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हक के लिए डट गया हाटी समुदाय, क्या चुनावी साल में गिरिपार को मिलेगा जनजातीय का दर्जा?

उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके को साठ के दशक में ही जनजातीय इलाके का दर्जा मिल गया और हिमाचल की मांग अब तक अनसुनी है. अब हिमाचल के गिरिपार इलाके (Hati Community Himachal Pradesh) में रहने वाले हाटी समुदाय के लोगों ने हठ पकड़ लिया है कि वे अपना हक लेकर रहेंगे. हिमाचल में चुनावी साल है और गिरिपार इलाके की तीन लाख की आबादी को नजर अंदाज करना न तो भाजपा के लिए आसान है और न ही कांग्रेस में इतनी हिम्मत है कि हाटी आंदोलन की अनदेखी करे.

Hatti community Issue in Himachal pradesh
हक के लिए डट गया हाटी समुदाय
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Published : Mar 23, 2022, 10:31 PM IST

शिमला: हिमाचल और उत्तराखंड...दोनों एक जैसी परिस्थितियों वाले पहाड़ी राज्य. उत्तराखंड का जौनसार बावर इलाका और हिमाचल के सिरमौर जिले का गिरिपार इलाका. दोनों की भौगोलिक परिस्थितियां एक जैसी और दोनों इलाकों में बसने वाले लोगों की पीड़ाएं भी एक समान. इन दोनों क्षेत्रों में सब कुछ समान है, लेकिन एक बात में गिरिपार क्षेत्र उत्तराखंड के जौनसार बावर से भी पिछड़ा हुआ है और वो बात है जनजातीय दर्जे की.

उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके को साठ के दशक में ही जनजातीय इलाके का दर्जा मिल गया और हिमाचल की मांग अब तक अनसुनी है. अब हिमाचल के गिरिपार इलाके में रहने वाले हाटी समुदाय के लोगों ने हठ पकड़ लिया है कि वे अपना हक लेकर रहेंगे. इसके लिए हाटी समुदाय कुछ समय से निरंतर शांतिपूर्ण और रचनात्मक आंदोलन कर रहा है.

हिमाचल में चुनावी साल है और गिरिपार इलाके की तीन लाख की आबादी को नजर अंदाज करना न तो भाजपा के लिए आसान है और न ही कांग्रेस में इतनी हिम्मत है कि हाटी आंदोलन की अनदेखी करे. भाजपा के लिए सियासी खेल कांग्रेस के मुकाबले कठिन है. कारण ये है कि केंद्र व राज्य में डबल इंजन की सरकार है.

केंद्रीय हाटी समिति के महत्वपूर्ण पदाधिकारी एफसी चौहान कहते हैं कि इस बार आर-पार की लड़ाई है. अगर कोई सार्थक पहल नहीं होती तो चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा. गिरिपार इलाका कैसा है और यहां के हाटी समुदाय की पीड़ा क्या है, इस पर चर्चा जरूरी है. हिमाचल के पिछड़े जिले सिरमौर का इलाका है गिरिपार. कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यहां विकास परियोजनाओं से जुड़े निर्माण कार्य मुश्किल हो जाते हैं. यहां के युवा कठिन भौगोलिक परिवेश के कारण कई समस्याओं का सामना करते हैं. उन्हें अध्ययन के लिए वैसी सुविधाएं नहीं मिल पाती.

वीडियो.

इलाज की व्यवस्था भी आसानी से नहीं होती. ऐसे में गिरिपार इलाके के हाटी समुदाय की मांग है कि उन्हें जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाए, ताकि आरक्षण व अन्य सुविधाएं मिलने से यहां का विकास हो सके. मूल रूप से आंदोलन की यही प्रमुख वजह है. जनजातीय दर्जा (Tribal status to Giripar) मिलने के बाद केंद्र से विकास कार्यों व ट्राइबल इलाके के लिए केंद्रीय योजनाओं का फंड मिल सकेगा. नौकरियों में आरक्षण भी मिलेगा.

