शिमला: अडानी पावर लिमिटेड को राज्य सरकार की तरफ से 280 करोड़ रुपए ब्याज सहित लौटाने के मामले में अब सुनवाई 9 मार्च को होगी. शुक्रवार को हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार ने अदालत में बताया कि अडानी समूह के बातचीत कर कोई हल निकालने की कोशिश की जा रही है. सरकार ने अदालत में कहा कि बातचीत से मामले को सुलझाने का प्रयास इसलिए किया जा रहा है ताकि राज्य पर कोई आर्थिक बोझ न पड़े.
हाईकोर्ट ने पूर्व में आदेश दिया है कि अडानी समूह को अपफ्रंट प्रीमियम के 280 करोड़ रुपए नौ फीसदी ब्याज सहित लौटाए जाएं. इस पर राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी. इस समय हाईकोर्ट में केस की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सबीना व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ कर रही है. शुक्रवार को इस खंडपीठ के समक्ष सरकार और अडानी समूह की तरफ से एक-दूसरे के खिलाफ दाखिल की गई अपीलों पर सुनवाई हुई.
यहां बता दें कि पूर्व में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने सरकार को जंगी-थोपन-पोवारी जलविद्युत परियोजना के लिए जमा किए गए 280 करोड़ रुपए की अपफ्रंट राशि वापिस करने के आदेश दिए थे. सरकार ने इस मामले में अपील करने में देरी कर दी थी. इसी कारण राज्य सरकार को अपील दायर करने में हुई देरी को माफ करने की अर्जी भी देनी पड़ी थी. सरकार ने फीस वापसी के आदेशों पर रोक लगाने की गुहार भी लगाई थी परंतु अदालत ने एकल पीठ के आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था.
हाईकोर्ट की एकल पीठ ने विगत 12 अप्रैल को जारी फैसले में सरकार को आदेश दिए थे कि वह 4 सितंबर 2015 को कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार दो महीने की अवधि में 280 करोड़ रुपए की रकम वापस करे. एकल पीठ ने यह आदेश अडानी पावर लिमिटेड की याचिका पर पारित किये थे. साथ ही कहा था कि यदि सरकार यह राशि दो माह के भीतर प्रार्थी कंपनी को वापिस करने में विफल रहती है तो उसे 9 फीसदी सालाना ब्याज सहित रकम देनी होगी.
विगत साल 12 अप्रैल को पारित इस फैसले को सरकार ने अपील के माध्यम से खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी है. कंपनी ने राज्य सरकार के विशेष सचिव (विद्युत) के 7 दिसंबर, 2017 को जारी पत्राचार को हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने कंपनी की याचिका को स्वीकार किया. हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कहा था कि जब कैबिनेट ने 4 सितंबर 2015 को प्रशासनिक विभाग के विस्तृत कैबिनेट नोट पर ध्यान देने के बाद खुद ही यह रकम वापिस करने का निर्णय लिया था तो ये समझ में नहीं आता कि अपने ही फैसले की समीक्षा किस आधार पर की जा रही है.
क्या है पूरा मामला- अक्टूबर, 2005 में राज्य सरकार ने 980 मेगावाट की दो हाइड्रो-इलेक्ट्रिक परियोजनाओं जंगी-थोपन-पोवारी पावर के संबंध में निविदा जारी की थी. एक विदेशी कंपनी ब्रेकल कॉर्पोरेशन ने परियोजनाओं के लिए सबसे अधिक बोली लगाई. ब्रेकल कंपनी ने अपफ्रंट प्रीमियम के तौर पर 280.06 करोड़ रुपये की राशि राज्य सरकार के पास जमा कर दी. बाद में राज्य सरकार ने परियोजनाओं की फिर से बोली लगाने का फैसला किया.
इसके बाद ब्रेकल ने राज्य सरकार से पत्राचार के माध्यम से 24 अगस्त 2013 को अनुरोध किया था कि अडानी पावर समूह के कंसोर्टियम पार्टनर होने के नाते 280.00 करोड़ रुपये के अग्रिम प्रीमियम को अप टू डेट ब्याज के साथ उसे वापस किया जाए. पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार ने 2017 में चुनाव से पूर्व इस रकम को वापिस करने का फैसला लिया, लेकिन बाद में अपने ही निर्णय से पलट गई. मामला कोर्ट में गया और अडानी समूह ने 280 करोड़ रुपए की रकम वापिस मांगी. हाईकोर्ट की एकल पीठ ने अडानी समूह के पक्ष में फैसला सुनाया. फिलहाल अब मामले की सुनवाई 9 मार्च को तय की गई है.
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