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MIS बजट में भारी कटौती से मुश्किल में सुक्खू सरकार, राज्य सरकार को उठाना होगा पूरा बोझ - What is MIS Scheme

केंद्रीय सरकार ने एमआईएस बजट में भारी कटौती की है. जिसका सारा बोझ अब राज्य सरकार पर पड़ेगा. हिमाचल के बागवानों का इस मसले पर क्या कहना हैं और क्यों हिमाचल सरकार के लिए बढ़ेगी मुश्किल ? जानने के लिए पढ़ें पूरी ख़बर (MIS Budget reduce by central Govt) (MIS budget burden on Himachal Govt) (What is MIS Scheme)

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Published : Feb 10, 2023, 8:09 PM IST

शिमला: केंद्र सरकार के केंद्रीय बजट में मंडी मध्यस्थता योजना यानी एमआईएस के बजट में भारी कटौती करने से हिमाचल की सुखविंदर सिंह सरकार की परेशानी बढ़ गई है. हिमाचल में एमआईएस के तहत सेब और नींबू प्रजाति के फलों की खरीद की जाती है. जिसका भुगतान केंद्र और राज्य सरकार 50-50 फीसदी के हिसाब से करती हैं. मगर केंद्रीय बजट में कटौती करने से अब राज्य सरकार को इसका पूरा भुगतान अपने खजाने से करना पड़ेगा. हिमाचल की खराब आर्थिक स्थिति के चलते सरकार के लिए यह मुश्किल स्थिति है.

हिमाचल में सेब और नींबू प्रजाति के फलों के लिए लागू है एमआईएस- हिमाचल प्रदेश में एमआईएस साल 1987-88 से आरंभ की गई. मंडी मध्यस्थता योजना सरकार द्वारा बागवानों के लिए उन फसलों के लिए चलाई गई है, जिसका समर्थन मूल्य यानी एमएसपी नहीं दिया जाता. इनमें सेब, किन्नू, संतरा जैसे फलों या अन्य कुछ फसलों की खरीद होती है. हिमाचल में मुख्यतः सेब, नींबू प्रजाति के फलों की खरीद इसके तहत की जाती है ताकि मंडियों में इन फसलों के गिरते दामों को थामा जा सके. मंडियों में आढ़ती एमआईएस से नीचे के रेट नहीं गिरा पाते क्योंकि इतने रेट तो सरकार किसानों को देती है.

एमआईएस योजना के तहत सेब और नींबू प्रजाति के फलों की खरीद का भुगतान में राज्य और केंद्र की 50-50 हिस्सेदारी होती है
एमआईएस योजना के तहत सेब और नींबू प्रजाति के फलों की खरीद का भुगतान में राज्य और केंद्र की 50-50 हिस्सेदारी होती है

इस तरह इससे फलों या फसलों के दामों को मंडियों में भी स्थिर रखने में मदद मिलती है. सरकार हिमाचल प्रदेश बागवानी उत्पाद विपणन एवं प्रसंस्करण निगम यानी एचपीएमसी और हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारिता विपणन एवं उपभोक्ता फेडरेशन लिमिटेड यानी हिमफेड के माध्यम से फलों की खरीद करती है. हर साल फलों का सीजन शुरू होते ही प्रदेश के फल उत्पादक क्षेत्रों में ये दोनों सरकारी उपक्रम अपने डिपो खोल देते हैं.

सेब और नींबू प्रजाति के फलों लागू है एमआईएस योजना
सेब और नींबू प्रजाति के फलों लागू है एमआईएस योजना

