शिमला: हिमाचल प्रदेश में हर 10 में से 4 लोग मोटापे के शिकार हैं, जबकि 10 में से करीब 6 लोगों की तोंद निकली हुई है. यानी इन 6 लोगों का पेट बढ़ा हुआ है. ICMR-INDIAB की एक रिपोर्ट में ये चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. चौंकाने वाला खुलासा इसलिये क्योंकि एक आम धारणा है कि पहाड़ी लोग मोटे नहीं होते क्योंकि पहाड़ पर जीवन बहुत ही कठिन होता है. हर काम के लिए कई किलोमीटर की चढ़ाई या टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलना होता है. खेती से लेकर बागवानी और पानी लाने तक जैसे रोजमर्रा के काम में शारीरिक श्रम लगता है. ऐसे में शरीर के मोटे होने का तो सवाल ही नहीं उठता, लेकिन इस रिपोर्ट ने इस धारणा को धता बता दिया है. ये रिपोर्ट लैंसेट नाम की मेडिकल जर्नल में छपी है जो साफ इशारा करती है कि हिमाचल में मोटापा बढ़ रहा है और रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आए हैं वो काफी डराने वाले हैं.
38.7% लोग मोटे और 56% का पेट नॉर्मल नहीं- रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में 38.7 प्रतिशत लोग मोटापे (Generalized Obesity) के शिकार है. जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 28.6 प्रतिशत है. यानी औसतन देश से ज्यादा मोटापा हिमाचल में हैं. झारखंड में सबसे कम 11.6 फीसदी लोग मोटे हैं जबकि पुडुचेरी में सबसे ज्यादा 53.3 प्रतिशत लोग मोटापे के शिकार है. इसी तरह हिमाचल में 56.1% लोगों की तोंद निकली हुई है यानी ये लोग पेट के मोटापे से जूझ रहे हैं. ऐसे मामलों का राष्ट्रीय औसत 39.5% है यानी इस मामले में भी हिमाचल में औसतन ज्यादा लोगों का पेट निकला हुआ है. पेट के मोटापे से झारखंड में सबसे कम 18.4 प्रतिशत और पुंडुचेरी में सबसे ज्यादा 61.2 फीसदी लोग जूझ रहे हैं. रिपोर्ट में हिमाचल के लिए चिंता की बात ये भी है कि मोटापे से लेकर डायबिटीज और हायपरटेंशन यानी हाई बीपी के मरीज बढ़ रहे हैं. मोटापे और डायबिटीज के मामलों में ये राष्ट्रीय औसत से अधिक हैं.
13.5% लोग डायबिटीज से ग्रसित- डायबिटीज के मामले भी हिमाचल में राष्ट्रीय औसत से ज्यादा हैं. ICMR की इस स्टडी को हिमाचल में करने वाले IGMC शिमला के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. जितेंद्र मोक्टा ने बताया कि प्रदेश में 13.5 प्रतिशत लोग डायबिटीज से ग्रसित है, जबकि राष्ट्रीय औसत 11.4 प्रतिशत की है. उत्तर प्रदेश में सबसे कम 4.8 फीसदी और गोवा में सबसे ज्यादा 26.4 फीसदी लोग डायबिटीज से परेशान है. इसी तरह हिमाचल में 18.7 प्रतिशत लोग प्री डायबिटीज से जूझ रहे हैं. इसका राष्ट्रीय औसत 15.3 फीसदी है. मिजोरम में सबसे कम 6.1 फीसदी और सिक्किम में सर्वाधिक 31.3 फीसदी लोग प्री डायबिटीज से ग्रसित है.
हाइपरटेंशन का शिकार 35.3 प्रतिशत लोग- हिमाचल के 35.3 प्रतिशत लोग हाई बीपी (हाइपरटेंशन) से जूझ रहे हैं. इसकी नेशनल एवरेज 35.5 प्रतिशत है. हालांकि नेशनल एवरेज से मात्र 0.2 फीसदी ही कम है. लेकिन पहाड़ी इलाकों में इतना बीपी का बढ़ना हिमाचलियों की सेहत के लिए अच्छा नहीं है. हाइपरटेंशन के मामले में मेघालय में सबसे कम 24.3 फीसदी और पंजाब में सबसे ज्यादा 51.8 प्रतिशत लोग जूझ रहे हैं.