शिक्षण संस्थान व स्वास्थ्य संस्थानों के निर्माण में गति आएगी. सड़कों का विस्तार होगा. एक तरह से कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले इलाके का कायाकल्प हो सकेगा. जौनसार बावर इलाका इसकी मिसाल है. वहां के निवासियों के जीवन में जनजातीय का दर्जा मिलने के बाद सार्थक बदलाव आया है. बड़ी बात है कि एक समान परिस्थितियों वाले उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके को साठ के दशक में ही जनजातीय क्षेत्र का दर्जा मिल चुका है.

इस कारण वहां की जनता के जीवन में सार्थक बदलाव आए हैं. सिरमौर के गिरिपार इलाके की जागरुक जनता ने अपने हक के लिए कई प्रयास किए हैं. उन प्रयासों पर नजर डाली जाए तो जनता ने केंद्रीय हाटी समिति के बैनर तले रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया यानी आरजीआई के समक्ष सभी दस्ताजेव पेश किए हैं.

इनमें 1979-1980 की अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्ट, वर्ष 1993 में पेश हिमाचल की सातवीं विधानसभा की याचिका समिति की रिपोर्ट, 1996 में जनजातीय अध्ययन संस्थान शिमला की रिपोर्ट, हिमाचल कैबिनेट और राज्यपाल की तरफ से वर्ष 2016 की रिपोर्ट के साथ ही सितंबर 2021 की ताजा रिपोर्ट ( आरजीआई के सभी बिंदुओं की क्लैरिफिकेशन सहित) शामिल है.

ये भी पढ़ें- हिमाचल में मंत्री अभी भी नहीं कर पाएंगे तबादले, ट्रांसफर की शक्तियां रहेंगी सीएम के पास

दो दशक से भी अधिक समय से मीडिया में सक्रिय और हाटी आंदोलन को धार देने वाले पत्रकार डॉ. रमेश सिंगटा का कहना है कि गिरिपार इलाके के सर्वांगीण विकास के लिए उसे जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाना समय की मांग है. वैसे तो इस हक को काफी पहले ही दिया जाना चाहिए था, लेकिन अब भी ये हक मिल जाए तो हाटी समुदाय पिछली पीड़ा भूलने की कोशिश करेगा. डॉ. सिंगटा का कहना है कि गिरिपार के साथ भेदभाव हो रहा है. आरजीआई की सभी आपत्तियों को दूर किया जा चुका है. ये इलाका शिमला संसदीय क्षेत्र के तहत आता है.

शिमला के पूर्व सांसद प्रोफेसर वीरेंद्र कश्यप का कहना है कि उन्होंने इस समुदाय की मांग को कई मर्तबा प्रभावी तरीके से आरजीआई के समक्ष व संसद में भी उठाया है. मौजूदा सांसद सुरेश कश्यप ने तो कुछ समय पहले ही आरजीआई से मुलाकात की है. सुरेश कश्यप का कहना है कि भाजपा ने प्रभावी रूप से इस मांग को उठाया है. उन्होंने कहा कि पार्टी पूरी तरह से हाटी समुदाय के साथ है.

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हाल ही के दिल्ली दौरे में हाटी समुदाय की मांग को उठाया है. सीएम ने कहा कि उन्होंने गृह मंत्रालय से इस विषय को उठाया है. समुदाय के प्रतिनिधिमंडल ने सीएम जयराम ठाकुर से दिल्ली जाने से पूर्व मुलाकात की थी. विधानसभा में भी इस मामले की गूंज उठी थी. कांग्रेस और भाजपा इस मुद्दे पर समान रूप से हाटी समुदाय के पक्ष में खड़ी है. भाजपा की नजर इस वोट बैंक पर है.

भाजपा चाहती है कि हाटी समुदाय को जनजातीय का दर्जा मिल जाए तो उसका क्रेडिट चुनाव में लें. उधर, केंद्रीय हाटी समिति (Central Hati Committee) के पदाधिकारी एफसी चौहान कहते हैं कि पूर्व में सभी सरकारों ने इस मसले पर एकजुटता दिखाई है. गिरिपार की मांग पूरी होनी चाहिए.