हर साल करीब 100 करोड़ की खरीद- हिमाचल सरकार हर साल करीब 100 करोड़ के सेब और अन्य फलों की खरीद इस योजना के तहत करती है. पिछले सीजन यानी वर्ष 2022 में प्रदेश सरकार ने करीब 90 करोड़ रुपए के सेब और करीब 10 करोड़ रुपये के नींबू प्रजाति के फलों की खरीद मंडी मध्यस्थता योजना के तहत की है. केंद्र व राज्य सरकार इसके लिए 50:50 प्रतिशत के अनुपात में धन उपलब्ध कराती है, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इसके लिए उपलब्ध बजट को समाप्त करने से अब इस राशि के मिलने पर भी संकट पैदा हो सकता है. पिछले साल की बात करें तो सरकार ने सेब का एमआईएस मूल्य 10.50 रुपए किलो तय किया था. इसी तरह आम का मूल्य भी 10.50 रुपए प्रति किलो तय किया गया था. नींबू प्रजाति के बी ग्रेड का किन्नू, संतरा, माल्टा 9.50 रुपए और सी ग्रेड का खरीद मूल्य 9.0 रुपए तय किया गया था, जबकि गलगल का मूल्य 8 रुपए प्रति किलो तय किया गया था.

अब हिमाचल सरकार को ही उठाना होगा एमआईएस योजना का खर्च
अब हिमाचल सरकार को ही उठाना होगा एमआईएस योजना का खर्च

जम्मू कश्मीर की तर्ज पर एमआईएस लागू करने की मांग- हिमाचल में किसान और बागवान संगठन सेब सी ग्रेड का रेट बढ़ाने के साथ ही ए और बी किस्म का सेब भी एमआईएस के तहत खरीदने की लगातार मांग कर रहे हैं. जम्मू कश्मीर में एमआईएस के तहत ए ग्रेड सेब 60 रूपए, बी ग्रेड 44 रूपए और सी ग्रेड सेब का रेट 24 रुपए प्रति किलो तय किया गया है. हालांकि हिमाचल में अभी भी सी-ग्रेड के सेब का रेट 10.50 रुपए तय किया गया है.

केंद्र सरकार के बजट में कटौती करने के फैसले के बाद अब हिमाचल के किसानों को भी झटका लगा है. सरकार की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं है और सरकार भी बार-बार इसका हवाला दे रही है. वहीं अब एमआईएस के तहत केंद्र से मिलने वाला पैसा भी नहीं मिलेगा तो इससे सरकार पर इसका पूरा बोझ पड़ेगा. हिमाचल में फलों का सीजन अगले तीन चार माह में शुरू होने जा रहा है. सरकार के सामने नया संकट खड़ा हो गया क्योंकि केंद्र सरकार ने एक तरह से इस योजना को खत्म ही कर दिया है.

पिछले साल हिमाचल सरकार ने एमआईएस योजना के तहत 90 करोड़ के सेब खरीदे थे
पिछले साल हिमाचल सरकार ने एमआईएस योजना के तहत 90 करोड़ के सेब खरीदे थे

किसान संगठन केंद्र सरकार के सामने रखेंगे मसला- संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा मंडी मध्यस्थता योजना के बजट में कटौती करना दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष के बजट में 1550 करोड़ रूपए का प्रावधान करने की तुलना में इस बार मात्र एक लाख रुपए का ही प्रावधान किया गया है. जाहिर तौर पर यह योजना के कागजों का ही खर्च है. उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मंच केंद्र सरकार को इस बारे में पत्र लिख कर एमआईएस बजट बहाल करने की मांग करेगा. इसके साथ ही मुख्यमंत्री से मिलकर भी इस मामले को केंद्र सरकार के सामने रखने का आग्रह किया जाएगा. उन्होने कहा कि इस बारे में मंच सभी संबंधित किसान-बागवान संगठनों के साथ विचार विमर्श करेगा और फिर अगली रणनीति तय करेगा.

बागवान सरकार से करेंगे एमआईएस का बजट बढ़ाने की मांग
बागवान सरकार से करेंगे एमआईएस का बजट बढ़ाने की मांग

हिमाचल सरकार पर एमआईएस का बोझ- बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि एक ओर केंद्र सरकार खेती और बागवानी के लिए बजट में बहुत कुछ करने का दावा कर रही है, लेकिन सरकार ने एमआईएस में कटौती कर दी है. उन्होंने कहा कि अभी सरकार पर 83 करोड़ की देनदारी एमआईएस की देनदारी है, जिसमें पचास फीसदी हिमाचल सरकार को तो बाकी पचास फीसदी राशि केंद्र सरकार को देनी है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार एमआईएस को रोक नहीं सकती. सरकार इसे जारी रखेगी. हालांकि ऐसी स्थिति में एमआईएस का सारा बोझ राज्य सरकार पर आएगा.

