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कोरोना काल में फॉरेस्ट फायर से बची वन संपदा, 70 फीसदी कम हुई आग लगने की घटनाएं

हिमाचल में हर साल फायर सीजन में अरबों रुपये की वन संपदा जलकर राख हो जाती थी. इस बार पहले के मुकाबले फॉरेस्ट फायर की घटनाओं का ग्राफ बहुत तेजी से गिरा है. पिछले साल के मुकाबले वनों में आग लगने की घटनाएं 70% फीसदी कम हुई हैं.

forest fire
फॉरेस्ट फायर
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Published : Jun 17, 2020, 11:03 PM IST

Updated : Jun 18, 2020, 9:41 AM IST

शिमला: कोरोना के इस दौर में इंसान बेशक परेशान है, लेकिन पर्यावरण के लिए ये समय बेहद सुखद रहा है. हिमाचल में हर साल फायर सीजन में अरबों रुपये की वन संपदा जलकर राख हो जाती थी. इस बार पहले के मुकाबले फॉरेस्ट फायर की घटनाओं का ग्राफ बहुत तेजी से गिरा है. अप्रैल व मई के महीने में रुक-रुक कर हुई बारिश ने भी फॉरेस्ट फायर की घटनाओं को रोका है, लेकिन ये भी सच है कि जंगलों में इंसानी गतिविधियां न के बराबर थी और गलती से आग लगने वाली घटनाओं में कमी आई है.

आंकड़ों के लिहाज से हिमाचल प्रदेश में अप्रैल व मई के महीने में पिछले साल के मुकाबले वनों में आग लगने की घटनाएं 70% फीसदी कम हुई हैं. इस साल 15 अप्रैल से लेकर 15 जून तक आग की केवल 229 घटनाएं सामने आई हैं. 2019 में इसी अवधि में फॉरेस्ट फायर की 796 घटनाएं घटी थीं. हिमाचल प्रदेश अपने हरे-भरे वनों और अमूल्य वन संपदा के लिए विख्यात है. यहां ग्रीन फैलिंग पर रोक है यानी हरे पेड़ों की शाखा तक भी नहीं काटी जा सकती. ऐसे में हिमाचल का वन क्षेत्र लगातार बढ़ता रहता है. हिमाचल में कुल वन क्षेत्र का 26.40 फीसदी ग्रीन कवर के तौर पर है. हिमाचल की अमूल्य वन संपदा को फॉरेस्ट फायर से ही सबसे बड़ा खतरा है.

फायर के लिहाज से यह है सबसे संवेदनशील

हिमाचल की भौगोलिक स्थिति विकट है, लिहाजा वनों में आग लगने पर उसे बुझाने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. लोग भी अधिक घास उगाने के लालच में आग लगाते हैं. चीड़ की सूखी पत्तियों में भी गर्मियों के सीजन में जरा सी लापरवाही से आग लग जाती है. हिमाचल प्रदेश के वन विभाग के तहत फॉरेस्ट फायर के लिहाज से सबसे संवेदनशील वन मंडलों में डलहौजी, नूरपुर, जोगिंद्रनगर, पार्वती, बिलासपुर, शिमला, नाहन, सोलन, रामपुर, हमीरपुर, चंबा, धर्मशाला, मंडी, बंजार, कुनिहार, रेणुका, नालागढ़, आनी, देहरा, पालमपुर, सुंदरनगर, पांवटा, ऊना, नाचन, राजगढ़ और करसोग का नाम शामिल है.

वन संपदा को बचाने में एशिया में पहले राज्य

यदि हिमाचल की वन संपदा की बात की जाए तो यहां 1883 वर्ग किलोमीटर रिजर्व फॉरेस्ट है. ये कुल एरिया करीब 5 फीसदी है. इसके अलावा डिमार्केटेड प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट का क्षेत्रफल 12852 वर्ग किमी यानी 33.87 फीसदी है. साथ ही अन-डिमार्केटेड फॉरेस्ट 16035 वर्ग किमी है. कुल वन क्षेत्र 37948 वर्ग किलोमीटर है. वन संपदा को बचाने के लिए हिमाचल प्रदेश को एशिया में पहले राज्य होने का गौरव हासिल है, जिसे कार्बन क्रेडिट मिला है.

