शिमला: चंडीगढ़ किसका ? ये सवाल एक बार फिर से सियासी गलियारों में सुनाई देने लगा है. इस बार हिमाचल के डिप्टी सीएम ने चंडीगढ़ में हिमाचल की हिस्सेदारी का दावा किया है. वैसे पंजाब और हरियाणा के साथ हिमाचल के कई मसले लंबित हैं. पंजाब पुनर्गठन एक्ट के विवादों का अभी तक हल नहीं निकला है. भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड की परियोजनाओं में हिमाचल की हिस्सेदारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद नहीं मिली है. चंडीगढ़ की तय जमीन के 7% हिस्से पर भी हिमाचल की दावेदारी बनती है. हाल ही में हिमाचल सरकार के डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने चंडीगढ़ में अपने राज्य की हिस्सेदारी का मसला उठाया है. अब राज्य की सुखविंदर सिंह सरकार अपनी हिस्सेदारी व बकाया धनराशि को लेकर नए सिरे से दावा करेगी.
उल्लेखनीय है कि चंडीगढ़ पर पंजाब और हरियाणा अपने-अपने हक के लिए अकसर दावे करते हैं. इन दावों के बीच हिमाचल की अनदेखी होती रही है. हालांकि हिमाचल प्रदेश खुद को पंजाब व हरियाणा का छोटा भाई बताता है, लेकिन दोनों पड़ोसी राज्य हिमाचल के हक को नजर अंदाज करते आए हैं. यही कारण है कि डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने हिमाचल की हिस्सेदारी का मामला उठाया है. आइए, जानते हैं कि पंजाब पुनर्गठन एक्ट है क्या ? और हिमाचल के हितों की अनदेखी कैसे हो रही है?
पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत हिमाचल बीबीएमबी प्रोजेक्ट्स भाखड़ा, डैहर तथा पौंग में 7.19% की हिस्सेदारी मांग रहा है. हिस्सेदारी के मुद्दे पर पड़ोसी राज्यों पंजाब व हरियाणा के साथ साथ राजस्थान के भी अडिय़ल रवैये को देखते हुए हिमाचल सरकार ने करीब दो दशक पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने ये याचिका दाखिल की थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जब फैसला दिया तो हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी. फिर वर्ष 2011 के बाद बीबीएमबी प्रोजेक्टों में प्रदेश को हिस्सेदारी तो मिल रही है, मगर हिमाचल सरकार को इससे पहले के करीब 4200 करोड़ के एरियर की देनदारी पंजाब व हरियाणा ने नहीं की है.
वर्ष 1966 के पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत प्रदेश सरकार भाखड़ा में 2724 करोड़, डैहर में 1034.54 करोड़ तथा पौंग प्रोजेक्ट में 491.89 करोड़ की हिस्सेदारी की मांग कर रही है. पंजाब सरकार ने पहले ये प्रस्ताव किया कि बीबीएमबी परियोजनाओं से हिमाचल पंजाब को मिलने वाली बिजली से कुछ बिजली बेचे और दस साल में अपना बकाया पूरा कर ले. हिमाचल इस पर राजी होने की बात सोच ही रहा था कि बाद में पंजाब ने ये मियाद दस की बजाय बीस साल करने को कहा. अभी भी ये मसला सुलझा नहीं है. इसी तरह चंडीगढ़ की कुछ जमीन पर भी हिमाचल का हिस्सेदारी को लेकर दावा है. डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने इसी दावे को फिर से पेश किया है. पंजाब पुनर्गठन एक्ट के तहत चंडीगढ़ पर विभिन्न बिंदुओं को लेकर हिमाचल का सात फीसदी से अधिक का दावा है. इसमें जमीन से लेकर पानी के एवज में मिलने वाला लाभ शामिल है. अभी हिमाचल को सिर्फ पीजीआई में प्रशासनिक अधिकारी तैनात करने का हक है. हिमाचल से एक आईएएस और एक एचपीएएस अधिकारी चंडीगढ़ पीजीआई में प्रशासनिक हक के तौर पर तैनात होता है.
हिमाचल के पानी से देश के कई राज्य रोशन हुए लेकिन हिमाचल के हिस्से का खजाना अंधेरे में ही रहा है. हिमाचल को पंजाब से भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड की हिस्सेदारी में 2 हजार करोड़ से अधिक की रकम मिलनी है. सुप्रीम कोर्ट भी एक दशक पहले हिमाचल के हक में फैसला दे चुका है. लेकिन पंजाब के साथ-साथ हरियाणा भी इस देनदारी को अदा करने से कन्नी काटता रहा है.
