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SPECIAL: ज्ञान का एक ऐसा मंदिर जहां बिना जूतों के मिलता है प्रवेश, जमीन पर बैठकर अध्ययन करते हैं छात्र

भारतीय दर्शन में मां सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा गया है. परंपरा है कि ज्ञान के मंदिर में नंगे पांव प्रवेश करना चाहिए. इस परंपरा का पालन राजधानी शिमला के एक पुस्तकालय में हो रहा है. शिमला के चौड़ा मैदान में स्थित राज्य संग्रहालय के पुस्तकालय में इस परंपरा को निभाया जा रहा है.

HP state museum built in buddhist pattern
राज्य संग्रहालय का पुस्तकालय बना है बौद्ध मठों की तर्ज पर
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Published : Dec 13, 2019, 1:59 PM IST

Updated : Dec 13, 2019, 2:26 PM IST

शिमला: भारतीय दर्शन में मां सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा गया है. परंपरा है कि ज्ञान के मंदिर में नंगे पांव प्रवेश करना चाहिए. इस परंपरा का पालन राजधानी शिमला के एक पुस्तकालय में हो रहा है. शिमला के चौड़ा मैदान में स्थित राज्य संग्रहालय के पुस्तकालय में इस परंपरा को निभाया जा रहा है.

इस पुस्तकालय में प्राचीन गुरुकुल जैसा वातावरण है. यहां अध्ययन करने आने वालों को पुस्तकालय के बाहर ही जूते उतारने पड़ते हैं. खास बात यह है कि यहां बैठने के लिए कुर्सी मेज नहीं मिलेगा बल्कि जमीन पर ही बैठकर आपको अध्ययन करना होगा जो कि प्राचीन परंपरा और शिक्षा पद्धति का ही एक तरीका है.

वीडियो रिपोर्ट.

परंपरा के निर्वहन के पीछे की खास वजह

राज्य संग्रहालय के पुस्तकालय में इस परंपरा के निर्वहन के पीछे की खास वजह है. इस पुस्तकालय को पूरी तरह से मठ के जैसे तैयार किया गया है. वहीं, जिस तरह से मठ में जैसे भिक्षु नंगे पांव जमीन पर बैठकर अपना ध्यान और पाठ करते हैं. उसी तरह से इस पुस्तकालय में भी छात्र अपने जूते पुस्तकालय के बाहर खोल देते है. यहां विशेष रूप से जूट की पुलें रखी गई है, जिन्हें पहनकर छात्र इस पुस्तकालय में प्रवेश करते हैं.

पुस्तकालय में जमीन पर बैठकर ही छात्र अपना अध्ययन करते हैं. इस पुस्तकालय को पूरी तरह से लकड़ी के इस्तेमाल से तैयार किया गया है. प्रवेश द्वार पर जहां बौद्ध संस्कृति से जुड़े ड्रैगन और कमल का फूल, पत्तों की बेहद ही सुंदर नक्काशी की गई है, तो वहीं अंदर बैठ कर अध्ययन करने के लिए जो चौखतान बनाए गए है उनपर भी बेहद ही सुंदर नक्काशी की गई है.

इस पुस्तकालय का निर्माण किन्नौर के कारीगरों के हाथों से ही किया गया है. एक रोचक तथ्य यह भी है कि जब कारीगरों ने इस पुस्तकालय का काम किया था तो उस समय उन्होंने पूरी परंपराओं का निर्वहन किया था जिसमें दाढ़ी ना बनाना और दूसरे कई नियम शामिल थे. बता दें कि पुस्तकालय का निर्माण 2012 में शुरू हुआ था और 2014 में यह बनकर तैयार हो गया था.

शिमला राज्य संग्रहालय के उच्च अधिकारी हरि सिंह चौहान ने कहा कि इस पुस्तकालय की खासियत है कि इसे जिस पैटर्न पर तैयार किया गया है. साथ ही इस पुस्तकालय में किताबों का ऐसा संग्रह है जो हिमाचल के किसी और पुस्तकालय में नहीं है. पुस्तकालय में भारतीय कला के अलावा रशियन, ग्रीक, चाइनीज, जैपनीज आर्ट से जुड़ी किताबों का संग्रहण हैं जो शोधकर्ताओं के लिए बेहद फायदेमंद है.

