ETV Bharat / state

HC का भूमि विवाद से जुड़ा अहम फैसला, पारिवारिक बंदोबस्त को स्टाम्प पेपर पर लिखने की जरूरत नहीं

प्रदेश हाईकोर्ट ने भूमि विवाद से जुड़े मामलों में कहा है कि फैमली सेटलमेंट को न तो पंजीकृत करवाने की जरूरत है और न ही  किसी स्टाम्प पेपर पर लिखने की जरूरत है.

High court shimla
author img

By

Published : Aug 28, 2019, 11:41 PM IST

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने भूमि विवाद से जुड़े मामले का निपटारा करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. इसके तहत फैमिली सेटलमेंट यानी पारिवारिक बंदोबस्त को न तो पंजीकृत करवाने की जरूरत है और न ही किसी स्टाम्प पेपर पर लिखने की जरूरत है.

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि फैमली सेटलमेंट अगर रजिस्टर्ड न भी हो तो भी उसमें हिस्सा लेने वाले सभी भागीदार उसके तहत पाबंद माने जाते हैं. हाईकोर्ट पहुंचे याचिकाकर्ता रत्तन चंद ने दीवानी दावा कर प्रतिवादियों को विवादित भूमि पर किसी तरह का निर्माण करने पर पाबंदी लगाने की गुहार लगाई थी. वादी का कहना था कि सभी पक्षकार विवादित भूमि के संयुक्त मालिक हैं और भूमि का बंटवारा नहीं किया गया है. इसके बावजूद प्रतिवादी ऋषि केश व अन्य ने भूमि के अवल हिस्से पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया है.

वादी का आरोप था कि प्रतिवादियों ने ऐसा करते समय उनकी सहमति नहीं ली और कार्य करते जा रहे हैं. प्रतिवादियों का कहना था कि विवादित भूमि का फैमिली पार्टीशन 13 मई 1958 को उनके दादा नरोत्तम ने किया था. निचली अदालतों ने वादी का दावा खारिज कर दिया. इसके बाद निचली अदालत के फैसलों को हाईकोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी कि पार्टीशन डीड पंजीकृत न होने व उस पर कोई स्टाम्प न होने के कारण उसे नजरअंदाज किया जाना चाहिए. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने निचली अदालतों के फैसलों को उचित ठहराते हुए कहा कि फैमिली सेटलमेंट को न तो रजिस्टर्ड करने की जरूरत थी और न ही कानून के तहत उस पर किसी स्टाम्प डयूटी की जरूरत थी.

ये भी पढें: सदन में मोहन लाल ब्राक्टा ने उठाया महिला की दी गई गलत HIV रिपोर्ट का मुद्दा, पीड़ित परिवार को मुआवजा देने की मांग

शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट ने भूमि विवाद से जुड़े मामले का निपटारा करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. इसके तहत फैमिली सेटलमेंट यानी पारिवारिक बंदोबस्त को न तो पंजीकृत करवाने की जरूरत है और न ही किसी स्टाम्प पेपर पर लिखने की जरूरत है.

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि फैमली सेटलमेंट अगर रजिस्टर्ड न भी हो तो भी उसमें हिस्सा लेने वाले सभी भागीदार उसके तहत पाबंद माने जाते हैं. हाईकोर्ट पहुंचे याचिकाकर्ता रत्तन चंद ने दीवानी दावा कर प्रतिवादियों को विवादित भूमि पर किसी तरह का निर्माण करने पर पाबंदी लगाने की गुहार लगाई थी. वादी का कहना था कि सभी पक्षकार विवादित भूमि के संयुक्त मालिक हैं और भूमि का बंटवारा नहीं किया गया है. इसके बावजूद प्रतिवादी ऋषि केश व अन्य ने भूमि के अवल हिस्से पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया है.

वादी का आरोप था कि प्रतिवादियों ने ऐसा करते समय उनकी सहमति नहीं ली और कार्य करते जा रहे हैं. प्रतिवादियों का कहना था कि विवादित भूमि का फैमिली पार्टीशन 13 मई 1958 को उनके दादा नरोत्तम ने किया था. निचली अदालतों ने वादी का दावा खारिज कर दिया. इसके बाद निचली अदालत के फैसलों को हाईकोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी कि पार्टीशन डीड पंजीकृत न होने व उस पर कोई स्टाम्प न होने के कारण उसे नजरअंदाज किया जाना चाहिए. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने निचली अदालतों के फैसलों को उचित ठहराते हुए कहा कि फैमिली सेटलमेंट को न तो रजिस्टर्ड करने की जरूरत थी और न ही कानून के तहत उस पर किसी स्टाम्प डयूटी की जरूरत थी.

ये भी पढें: सदन में मोहन लाल ब्राक्टा ने उठाया महिला की दी गई गलत HIV रिपोर्ट का मुद्दा, पीड़ित परिवार को मुआवजा देने की मांग

Intro:Body:

फैमली सेटलमेंट यानी पारिवारिक बंदोबस्त को न तो पंजीकृत करवाने की आवश्यकता है और न ही  किसी स्टाम्प पेपर पर लिखने की जरूरत है। प्रदेश हाईकोर्ट ने भूमि विवाद से जुड़े मामले का निपटारा करते हुए यह महत्वपूर्ण व्यवस्था दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि फैमली सेटलमेंट यदि रजिस्टर्ड न भी हो तब भी उसमें हिस्सा लेने वाले सभी भागीदार उसके तहत पाबन्द माने जाते हैं। मामले के अनुसार अपीलकर्ता रत्तन चंद व अन्यों द्वारा दीवानी दावा कर प्रतिवादियों को विवादित भूमि पर किसी तरह का निर्माण करने पर पाबंदी लगाने की गुहार लगाई थी। वादीयों का कहना था कि सभी पक्षकार विवादित भूमि के संयुक्त मालिक है और भूमि का बंटवारा नहीं किया गया है। इसके बावजूद प्रतिवादी ऋषि केश व अन्य ने भूमि के अवल हिस्से पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया है। वादीयों का आरोप था कि प्रतिवादियों ने ऐसा करते समय उनकी सहमति नहीं ली और कार्य करते जा रहे हैं। प्रतिवादियों का कहना था कि विवादित भूमि का फैमिली पार्टीशन 13 मई 1958 को विवादित भूमि का फैमिली पार्टीशन हो गया था जो उनके दादा नरोत्तम ने किया था। निचली अदालतों ने वादियों का दावा खारिज कर दिया। वादियों ने निचली अदालत के फैसलों को हाईकोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी कि पार्टीशन डीड पंजीकृत न होने व उस पर कोई स्टाम्प न के कारण उसे नजरअंदाज किया जाना चाहिए। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने निचली अदालतों के फैसलों को उचित ठहराते हुए कहा कि फैमली सेटलमेंट को न तो रजिस्टर्ड करने की जरूरत थी और न ही कानून के तहत उस पर किसी स्टाम्प डयूटी की जरूरत थी।  




Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.