ष 1949 में संविधान के मुद्रण का काम पूरा हुआ. यह काम शिमला स्थित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस में पूरा हुआ. पुरानी दुर्लभ मशीनों के जरिए संविधान की प्रतियां मुद्रित (प्रिंट) की गईं. बाद में संविधान की पहली प्रति इसी प्रेस में रखी गई. छह दशक से अधिक समय से यह प्रति शिमला स्थित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस में सलीके से सहेज कर रखी गई है.
इसके लिए एक एंटीक शोकेस तैयार किया गया. पहली मुद्रित प्रति काले रंग के बेहद मजबूत व शानदार आवरण वाली है. अंग्रेजी में मुद्रित इस प्रति में कुल 289 पन्ने हैं. करीब चार किलो से अधिक वजनी इस प्रति के मोटे और चमकदार कागज के पन्नों पर अंग्रेजी में प्रिंट हुए शब्द इतने साल बीत जाने के बाद भी नए लगते हैं. इसके कवर पेज पर दि कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया लिखा है. अंतिम पन्ने पर दर्ज है-प्रिंटिड इन इंडिया बाई दि मैनेजर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस न्यू देल्ही. तब गवर्नमेंट ऑफ इंडिया प्रेस के मैनेजर देल्ही (तत्कालीन प्रयुक्त शब्द) में बैठते थे.
यह केवल एक पुस्तक ही नहीं है, बल्कि भारतीय जनमानस की सामूहिक चेतना का प्रतिबिंब है और इसकी पहली प्रति को सहेजे रखने का गौरव शिमला को हासिल है, यह प्रेस वर्ष 1872 में स्थापित की गई. यहां विदेशों से बड़ी और भारी मशीनों को मंगवाया गया. देश में स्थापित प्रिंटिंग प्रेस में यह सबसे पुरानी है. इसी कड़ी की एक प्रेस मिंटो रोड दिल्ली में है. शिमला में स्थित इस प्रेस में दुर्लभ किस्म की पुरानी प्रिंटिंग मशीनें हैं. इसके विशाल परिसर में घूमते हुए पुराने समय की भव्यता के दर्शन होते हैं.
कवि-लेखक डॉ. कुलराजीव पंत के अनुसार संविधान भारतीय लोकतंत्र की पवित्र पुस्तक है. इसमें दर्ज शब्द अर्थवान और प्राणवान हैं. लेकिन ब्रिटिश हुकूमत के समय देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला की जिस प्रिंटिंग प्रेस में भारत के संविधान की पहली प्रति प्रिंट हुई, मोदी सरकार उसी ऐतिहासिक प्रिंटिंग प्रेस को बंद करने जा रही है.
इस प्रेस को बंद करने के फैसले से एक युग का अध्याय बंद हो जाएगा. हालांकि ये पहला मौका नहीं है, जब किसी केंद्र सरकार ने इस प्रेस को बंद करने का फैसला लिया हो। इससे पहले 1986 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार व 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने भी इसे बंद करने का फैसला लिया था, लेकिन कर्मियों के विरोध के कारण ये फैसला टालना पड़ा.
केंद्र सरकार ने इस प्रिंटिंग प्रेस को 2017 में बंद कर दिया था. इस संस्थान को दिल्ली स्थित प्रेस में मर्ज कर दिया गया है. हलांकि अभी भी शिमला स्थित इस प्रेस में कुछ कर्मचारी मौजूद हैं, लेकिन यहां कोई काम काज नहीं होता है. यहां की पुरानी मशीनरी नीलाम कर दी गई हैं. कुछ नई मशीनें अभी भी यहां पर हैं, लेकिन इनपर भी कोई काम नहीं किया जाता है. केंद्र सरकार ने शिमला सहित देश की 12 केंद्रीय प्रिंटिंग प्रेस को बंद करने और उन्हें अन्य पांच प्रेस में समायोजित करने की योजना बनाई है. शिमला स्थित केंद्रीय प्रेस के कर्मचारियों का कहना है कि वे इस फैसले का विरोध करते हैं जिसके बाद यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है.