वहीं पुस्तकालय में आने वाले पाठकों का कहना है कि इस पुस्तकालय का वातावरण पढ़ने के लिए बेहद अनुकूल है. यहां शांतिपूर्ण माहौल के साथ ही उन्हें इस तरह की किताबों का अध्ययन करने को मिलता है, जो किसी दूसरे पुस्तकालय में नहीं मिल पाता है. इस पुस्तकालय में आज भी पुरानी परंपराओं का निर्वहन हो रहा है जो यहां आने वाले शोधकर्ताओं और छात्रों को बेहद पंसद आता है. पुस्तकालय में इतिहास से जुड़ी किताबों के साथ ही यात्रा वृतांत, पुरातत्व, कला और हिमाचली इतिहास और धर्म से जुड़ी किताबों का बहुमूल्य संग्रहण उपलब्ध है.

राज्य संग्रहालय के इस पुस्तकालय के दरवाजे पर आठ बौध संस्कृति के प्रतिरूप में उकेरे गए हैं. वहीं, अंदर की सजावट भी बौद्ध मठों की तरह की गई है. दरवाजे पर जहां ड्रैगन बने हैं, वहीं फूल, पत्तों के साथ ही अन्य कई प्रतीक इस पर बनाए गए हैं.

ये भी पढ़ें: PWD ने किया श्राईकोटी मंदिर तक सड़क का निर्माण, क्रैश बैरियर ना होने के कारण श्रद्धालु परेशान

शिमला: भारतीय दर्शन में मां सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा गया है. परंपरा है कि ज्ञान के मंदिर में नंगे पांव प्रवेश करना चाहिए. इस परंपरा का पालन राजधानी शिमला के एक पुस्तकालय में हो रहा है. शिमला के चौड़ा मैदान में स्थित राज्य संग्रहालय के पुस्तकालय में इस परंपरा को निभाया जा रहा है.

इस पुस्तकालय में प्राचीन गुरुकुल जैसा वातावरण है. यहां अध्ययन करने आने वालों को पुस्तकालय के बाहर ही जूते उतारने पड़ते हैं. खास बात यह है कि यहां बैठने के लिए कुर्सी मेज नहीं मिलेगा बल्कि जमीन पर ही बैठकर आपको अध्ययन करना होगा जो कि प्राचीन परंपरा और शिक्षा पद्धति का ही एक तरीका है.

वीडियो रिपोर्ट.

परंपरा के निर्वहन के पीछे की खास वजह

राज्य संग्रहालय के पुस्तकालय में इस परंपरा के निर्वहन के पीछे की खास वजह है. इस पुस्तकालय को पूरी तरह से मठ के जैसे तैयार किया गया है. वहीं, जिस तरह से मठ में जैसे भिक्षु नंगे पांव जमीन पर बैठकर अपना ध्यान और पाठ करते हैं. उसी तरह से इस पुस्तकालय में भी छात्र अपने जूते पुस्तकालय के बाहर खोल देते है. यहां विशेष रूप से जूट की पुलें रखी गई है, जिन्हें पहनकर छात्र इस पुस्तकालय में प्रवेश करते हैं.

पुस्तकालय में जमीन पर बैठकर ही छात्र अपना अध्ययन करते हैं. इस पुस्तकालय को पूरी तरह से लकड़ी के इस्तेमाल से तैयार किया गया है. प्रवेश द्वार पर जहां बौद्ध संस्कृति से जुड़े ड्रैगन और कमल का फूल, पत्तों की बेहद ही सुंदर नक्काशी की गई है, तो वहीं अंदर बैठ कर अध्ययन करने के लिए जो चौखतान बनाए गए है उनपर भी बेहद ही सुंदर नक्काशी की गई है.