उल्लेखनीय है कि हाटी समुदाय ने (Hati community demand) इस मांग को लेकर सिरमौर के कई इलाकों में खुमली व महाखुमली का आयोजन किया है. खुमली एक परंपरा है, जिसमें इलाका विशेष के लोग अपनी मांग को शांतिपूर्ण तरीके से उठाते हैं. इसे एक तरह की पंचायत कह सकते हैं. हाटी समिति ने पूरे इलाके में कई खुमलियों व महाखुमलियों का आयोजन किया है. ऐसे में चुनावी साल में भाजपा के लिए इस आंदोलन को नजर अंदाज करना मुश्किल है.

ये भी पढ़ें- Saheed Diwas: हिमाचल पुलिस के जवान मनोज ठाकुर ने कुछ इस तरह से दी शहीदों को श्रद्धांजलि

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शिमला: हिमाचल और उत्तराखंड...दोनों एक जैसी परिस्थितियों वाले पहाड़ी राज्य. उत्तराखंड का जौनसार बावर इलाका और हिमाचल के सिरमौर जिले का गिरिपार इलाका. दोनों की भौगोलिक परिस्थितियां एक जैसी और दोनों इलाकों में बसने वाले लोगों की पीड़ाएं भी एक समान. इन दोनों क्षेत्रों में सब कुछ समान है, लेकिन एक बात में गिरिपार क्षेत्र उत्तराखंड के जौनसार बावर से भी पिछड़ा हुआ है और वो बात है जनजातीय दर्जे की.

उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके को साठ के दशक में ही जनजातीय इलाके का दर्जा मिल गया और हिमाचल की मांग अब तक अनसुनी है. अब हिमाचल के गिरिपार इलाके में रहने वाले हाटी समुदाय के लोगों ने हठ पकड़ लिया है कि वे अपना हक लेकर रहेंगे. इसके लिए हाटी समुदाय कुछ समय से निरंतर शांतिपूर्ण और रचनात्मक आंदोलन कर रहा है.

हिमाचल में चुनावी साल है और गिरिपार इलाके की तीन लाख की आबादी को नजर अंदाज करना न तो भाजपा के लिए आसान है और न ही कांग्रेस में इतनी हिम्मत है कि हाटी आंदोलन की अनदेखी करे. भाजपा के लिए सियासी खेल कांग्रेस के मुकाबले कठिन है. कारण ये है कि केंद्र व राज्य में डबल इंजन की सरकार है.

केंद्रीय हाटी समिति के महत्वपूर्ण पदाधिकारी एफसी चौहान कहते हैं कि इस बार आर-पार की लड़ाई है. अगर कोई सार्थक पहल नहीं होती तो चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा. गिरिपार इलाका कैसा है और यहां के हाटी समुदाय की पीड़ा क्या है, इस पर चर्चा जरूरी है. हिमाचल के पिछड़े जिले सिरमौर का इलाका है गिरिपार. कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यहां विकास परियोजनाओं से जुड़े निर्माण कार्य मुश्किल हो जाते हैं. यहां के युवा कठिन भौगोलिक परिवेश के कारण कई समस्याओं का सामना करते हैं. उन्हें अध्ययन के लिए वैसी सुविधाएं नहीं मिल पाती.

वीडियो.

इलाज की व्यवस्था भी आसानी से नहीं होती. ऐसे में गिरिपार इलाके के हाटी समुदाय की मांग है कि उन्हें जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाए, ताकि आरक्षण व अन्य सुविधाएं मिलने से यहां का विकास हो सके. मूल रूप से आंदोलन की यही प्रमुख वजह है. जनजातीय दर्जा (Tribal status to Giripar) मिलने के बाद केंद्र से विकास कार्यों व ट्राइबल इलाके के लिए केंद्रीय योजनाओं का फंड मिल सकेगा. नौकरियों में आरक्षण भी मिलेगा.

शिक्षण संस्थान व स्वास्थ्य संस्थानों के निर्माण में गति आएगी. सड़कों का विस्तार होगा. एक तरह से कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले इलाके का कायाकल्प हो सकेगा. जौनसार बावर इलाका इसकी मिसाल है. वहां के निवासियों के जीवन में जनजातीय का दर्जा मिलने के बाद सार्थक बदलाव आया है. बड़ी बात है कि एक समान परिस्थितियों वाले उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके को साठ के दशक में ही जनजातीय क्षेत्र का दर्जा मिल चुका है.