ये भी पढ़ें: 'हालात ऐसे हैं कि पिछली सरकार के कर्ज को चुकाने के लिए लेना पड़ रहा कर्ज'

शिमला: केंद्र सरकार के केंद्रीय बजट में मंडी मध्यस्थता योजना यानी एमआईएस के बजट में भारी कटौती करने से हिमाचल की सुखविंदर सिंह सरकार की परेशानी बढ़ गई है. हिमाचल में एमआईएस के तहत सेब और नींबू प्रजाति के फलों की खरीद की जाती है. जिसका भुगतान केंद्र और राज्य सरकार 50-50 फीसदी के हिसाब से करती हैं. मगर केंद्रीय बजट में कटौती करने से अब राज्य सरकार को इसका पूरा भुगतान अपने खजाने से करना पड़ेगा. हिमाचल की खराब आर्थिक स्थिति के चलते सरकार के लिए यह मुश्किल स्थिति है.

हिमाचल में सेब और नींबू प्रजाति के फलों के लिए लागू है एमआईएस- हिमाचल प्रदेश में एमआईएस साल 1987-88 से आरंभ की गई. मंडी मध्यस्थता योजना सरकार द्वारा बागवानों के लिए उन फसलों के लिए चलाई गई है, जिसका समर्थन मूल्य यानी एमएसपी नहीं दिया जाता. इनमें सेब, किन्नू, संतरा जैसे फलों या अन्य कुछ फसलों की खरीद होती है. हिमाचल में मुख्यतः सेब, नींबू प्रजाति के फलों की खरीद इसके तहत की जाती है ताकि मंडियों में इन फसलों के गिरते दामों को थामा जा सके. मंडियों में आढ़ती एमआईएस से नीचे के रेट नहीं गिरा पाते क्योंकि इतने रेट तो सरकार किसानों को देती है.

एमआईएस योजना के तहत सेब और नींबू प्रजाति के फलों की खरीद का भुगतान में राज्य और केंद्र की 50-50 हिस्सेदारी होती है
एमआईएस योजना के तहत सेब और नींबू प्रजाति के फलों की खरीद का भुगतान में राज्य और केंद्र की 50-50 हिस्सेदारी होती है

इस तरह इससे फलों या फसलों के दामों को मंडियों में भी स्थिर रखने में मदद मिलती है. सरकार हिमाचल प्रदेश बागवानी उत्पाद विपणन एवं प्रसंस्करण निगम यानी एचपीएमसी और हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारिता विपणन एवं उपभोक्ता फेडरेशन लिमिटेड यानी हिमफेड के माध्यम से फलों की खरीद करती है. हर साल फलों का सीजन शुरू होते ही प्रदेश के फल उत्पादक क्षेत्रों में ये दोनों सरकारी उपक्रम अपने डिपो खोल देते हैं.

सेब और नींबू प्रजाति के फलों लागू है एमआईएस योजना
सेब और नींबू प्रजाति के फलों लागू है एमआईएस योजना

हर साल करीब 100 करोड़ की खरीद- हिमाचल सरकार हर साल करीब 100 करोड़ के सेब और अन्य फलों की खरीद इस योजना के तहत करती है. पिछले सीजन यानी वर्ष 2022 में प्रदेश सरकार ने करीब 90 करोड़ रुपए के सेब और करीब 10 करोड़ रुपये के नींबू प्रजाति के फलों की खरीद मंडी मध्यस्थता योजना के तहत की है. केंद्र व राज्य सरकार इसके लिए 50:50 प्रतिशत के अनुपात में धन उपलब्ध कराती है, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इसके लिए उपलब्ध बजट को समाप्त करने से अब इस राशि के मिलने पर भी संकट पैदा हो सकता है. पिछले साल की बात करें तो सरकार ने सेब का एमआईएस मूल्य 10.50 रुपए किलो तय किया था. इसी तरह आम का मूल्य भी 10.50 रुपए प्रति किलो तय किया गया था. नींबू प्रजाति के बी ग्रेड का किन्नू, संतरा, माल्टा 9.50 रुपए और सी ग्रेड का खरीद मूल्य 9.0 रुपए तय किया गया था, जबकि गलगल का मूल्य 8 रुपए प्रति किलो तय किया गया था.