इस पुस्तकालय का निर्माण किन्नौर के कारीगरों के हाथों से ही किया गया है. एक रोचक तथ्य यह भी है कि जब कारीगरों ने इस पुस्तकालय का काम किया था तो उस समय उन्होंने पूरी परंपराओं का निर्वहन किया था जिसमें दाढ़ी ना बनाना और दूसरे कई नियम शामिल थे. बता दें कि पुस्तकालय का निर्माण 2012 में शुरू हुआ था और 2014 में यह बनकर तैयार हो गया था.

शिमला राज्य संग्रहालय के उच्च अधिकारी हरि सिंह चौहान ने कहा कि इस पुस्तकालय की खासियत है कि इसे जिस पैटर्न पर तैयार किया गया है. साथ ही इस पुस्तकालय में किताबों का ऐसा संग्रह है जो हिमाचल के किसी और पुस्तकालय में नहीं है. पुस्तकालय में भारतीय कला के अलावा रशियन, ग्रीक, चाइनीज, जैपनीज आर्ट से जुड़ी किताबों का संग्रहण हैं जो शोधकर्ताओं के लिए बेहद फायदेमंद है.

वहीं पुस्तकालय में आने वाले पाठकों का कहना है कि इस पुस्तकालय का वातावरण पढ़ने के लिए बेहद अनुकूल है. यहां शांतिपूर्ण माहौल के साथ ही उन्हें इस तरह की किताबों का अध्ययन करने को मिलता है, जो किसी दूसरे पुस्तकालय में नहीं मिल पाता है. इस पुस्तकालय में आज भी पुरानी परंपराओं का निर्वहन हो रहा है जो यहां आने वाले शोधकर्ताओं और छात्रों को बेहद पंसद आता है. पुस्तकालय में इतिहास से जुड़ी किताबों के साथ ही यात्रा वृतांत, पुरातत्व, कला और हिमाचली इतिहास और धर्म से जुड़ी किताबों का बहुमूल्य संग्रहण उपलब्ध है.

राज्य संग्रहालय के इस पुस्तकालय के दरवाजे पर आठ बौध संस्कृति के प्रतिरूप में उकेरे गए हैं. वहीं, अंदर की सजावट भी बौद्ध मठों की तरह की गई है. दरवाजे पर जहां ड्रैगन बने हैं, वहीं फूल, पत्तों के साथ ही अन्य कई प्रतीक इस पर बनाए गए हैं.

ये भी पढ़ें: PWD ने किया श्राईकोटी मंदिर तक सड़क का निर्माण, क्रैश बैरियर ना होने के कारण श्रद्धालु परेशान

Intro:नोट: ध्यानार्थ मोहित जी। खबर से संबंधित पूरा पैकेज शॉट्स, पीटीसी, वाकथ्रू, आधिकारिक बाइट, छात्रों की बाइट,पुस्तकालय के शॉट्स व्रैप एकाउंट से 10 दिसंबर को भेज दिए गए हैं।

भारतीय दर्शन में मां सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा गया है। परंपरा है कि ज्ञान के मंदिर में नंगे पांव प्रवेश करना चाहिए। इस परंपरा का पालन राजधानी शिमला के एक पुस्तकालय में हो रहा है। जी हां शिमला के चौड़ा मैदान में राज्य संग्रहालय के पुस्तकालय में इस परंपरा को निभाया जा रहा है। पुस्तकालय में प्राचीन गुरुकुल जैसा वातावरण है। यहां अध्ययन करने आने वालों को पुस्तकालय के बाहर ही जूते उतारने पड़ते है। खास बात तो यह है कि यहां बैठने के लिए कुर्सी मेज नहीं मिलेगा। जमीन पर बैठकर ही आपको अध्ययन करना होगा जो की प्राचीन परंपरा ओर शिक्षा पद्धति का ही एक तरीका है।