इस कारण वहां की जनता के जीवन में सार्थक बदलाव आए हैं. सिरमौर के गिरिपार इलाके की जागरुक जनता ने अपने हक के लिए कई प्रयास किए हैं. उन प्रयासों पर नजर डाली जाए तो जनता ने केंद्रीय हाटी समिति के बैनर तले रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया यानी आरजीआई के समक्ष सभी दस्ताजेव पेश किए हैं.

इनमें 1979-1980 की अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्ट, वर्ष 1993 में पेश हिमाचल की सातवीं विधानसभा की याचिका समिति की रिपोर्ट, 1996 में जनजातीय अध्ययन संस्थान शिमला की रिपोर्ट, हिमाचल कैबिनेट और राज्यपाल की तरफ से वर्ष 2016 की रिपोर्ट के साथ ही सितंबर 2021 की ताजा रिपोर्ट ( आरजीआई के सभी बिंदुओं की क्लैरिफिकेशन सहित) शामिल है.

ये भी पढ़ें- हिमाचल में मंत्री अभी भी नहीं कर पाएंगे तबादले, ट्रांसफर की शक्तियां रहेंगी सीएम के पास

दो दशक से भी अधिक समय से मीडिया में सक्रिय और हाटी आंदोलन को धार देने वाले पत्रकार डॉ. रमेश सिंगटा का कहना है कि गिरिपार इलाके के सर्वांगीण विकास के लिए उसे जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाना समय की मांग है. वैसे तो इस हक को काफी पहले ही दिया जाना चाहिए था, लेकिन अब भी ये हक मिल जाए तो हाटी समुदाय पिछली पीड़ा भूलने की कोशिश करेगा. डॉ. सिंगटा का कहना है कि गिरिपार के साथ भेदभाव हो रहा है. आरजीआई की सभी आपत्तियों को दूर किया जा चुका है. ये इलाका शिमला संसदीय क्षेत्र के तहत आता है.

शिमला के पूर्व सांसद प्रोफेसर वीरेंद्र कश्यप का कहना है कि उन्होंने इस समुदाय की मांग को कई मर्तबा प्रभावी तरीके से आरजीआई के समक्ष व संसद में भी उठाया है. मौजूदा सांसद सुरेश कश्यप ने तो कुछ समय पहले ही आरजीआई से मुलाकात की है. सुरेश कश्यप का कहना है कि भाजपा ने प्रभावी रूप से इस मांग को उठाया है. उन्होंने कहा कि पार्टी पूरी तरह से हाटी समुदाय के साथ है.

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हाल ही के दिल्ली दौरे में हाटी समुदाय की मांग को उठाया है. सीएम ने कहा कि उन्होंने गृह मंत्रालय से इस विषय को उठाया है. समुदाय के प्रतिनिधिमंडल ने सीएम जयराम ठाकुर से दिल्ली जाने से पूर्व मुलाकात की थी. विधानसभा में भी इस मामले की गूंज उठी थी. कांग्रेस और भाजपा इस मुद्दे पर समान रूप से हाटी समुदाय के पक्ष में खड़ी है. भाजपा की नजर इस वोट बैंक पर है.

भाजपा चाहती है कि हाटी समुदाय को जनजातीय का दर्जा मिल जाए तो उसका क्रेडिट चुनाव में लें. उधर, केंद्रीय हाटी समिति (Central Hati Committee) के पदाधिकारी एफसी चौहान कहते हैं कि पूर्व में सभी सरकारों ने इस मसले पर एकजुटता दिखाई है. गिरिपार की मांग पूरी होनी चाहिए.

उल्लेखनीय है कि हाटी समुदाय ने (Hati community demand) इस मांग को लेकर सिरमौर के कई इलाकों में खुमली व महाखुमली का आयोजन किया है. खुमली एक परंपरा है, जिसमें इलाका विशेष के लोग अपनी मांग को शांतिपूर्ण तरीके से उठाते हैं. इसे एक तरह की पंचायत कह सकते हैं. हाटी समिति ने पूरे इलाके में कई खुमलियों व महाखुमलियों का आयोजन किया है. ऐसे में चुनावी साल में भाजपा के लिए इस आंदोलन को नजर अंदाज करना मुश्किल है.

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