शिमलाः हिमाचल की राजनीति में प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह के बीच सियासी खींचतान से कई तल्ख मामले सामने आए. हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन का केस इसी तल्खी का नतीजा था, हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अब ये केस खत्म हो गया है, लेकिन अनुराग ठाकुर व HPCA पर पांच-पांच FIR हुई और कांग्रेस की तरफ से तीन दिग्गज नेता, (जो वकील भी हैं) इस केस में धूमल और अनुराग ठाकुर के खिलाफ कानूनी लड़ाई में उतरे थे.
वर्ष 2012 में हिमाचल में कांग्रेस की सरकार आई. वीरभद्र सिंह ने सत्ता में आने के बाद अपने से पहले की धूमल सरकार को घेरने के लिए एचपीसीए को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया. प्रेम कुमार धूमल व अनुराग ठाकुर को कानूनी पचड़ों में फंसाने के लिए वीरभद्र सिंह सरकार ने पानी की तरह पैसा बहाया.
यही नहीं, वीरभद्र सरकार ने एचपीसीए केस को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कांग्रेस के तीन बड़े नेताओं को सामने लाया. ये तीनों नेता वकालत से जुड़े बड़े नाम हैं. इनमें कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम व सलमान खुर्शीद का नाम शामिल है. इन्हें फीस के तौर पर मोटी रकम चुकाई गई. ये रकम सरकारी खाते से गई, लेकिन नतीजा अंत में ये निकला कि सुप्रीम कोर्ट ने एचपीसीए केस में आपराधिक षड्यंत्र वाली याचिका ही रद्द कर दी.
एचपीसीए पर पांच एफआईआर हुई. ये अनुराग ठाकुर व एचपीसीए पर अलग-अलग मामलों में की गई थी. मामले काफी पेचीदा भी रहे. पहले सुप्रीम कोर्ट में चल रहे इसी केस में एडवोकेट जनरल बिना सरकार का निर्णय लेकर गए. फिर जयराम सरकार ने कैबिनेट से फैसला लिया गया कि ये केस भी राजनीतिक आधार पर दर्ज मामलों की श्रेणी में आता है. इसके बाद आईएएस अधिकारी दीपक सानन के खिलाफ दी गई अभियोजन मंजूरी खारिज की गई, लेकिन प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ दी गई मंजूरी को वापस नहीं लिया गया. सुप्रीम कोर्ट में एफआईआर रद्द होने से अनुराग ठाकुर को बड़ी राहत मिली थी.
राजनीतिक मामलों में बड़े वकीलों की अकसर मौज रहती है. वीरभद्र सिंह के कई मामले भी कांग्रेस के बड़े नेता व वकील लड़ रहे हैं. उनमें कपिल सिब्बल व चिदंबरम का नाम शामिल है. ऐसे केस अकसर जनता की गाढ़ी कमाई से टैक्स के रूप में आए पैसों से लड़े जाते हैं, लेकिन इनका नतीजा अंत में कुछ नहीं निकलता है.
एचपीसीए केस भी इसी तरह का कहा जा सकता है. फिलहाल, नवंबर 2018 को सुनाए फैसले में जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस अशोक भूषण और अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि वे अपील को मंजूर करते हैं और एचपीसीए के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द की जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में हिमाचल हाईकोर्ट के उस फैसले को भी खारिज कर दिया था, जिसमें हिमाचल हाईकोर्ट के पूर्व सीजे जस्टिस मंसूर अहमद मीर और जस्टिस तरलोक चौहान ने एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था. इसी फैसले को एचपीसीए ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
पूर्व कांग्रेस सरकार के समय हाईकोर्ट ने 482 सीआरपीसी के तहत एफआईआर रद्द करने के आवेदन को खारिज कर दिया था और विजिलेंस ने अगले दिन ही धर्मशाला कोर्ट में इस केस में चालान पेश कर दिया था. इसके बाद एचपीपीए को सुप्रीम कोर्ट से स्टे मिला और इस केस में ट्रायल शुरू नहीं हो पाया.
हिमाचल में दिसंबर 2017 में सत्ता में आई जयराम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित में कहा था कि ये राजनीतिक मामला है और हमें इसे आगे नहीं बढ़ाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने बहस के बाद 1 अक्टूबर 2018 को इस बारे में फैसला सुरक्षित रखा था. वर्ष 2012 में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद विजिलेंस ने 1 अगस्त 2013 को एफआईआर नंबर 12-2013 के तहत धर्मशाला थाना में आपराधिक षडयंत्र रचकर सरकारी जमीन हथियाने का आरोप लगाते हुए केस दर्ज किया था. इसमें कुल 17 लोगों को आरोपी बनाया गया था. इनमें प्रेम कुमार धूमल, अनुराग ठाकुर, अरुण धूमल, अफसरों में दीपक सानन, अजय शर्मा और गोपाल चंद और शेष एचपीसीए के पदाधिकारी थे. फिलहाल, मामला खत्म हो गया है.