अब हिमाचल सरकार को ही उठाना होगा एमआईएस योजना का खर्च
अब हिमाचल सरकार को ही उठाना होगा एमआईएस योजना का खर्च

जम्मू कश्मीर की तर्ज पर एमआईएस लागू करने की मांग- हिमाचल में किसान और बागवान संगठन सेब सी ग्रेड का रेट बढ़ाने के साथ ही ए और बी किस्म का सेब भी एमआईएस के तहत खरीदने की लगातार मांग कर रहे हैं. जम्मू कश्मीर में एमआईएस के तहत ए ग्रेड सेब 60 रूपए, बी ग्रेड 44 रूपए और सी ग्रेड सेब का रेट 24 रुपए प्रति किलो तय किया गया है. हालांकि हिमाचल में अभी भी सी-ग्रेड के सेब का रेट 10.50 रुपए तय किया गया है.

केंद्र सरकार के बजट में कटौती करने के फैसले के बाद अब हिमाचल के किसानों को भी झटका लगा है. सरकार की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं है और सरकार भी बार-बार इसका हवाला दे रही है. वहीं अब एमआईएस के तहत केंद्र से मिलने वाला पैसा भी नहीं मिलेगा तो इससे सरकार पर इसका पूरा बोझ पड़ेगा. हिमाचल में फलों का सीजन अगले तीन चार माह में शुरू होने जा रहा है. सरकार के सामने नया संकट खड़ा हो गया क्योंकि केंद्र सरकार ने एक तरह से इस योजना को खत्म ही कर दिया है.

पिछले साल हिमाचल सरकार ने एमआईएस योजना के तहत 90 करोड़ के सेब खरीदे थे
पिछले साल हिमाचल सरकार ने एमआईएस योजना के तहत 90 करोड़ के सेब खरीदे थे

किसान संगठन केंद्र सरकार के सामने रखेंगे मसला- संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा मंडी मध्यस्थता योजना के बजट में कटौती करना दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष के बजट में 1550 करोड़ रूपए का प्रावधान करने की तुलना में इस बार मात्र एक लाख रुपए का ही प्रावधान किया गया है. जाहिर तौर पर यह योजना के कागजों का ही खर्च है. उन्होंने कहा कि संयुक्त किसान मंच केंद्र सरकार को इस बारे में पत्र लिख कर एमआईएस बजट बहाल करने की मांग करेगा. इसके साथ ही मुख्यमंत्री से मिलकर भी इस मामले को केंद्र सरकार के सामने रखने का आग्रह किया जाएगा. उन्होने कहा कि इस बारे में मंच सभी संबंधित किसान-बागवान संगठनों के साथ विचार विमर्श करेगा और फिर अगली रणनीति तय करेगा.

बागवान सरकार से करेंगे एमआईएस का बजट बढ़ाने की मांग
बागवान सरकार से करेंगे एमआईएस का बजट बढ़ाने की मांग

हिमाचल सरकार पर एमआईएस का बोझ- बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि एक ओर केंद्र सरकार खेती और बागवानी के लिए बजट में बहुत कुछ करने का दावा कर रही है, लेकिन सरकार ने एमआईएस में कटौती कर दी है. उन्होंने कहा कि अभी सरकार पर 83 करोड़ की देनदारी एमआईएस की देनदारी है, जिसमें पचास फीसदी हिमाचल सरकार को तो बाकी पचास फीसदी राशि केंद्र सरकार को देनी है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार एमआईएस को रोक नहीं सकती. सरकार इसे जारी रखेगी. हालांकि ऐसी स्थिति में एमआईएस का सारा बोझ राज्य सरकार पर आएगा.

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