एक दशक में आग लगने की घटनाओं का ब्यौरा

वर्ष घटनाएं कुल प्रभावित क्षेत्र
2008-09 5726586.12
2009-10190624849.52
2010-118707837.63
2011-121681758.15
2012-13 179820773.97
2013-143973237.52
2014-157256726.40
2015-166725749.95
2016-17178919162.69
2017-186704586.47

शिमला: कोरोना के इस दौर में इंसान बेशक परेशान है, लेकिन पर्यावरण के लिए ये समय बेहद सुखद रहा है. हिमाचल में हर साल फायर सीजन में अरबों रुपये की वन संपदा जलकर राख हो जाती थी. इस बार पहले के मुकाबले फॉरेस्ट फायर की घटनाओं का ग्राफ बहुत तेजी से गिरा है. अप्रैल व मई के महीने में रुक-रुक कर हुई बारिश ने भी फॉरेस्ट फायर की घटनाओं को रोका है, लेकिन ये भी सच है कि जंगलों में इंसानी गतिविधियां न के बराबर थी और गलती से आग लगने वाली घटनाओं में कमी आई है.

आंकड़ों के लिहाज से हिमाचल प्रदेश में अप्रैल व मई के महीने में पिछले साल के मुकाबले वनों में आग लगने की घटनाएं 70% फीसदी कम हुई हैं. इस साल 15 अप्रैल से लेकर 15 जून तक आग की केवल 229 घटनाएं सामने आई हैं. 2019 में इसी अवधि में फॉरेस्ट फायर की 796 घटनाएं घटी थीं. हिमाचल प्रदेश अपने हरे-भरे वनों और अमूल्य वन संपदा के लिए विख्यात है. यहां ग्रीन फैलिंग पर रोक है यानी हरे पेड़ों की शाखा तक भी नहीं काटी जा सकती. ऐसे में हिमाचल का वन क्षेत्र लगातार बढ़ता रहता है. हिमाचल में कुल वन क्षेत्र का 26.40 फीसदी ग्रीन कवर के तौर पर है. हिमाचल की अमूल्य वन संपदा को फॉरेस्ट फायर से ही सबसे बड़ा खतरा है.

फायर के लिहाज से यह है सबसे संवेदनशील

हिमाचल की भौगोलिक स्थिति विकट है, लिहाजा वनों में आग लगने पर उसे बुझाने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. लोग भी अधिक घास उगाने के लालच में आग लगाते हैं. चीड़ की सूखी पत्तियों में भी गर्मियों के सीजन में जरा सी लापरवाही से आग लग जाती है. हिमाचल प्रदेश के वन विभाग के तहत फॉरेस्ट फायर के लिहाज से सबसे संवेदनशील वन मंडलों में डलहौजी, नूरपुर, जोगिंद्रनगर, पार्वती, बिलासपुर, शिमला, नाहन, सोलन, रामपुर, हमीरपुर, चंबा, धर्मशाला, मंडी, बंजार, कुनिहार, रेणुका, नालागढ़, आनी, देहरा, पालमपुर, सुंदरनगर, पांवटा, ऊना, नाचन, राजगढ़ और करसोग का नाम शामिल है.

वन संपदा को बचाने में एशिया में पहले राज्य

यदि हिमाचल की वन संपदा की बात की जाए तो यहां 1883 वर्ग किलोमीटर रिजर्व फॉरेस्ट है. ये कुल एरिया करीब 5 फीसदी है. इसके अलावा डिमार्केटेड प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट का क्षेत्रफल 12852 वर्ग किमी यानी 33.87 फीसदी है. साथ ही अन-डिमार्केटेड फॉरेस्ट 16035 वर्ग किमी है. कुल वन क्षेत्र 37948 वर्ग किलोमीटर है. वन संपदा को बचाने के लिए हिमाचल प्रदेश को एशिया में पहले राज्य होने का गौरव हासिल है, जिसे कार्बन क्रेडिट मिला है.

एक दशक में आग लगने की घटनाओं का ब्यौरा

वर्ष घटनाएं कुल प्रभावित क्षेत्र
2008-09 5726586.12
2009-10190624849.52
2010-118707837.63
2011-121681758.15
2012-13 179820773.97
2013-143973237.52
2014-157256726.40
2015-166725749.95
2016-17178919162.69
2017-186704586.47
Last Updated : Jun 18, 2020, 9:41 AM IST
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