शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने नियमों के खिलाफ एसीआर (सालाना गोपनीय रिपोर्ट) लिखने वाले प्रिंसिपल पर कार्रवाई करने के आदेश जारी किए हैं. हाई कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ ने इस मामले में दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई की. प्रार्थी हरमोहिनी ने एसीपी यानी एश्योर्ड करियर प्रोग्रेशन स्कीम का लाभ पाने के लिए याचिका दाखिल की थी. इस स्कीम में पात्र कर्मचारी को 4-9-14 के स्केल का लाभ मिलता है. इसके लिए कर्मचारी की एसीआर बेहतर होनी चाहिए. प्रार्थी हरिमोहिनी को एसीआर खराब होने के कारण ये लाभ नहीं मिल रहा था. इस पर प्रार्थी ने हाई कोर्ट में ये तथ्य पेश किया कि उसकी एसीआर जानबूझकर सही नहीं लिखी गई. इस याचिका को स्वीकारते हुए हाई कोर्ट ने प्रिंसिपल के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए.
मामले के अनुसार प्रार्थी हरिमोहिनी की वर्ष 1997 में अनुबंध के आधार पर कला अध्यापक के रूप में नियुक्ति हुई थी. फिर 15 जनवरी 2003 को उसकी सेवाएं नियमित की गई. प्रार्थी 30 जुलाई 2013 को राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला बरोह जिला कांगड़ा से सेवानिवृत हो गई थी. सेवानिवृति के बाद प्रार्थी ने शिक्षा विभाग से एसीपी स्कीम का लाभ देने की गुहार लगाई. प्रार्थी के आवेदन को डिप्टी डायरेक्टर एलीमेंट्री एजुकेशन ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि 2006 से 2011 तक उसकी एसीआर (सालाना गोपनीय रिपोर्ट) ठीक नहीं है.
प्रार्थी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर 2006 से 2011 तक की एसीआर को विवादित बताते हुए अदालत के समक्ष रखा. रिकार्ड का अवलोकन करने के बाद अदालत ने पाया कि प्रार्थी की सभी विवादित एसीआर तत्कालीन प्रिंसिपल विजय प्रकाश अवस्थी द्वारा एक साथ लिखी गई है. विवादित एसीआर को रिवीविंग अथॉरिटी और एक्सेप्टिंग अथॉरिटी ने अपना अनुमोदन भी नहीं किया था. एसीआर में लगाए आरोपों से प्रार्थी को अवगत भी नहीं करवाया गया.
कोर्ट ने एसीआर के संबंध में कानूनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि कर्मचारी की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट हर वर्ष लिखी जानी चाहिए. विपरीत एंट्री वाली एसीआर संबंधित कर्मचारी को समय पर दी जानी चाहिए ताकि वह अपने काम में सुधार ला सके. रिवीविंग अथॉरिटी और एक्सेप्टिंग अथॉरिटी का अनुमोदन भी जरूरी तौर पर होना चाहिए. हाई कोर्ट ने विवादित एसीआर में उपरोक्त सभी खामियों को पाते हुए शिक्षा विभाग को आदेश दिए कि वह विवादित एसीआर को नजर अंदाज करते हुए प्रार्थी को एसीपी स्कीम का लाभ चार हफ्ते के भीतर दिया जाए.