शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में एमसी शिमला की वोटर्स लिस्ट में बाहरी विधानसभाओं के मतदाताओं से जुड़ी याचिका पर सुनवाई टल गई है. अब इस मामले में सुनवाई 10 जनवरी को होगी. नगर निगम शिमला (Municipal Corporation Shimla) की मतदाता सूची (MC Shimla voter list) में बाहरी विधानसभा के वोटरों को रोकने वाले प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर हाई कोर्ट की खंडपीठ सुनवाई कर रही है. ये मामला हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ में सुना जा रहा है.
याचिका के अनुसार शहरी विकास विभाग ने 9 मार्च 2022 को एक अधिसूचना जारी की थी. इस अधिसूचना के लागू होने से शिमला नगर निगम के 20,000 से अधिक मतदाता प्रभावित होंगे और उन्हें मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा. उल्लेखनीय है कि शिमला नगर निगम की परिधि तीन विधानसभा क्षेत्रों अर्थात शिमला शहरी, कुसुम्पटी व शिमला ग्रामीण तक फैली हुई है. मौजूदा नगर निगम का कार्यकाल 18 जून को पूरा हो गया था. याचिका दाखिल करने वाले प्रार्थी का कहना है कि वो एमसी शिमला की मतदाता सूची में मतदाता के रूप में पंजीकृत होना चाहता था, लेकिन सरकार की अधिसूचना से वो मतदाता सूची में पंजीकृत होने के अधिकार से वंचित हो गया है.
प्रार्थी का आरोप है कि ऐसा पहली बार किया गया है. इस प्रावधान के अनुसार यदि कोई मतदाता एमसी शिमला के अलावा अन्य विधानसभा क्षेत्र के मतदाता के रूप में पंजीकृत है तो वो एमसी चुनाव में मतदान करने में अयोग्य घोषित किया जाएगा. यह अधिसूचना जारी करके सरकार ने हिमाचल प्रदेश नगर निगम चुनाव नियम, 2012 के नियम 14, 16 और 26 में संशोधन किया है, जिससे अन्य विधायी निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचकों को नगर निगम के मतदाता होने से रोक दिया गया है. ऐसे में उक्त अधिसूचना उस नागरिक के नगर निगम क्षेत्र में वोट देने के संवैधानिक और वैधानिक अधिकार को खत्म करती है जो नगर निगम का सामान्य निवासी होने के साथ साथ किसी अन्य विधानसभा क्षेत्र का मतदाता भी है.
प्रार्थी का आरोप है कि विवादित अधिसूचना जारी करने की पूरी प्रक्रिया अपारदर्शी ढंग से की गई है और संबंधित मतदाता की आपत्तियां भी आमंत्रित नहीं की गई हैं. मामले की सुनवाई अब दस जनवरी को होगी. वहीं, एक अन्य मामले में भी हाई कोर्ट में सुनवाई 6 मार्च तक टाल दी गई है. ये मामला जेबीटी भर्ती में बिना जेबीटी टेट के बीएड धारकों को कंसीडर न करने से जुड़ा है. उक्त मामला भी हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ में सुना जा रहा है.
अदालत ने मामले पर सुनवाई के बाद सभी पक्षकारों को 8 हफ्ते में जवाब व प्रति जवाब की कार्यवाई पूरी करने के आदेश दिए. मामले के अनुसार हिमाचल प्रदेश में सरकारी स्कूलों में 617 जेबीटी शिक्षकों के पदों के लिए सीधी भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी. इनका परिणाम भी घोषित कर दिया गया था. पूरी परीक्षा में 617 पदों के खिलाफ 613 शिक्षक ही शैक्षणिक योग्यता पूरी करने वाले पाए गए. कुल 1,135 बीएड डिग्री धारकों को इन पदों के खिलाफ इसलिए कंसीडर नहीं किया गया क्योंकि वे जेबीटी टेट पास नहीं थे.
कर्मचारी चयन आयोग हमीरपुर और शिक्षा विभाग के अनुसार नियमों के तहत जेबीटी पदों के लिए जेबीटी टेट पास होना अनिवार्य था. प्रार्थियों का कहना है कि उन्हें जेबीटी टेट में बैठने की अनुमति नहीं दी गई थी इसलिए उनके पास जेबीटी टेट पास सर्टिफिकेट नहीं था. प्रार्थियों का यह भी कहना है कि हाई कोर्ट (Himachal High court) के आदेशानुसार बीएड धारकों को इन पदों के लिए कंसीडर नहीं किया गया. क्योंकि कोर्ट ने एनसीटीई की अधिसूचना के आधार पर बीएड डिग्रीधारक भी जेबीटी भर्ती के लिए पात्र बनाए हैं.
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