बीबीएमबी यानी भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में भी हिमाचल अपना हक मांगता रहा है. हिमाचल सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सितंबर 2019 में चंडीगढ़ में आयोजित नॉर्थ जोन काउंसिल की बैठक में मुद्दा उठाया था कि हिमाचल को बीबीएमबी प्रोजेक्ट्स में पूर्णकालिक सदस्य बनाया जाए. यह पहली बार नहीं था, जब हिमाचल सरकार ने नॉर्थ जोन काउंसिल में ये मांग उठाई थी. हिमाचल में सरकार चाहे भाजपा की रही हो या फिर कांग्रेस की, बीबीएमबी परियोजनाओं में हिस्सेदारी का मामला दशकों से लंबित है. वर्ष 2017 के आखिर में सत्ता में आई भाजपा सरकार ने बीबीएमबी मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू न करने पर अवमानना याचिका दाखिल करने की तैयारी कर ली थी. पंजाब सरकार दशकों से हिमाचल के साथ टालमटोल वाला रवैया अपनाए हुए है. इससे पूर्व जुलाई 2018 में हरियाणा ने तो देनदारी अदा करने के लिए संकेत दिए थे, लेकिन पंजाब का रवैया कभी भी सहयोग का नहीं रहा.
जुलाई 2018 में शिमला में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के ऊर्जा मंत्रियों का सम्मेलन हुआ था। उस सम्मेलन में भी हिमाचल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि राज्य से बहने वाली नदियों से पैदा हो रही बिजली पर रॉयल्टी मिलनी चाहिए. भाखड़ा और पौंग बांध जैसी बड़ी बिजली परियोजनाएं हिमाचल की धरती पर हैं, परंतु राज्य को वैधानिक तरीके से तय जायज हक भी नहीं मिल रहा है. इसी तरह जनवरी 2018 में साल की पहली कैबिनेट बैठक में नई-नई सत्ता में आई जयराम सरकार ने भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में एरियर के सैटलमेंट को लेकर कैबिनेट मंजूरी दी थी.
उल्लेखनीय है कि बीबीएमबी की कुल 13066 मिलियन यूनिट ऊर्जा से हिमाचल को अढाई रुपए प्रति यूनिट की दर से 3266 करोड़ रुपए की राशि मिलनी है. हिमाचल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 27 सितंबर 2011 को राज्य के हक में दिए गए फैसले की अनुपालना में बीबीएमबी परियोजनाओं में बकायों के निपटारे को मंजूरी दी थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश को करीब 12 साल हो गए, लेकिन हिमाचल को उसका हक नहीं मिला है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में सत्ता संभाली थी. फिर 2016 में पीएम नरेंद्र मोदी हिमाचल आए तो तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह ने प्रधानमंत्री को हिमाचल से जुड़ी 12 मांगों वाला ज्ञापन दिया था. उस दौरान भी वीरभद्र सिंह ने कहा था कि बीबीएमबी परियोजनाओं में प्रबंधन बोर्ड के पूर्ण कालीन सदस्य के रूप में हिमाचल को शामिल किया जाए. पंजाब के अलावा हिमाचल प्रदेश के हरियाणा के साथ भी कई लंबित मसले हैं. हिमाचल को बद्दी तक रेल लाने के लिए जमीन अधिग्रहण की जरूरत है. हरियाणा सरकार के साथ ये मसला भी चल रहा है. इस रेल लाइन के लिए हरियाणा के दायरे में 52 एकड़ जमीन है. इसमें से 27 एकड़ सरकारी जमीन है और बाकी निजी भूमि है। ये मसला भी सिरे नहीं चढ़ा है.
यहां बता दें कि हिमाचल व पंजाब के पुनर्गठन के दौरान कुछ इलाके हिमाचल में शामिल हुए थे. भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड के तहत चल रही बिजली परियोजनाओं में हिमाचल का हिस्सा जो पहले ढाई फीसदी थी, पुनर्गठन के बाद 7.19 फीसदी तय हुआ था। अपने हक के लिए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी और एक दशक से भी पहले यानी वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल के पक्ष में फैसला दिया था। पंजाब व हरियाणा से हिमाचल को 4200 करोड़ रुपए मिलने हैं.
राज्य सरकार के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है कि हिमाचल ने अपने संसाधन खोए लेकिन ना तो केंद्र सरकार और ना ही अन्य संबंधित सरकारों ने हिमाचल की मांग पूरी की. पूर्व आईएएस अधिकारी केआर भारती का कहना है कि यदि हिमाचल को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार बीबीएमबी परियोजनाओं में तमाम हक मिलते हैं तो राज्य की आर्थिक स्थिति के लिए यह बड़ा सहारा होगा. भारती का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट तो हिमाचल के पक्ष में फैसला दे चुका है लेकिन पड़ोसी राज्यों की खींचतान में हिमाचल का नुकसान हो रहा है. उन्होंने कहा कि इस मामले में हिमाचल को सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर करने के विकल्प पर विचार करना चाहिए.
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