शिमला: हाईकोर्ट ने चिकित्सा अधिकारियों के सशर्त जारी किए गए अपंगता प्रमाण पत्रों पर तल्ख टिप्पणी की. हाईकोर्ट यह स्पष्ट किया जिन मेडिकल प्रमाण पत्रों की वैधानिक तौर पर किसी भी तरह की मान्यता नहीं. इस तरह के मेडिकल सर्टिफिकेट झूठे और जाली समझे जाएंगे.
न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया जिन अपंगता संबंधी प्रमाण पत्रों पर चिकित्सा अधिकारी यह लिखते है कि इस तरह के प्रमाण पत्र न्यायालय या क्षतिपूर्ण हर्जाने के लिए मान्य नहीं है. वास्तव में ऐसे प्रमाण पत्र जारी करने वाले चिकित्सा अधिकारियों की इस मंशा को उजागर करते हैं कि प्रमाण पत्र झूठे पाए जाने की स्थिति में उन्हें न्यायालय या प्राधिकरण के समक्ष न घसीटा जा सके.
कोर्ट ने कहा कि कोई भी कोर्ट इस तरह के प्रमाण पत्रों को मान्यता नहीं दे सकता. न्यायालय ने सरकार को आदेश दिए कि अब समय आ गया इस तरह के प्रमाण पत्र जारी करने की प्रथा पर अंकुश लगाया जाए. जिनकी वैधानिक मान्यता न होने के बावजूद दुरुपयोग हो रहा. न्यायालय ने स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को आदेश जारी किए वह 6 सप्ताह के भीतर इस मामले पर गहनता से गौर करने के पश्चात संबंधित सरकारी और निजी डॉक्टरों को जरूरी दिशा निर्देश जारी करे.
न्यायालय से ट्रांसफर से जुड़े मामले के रिकॉर्ड का अवलोकन करने के पश्चात यह पाया कि प्रार्थी को चिकित्सा अधिकारी ने 45 फीसदी अपंगता का प्रमाण पत्र जारी किया था, लेकिन साथ में यह भी नोट लिखा था कि यह प्रमाण पत्र न्यायालय को दिखाने या क्षति पूर्ति हर्जाना लेने के लिए मान्य नही होगा. मामले में स्वास्थ्य सचिव को दिए निर्देशों की अनुपालना रिपोर्ट 19 अगस्त के लिए तलब की गई है.
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