आखिर क्यों बढ़ रहा है मोटापा- कहते हैं कि मोटापा अपने साथ कई रोग लेकर आता है, लेकिन सवाल है कि हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में मोटापा क्यों बढ़ रहा है. मेडिसिन डिपार्टमेंट से जुड़े डॉ. जितेंद्र मोक्टा के मुताबिक 'पिछले दो दशक में हिमाचल के लोग आर्थिक रूप से मजबूत हुए हैं, खासकर सेब उत्पादन वाले क्षेत्र में, जिसकी वजह से शहर के साथ-साथ गांव के लोगों की दिनचर्या में बड़ा बदलाव आया है. घर की साफ-सफाई से लेकर खेतों में काम करने तक के लिए या तो मजदूरों पर निर्भरता बढ़ी है या फिर ज्यादातर काम मशीनों से हो रहा है. जिसके कारण फिजिकल एक्टिविटी बहुत कम हुई है. जो हिमाचल में मोटापे की मुख्य वजह है. इसके अलावा फूड हैबिट्स में भी बहुत बड़ा बदलाव आया है. पौष्टिक आहार की जगह वेस्टर्न डायट, जंक फूड, फास्ट फूड ने ले ली है. जिसमें कैलोरी बहुत होती है लेकिन पौष्टिकता नहीं होती. फल और सब्जियों की बजाय कार्बोहाइड्रेट युक्त खाना खाया जा रहा है. इस तरह का असंतुलित भोजन भी वजन बढ़ने की मुख्य वजह है. जो अपने साथ दूसरी बीमारियों को भी न्योता देता है.'
बच्चों हो रहे डायबिटीज का शिकार- आज मोटापे का शिकार हर उम्र के लोग हो रहे हैं और साथ में डायबिटीज से भी एक बड़ी आबादी ग्रसित है. लेकिन इसका असर सीधा बच्चों पर भी पड़ने लगा है. डॉ. मोक्टा कहते हैं कि टाइप-1 डायबिटीज सिर्फ बच्चों में और टाइप-2 एडल्ट में पाई जाती थी लेकिन आज स्कूल के बच्चों में भी टाइप-2 डायबिटीज, हाइपरटेंशन देखा जा रहा है और मोटापा इसकी सबसे बड़ी वजह है. इसकी सबसे बड़ी वजह बच्चों का फिजिकल एक्टिविटी से दूर होना है. घर से लेकर स्कूल तक बच्चों में फिजिकल एक्टिविटी बढ़ानी होगी. डॉ. मोक्ट की सलाह है कि सरकार को स्कूलों में रोजाना 60 मिनट की फिजिकल एक्टिविटी जरूर करवानी चाहिए. बिना खेल के मैदान के कोई भी स्कूल नहीं होना चाहिए. घर पर मोबाइल या वीडियो गेम खेलने से शारीरिक विकास नहीं होता, इसलिये वो बच्चों को घर में भी आउटडोर गेम्स में फोकस करवाने की सलाह अभिभावकों को देते हैं.
डॉ. मोक्टा इसके अलावा खान-पान के लिहाज से बच्चों को फास्ट फूड, जंक फूड, मिठाई, बैकरी आइटम की बजाय हेल्दी फूड जैसे दाल, सब्जी, फल, पनीर आदि चीजें खाने की सलाह देते हैं. मैदा युक्त समोसे, पकौड़े, मिठाई, बर्गर, पिज्जा या अन्य बेकरी प्रोडक्ट्स को बच्चों के लिए लिमिटेड करें. जूस की बजाय फल खाने पर जोर दें. डॉ. मोक्टा मानते हैं कि आज के दौर में जंक फूड, फास्ट फूड के बिना रहना बहुत मुश्किल है लेकिन इसकी लिमिट तय करना बहुत जरूरी है. घर में बना पौष्टिक आहार, फल, सब्जियां, पनीर आदि खाएं और साथ में कुछ फिजिकल एक्टिविटी जरूर करें.
डाइटीशियन याचना शर्मा बताती हैं कि आज मोटापा हर उम्र के लोगों में है. इसकी मुख्य वजह लाइफस्टाइल के साथ खाने-पीने की आदतों में आया बदलाव है. आज बच्चे ग्राउंड की बजाय के घर की चारदीवारी में मोबाइल या वीडियो गेम्स खेलते हैं. खान-पान में भी एक बड़ा हिस्सा फास्ट फूड और जंक फूड का होता है. वो भी टीवी या मोबाइल देखते हुए ही खाया जाता है. जिसमें पोषण या पौष्टिकता पर टेस्ट ही हावी रहता है. आजकल का यूथ भागदौड़ के बीच खाने के लिए वक्त नहीं निकाल पाते और जो वक्त मिलता है उसमें आसानी से उपलब्ध जंक फूड और फास्ट फूड खाता है. इसलिये सबसे ज्यादा जरूरी है खान-पान की आदतों को बदलना, क्योंकि ऐसा करने से पहले मोटापा और फिर दूसरी बीमारियां साथ आती है. अगर डायबिटीज और मोटापा एक साथ आ जाए तो समस्याएं और भी बढ़ सकती हैं. क्योंकि इससे किडनी और दिल की सेहत भी खराब हो सकती है. याचना सुबह-शाम वॉक करने की सलाह देती हैं, अगर सिटिंग जॉब है और घंटों बैठे रहना पड़ता है तो हर एक घंटे में अपनी सीट से उठकर कुछ कदम जरूर चलें और साथ में बैलेंस डाइट लें. ये कुछ कदम आपको हेल्दी बनाएंगे.
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