Body:इस पुस्तकालय में इस परंपरा के निर्वहन के पीछे की खास वजह है इस पुस्तकालय का मोनेस्ट्री पैटर्न पर तैयार होना। राज्य संग्रहालय के इस पुस्तकालय को पूरी तरह से मोनेस्ट्री पैटर्न पर तैयार किया गया है। जिस तरह से मोनेस्ट्री में मॉन्क्स नंगे पांव जमीन पर बैठकर अपना ध्यान ओर पाठ करते हैं। उसी तरह से इस पुस्तकालय में भी छात्र अपने जूते पुस्तकालय के बाहर खोल देते है ओर यहां विशेष रूप से जुट की पुले रखी गई है जिन्हें पहनकर छात्र इस पुस्तकालय में प्रवेश करते है। पुस्तकालय में जमीन पर बैठकर ही छात्र अपना अध्ययन करते है। इस पुस्तकालय को पूरी तरह से लकड़ी के इस्तेमाल से तैयार किया गया है। प्रवेश द्वार पर जहां बौद्ध संस्कृति से जुड़े ड्रैगन ओर कमल का फूल पत्तों की बेहद ही सुंदर नक्काशी की गईं है तो वहीं अंदर बैठ कर अध्ययन करने के लिए जो चौखतान बनाए गए है उनपर भी बेहद ही सुंदर नक्काशी की गई है। इस पुस्तकालय का निर्माण किन्नौर जिला के कारीगरों के हाथों से ही किया गया है। एक रोचक तथ्य यह भी है कि जब कारीगरों ने इस पुस्तकालय का काम किया था तो उस समय उन्होंने पूरी परंपराओं का निर्वहन किया था जिसमें दाढ़ी ना बनाना और अन्य क़ई नियम शामिल थे। पुस्तकालय का निर्माण 2012 में शुरू हुआ था और 2014 में यह बनकर तैयार हो गया था।


Conclusion: शिमला राज्य संग्रहालय के उच्च अधिकारी हरि सिंह चौहान ने कहा कि इस पुस्तकालय की खासियत इसे जिस पैटर्न पर तैयार किया गया है वह तो है ही इसके साथ ही इस पुस्तकालय में किताबों का ऐसा संग्रह है जो हिमाचल के किसी ओर पुस्तकालय में नहीं है। पुस्तकालय में इंडियन आर्ट के अलावा रशियन,ग्रीक,चाईनीज,जैपनीज़ आर्ट से जुड़ी किताबों का संग्रहण है जो शोधकर्ताओं के लिए बेहद फायदेमंद है। वहीं पुस्तकालय में आने वाले पाठकों का कहना है कि इस पुस्तकालय का वातावरण पढ़न पाठन के लिए बेहद अनुकूल है। यहां शांति पूर्ण माहौल के साथ ही उन्हें इस तरह की किताबों का अध्ययन करने को मिलता है जो किसी अन्य पुस्तकालय में नहीं मिल पाता है। इस पुस्तकालय में आज भी पुरानी परंपराओं का निर्वहन हो रहा है जो यहां आने वाले शोधकर्ताओं ओर छात्रों को बेहद पंसद आता है। पुस्तकालय में इतिहास से जुड़ी किताबों के साथ ही यात्रा वृतांत,पुरातत्व,कला और हिमाचली इतिहास और धर्म से जुड़ी किताबों का बहुमूल्य संग्रहण उपलब्ध है।

बॉक्स:
दरवाजे पर है आठ ऑसपीसीयस सिंबल ऑफ बुद्धजीम

राज्य संग्रहालय के इस पुस्तकालय के दरवाजे पर आठ ऑसपीसीयस सिंबल ऑफ बुद्धजीम के उकेरे गए है। वहीं अंदर का इंटीरियर भी मोनेस्ट्री के पैटर्न पर ही पूरा तैयार किया गया है। दरवाजे पर जहां ड्रेगन बने है वहीं फूल,पत्तों के साथ ही अन्य क़ई सिंबल इस पर बनाए गए है।

Last Updated : Dec 13, 2019, 2:26 PM IST
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