शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ऊना में स्थित इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के बॉटलिंग प्लांट परिसर को तुरंत खाली करने के आदेश दिए हैं. इस प्लांट में अभी दि न्यू हिमाचल हैवी मीडियम एंड लाइट गुड्स ट्रक्स को-ऑपरेटिव सोसाइटी ऊना के ट्रक खड़े हैं. हाईकोर्ट ने सोसाइटी प्रबंधन को 30 अप्रैल को बॉटलिंग प्लांट परिसर खाली करने के आदेश जारी किए. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन की याचिका का निपटारा करते हुए यह आदेश दिए.
अदालत ने को-ऑपरेटिव सोसाइटी को चेतावनी देते हुए कहा है कि 30 अप्रैल को यदि उन्होंने अपने ट्रक इंडियन ऑयल कारपोरेशन के प्लांट के परिसर से नहीं हटाए तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. यही नहीं, हाईकोर्ट ने सोसाइटी प्रबंधन को चेतावनी दी है कि यदि परिसर खाली नहीं किया गया तो पदाधिकारियों और सदस्यों के खिलाफ अवमानना का मामला भी दर्ज किया जा सकता है.
हाईकोर्ट ने उक्त सोसाइटी को आदेश दिए हैं कि वह 1 मई से नए ट्रांसपोर्टरों के ट्रकों की बॉटलिंग प्लांट में आवाजाही में किसी प्रकार की कोई बाधा पैदा न करे. सोसाइटी को सिलेंडर डिस्ट्रीब्यूटरों से एकत्रित किए खाली सिलेंडरों को भी शांतिपूर्वक कंपनी को सौंपने के आदेश जारी किए हैं. मामले के अनुसार इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन कंपनी के बॉटलिंग प्लांट ऊना से गैस सिलेंडर ले जाने और खाली सिलेंडर वापस लाने का ठेका उपरोक्त सोसाइटी को दिया थे. इस ठेके की अवधि 30 अप्रैल को पूरी होनी है.
कंपनी ने याचिका दायर कर अदालत से मांग की थी कि सोसाइटी को 1 मई से परिसर खाली करने के और उसे नए ट्रांसपोर्टरों को तंग न करने के आदेश दिए जाएं. कंपनी नहीं चाहती कि माल ढुलाई का काम केवल मात्र इसी सोसाइटी को दिया जाए इसलिए उन्होंने फिर से टेंडर आमंत्रित किए हैं. कोर्ट ने सोसाइटी को नई टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा लेने की आजादी भी दी है.
वहीं, एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने बिना किसी ठोस कारण दिए पारित किए गए आदेशों में खामी पाते हुए एक और मामला वापस कांगड़ा के डिविजनल कमिश्नर को भेज दिया है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने मनोहर लाल द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए मंडलायुक्त ने निचली अदालत के फैसले से सहमति रखने का कोई कारण तक नहीं दिया.
इससे पहले अदालत ने शशि कुमार और अन्य की याचिका का निपटारा करते हुए मामला पुन: फैसले के लिए मंडलायुक्त कांगड़ा को भेजा था. कोर्ट ने कहा कि उक्त अधिकारी को यह याद दिलाने की जरूरत है कि वह पक्षकारों के मूल्यवान अधिकारों से निपट रहा है और इतने गूढ़ तरीके से वह बिना किसी कारण को रिकॉर्ड किए फैसला पारित नहीं कर सकता. अदालत ने टिप्पणी की है कि कारण बताने में विफलता न्याय से वंचित करने के बराबर है. अदालत ने कहा कि प्राधिकरण द्वारा पारित आदेश में कारणों का अभाव है. स्पष्ट रूप से यह आदेश के मनमाना होने का संकेत है इसलिए कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है.
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