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हिमाचल में सियासी हलचल तेज, क्या बदले जाएंगे दोनों दलों के कप्तान? - हिमाचल भाजपा

प्रदेश में आने वाले उपचुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के अंदरखाने मतभेदों की अटकलों के बीच दोनों दलों के पार्टी अध्यक्ष बदले जाने के कयास लगाए जा रहे हैं.

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Published : Jun 6, 2021, 12:36 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश में पहले सत्ता का सेमीफाइनल हुआ. नगर निगम चुनावों के उस रण में भाजपा को कड़वा घूंट पीना पड़ा और अब तीन-तीन उप चुनाव आ रहे हैं. विधानसभा चुनाव भी अधिक दूर नहीं है. ऐसे में हिमाचल के दोनों प्रमुख सियासी दलों में खींचतान शुरू हो गई है. नौबत यहां तक पहुंच गई है कि इन चुनावों से पहले दोनों दलों के कप्तानों की कुर्सी खिसक सकती है. भाजपा में मुख्यमंत्री और भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी पर कब्जा जमाने की तिकड़में चलाई जा रही हैं, तो कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष से लेकर नेता प्रतिपक्ष के पद में बदलाव हो सकता है.

उपचुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज

प्रदेश में आने वाले उपचुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के अंदरखाने मतभेदों की अटकलों के बीच दोनों दलों के पार्टी अध्यक्ष बदले जाने के कयास लगाए जा रहे हैं. कांग्रेस में नेताओं की मुलाकात का दौर जारी है, लेकिन पार्टी के वर्तमान कप्तान गायब हैं. भाजपा में भी मंथन का दौर शुरू हो गया है. कभी संघ तो कभी हाईकमान के साथ मुख्यमंत्री की बैठकों ने सियासी हलचल तेज कर दी है.

खतरे में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी!

खेमों में बंटी कांग्रेस की बात करें तो एक खेमा सक्रिय हो गया है. वरिष्ठ नेता वीरभद्र सिंह के तबीयत खराब होने के बाद अब उनके नाम पर सेकंड लाइन ऑफ लीडरशिप अपना वजूद बचाने में जुट गए हैं. इस खेमे के नेताओं ने बैठकों का दौर शुरू कर दिया है. पहले ऊना में और फिर शिमला में नेताओं के बीच गहन मंथन हुए, लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गायब दिखे.

पार्टी आलाकमान के आशीर्वाद से प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचे राठौर काफी लंबे समय से वीरभद्र सिंह के खेमे में भी फिट बैठ गए थे, लेकिन अब ना तो वीरभद्र सिंह का खेमा उन्हें अपनी रणनीति में साझेदार बना रहा है और ना ही कांग्रेस के अन्य नेता उनको साथ लेकर चलने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं.

खतरे में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी

ऐसे में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी खतरे में दिखाई दे रही है. कांग्रेस के इतिहास पर नजर डालें तो पार्टी की तरफ से सीएम की कुर्सी पर ठाकुरों का दबदबा रहा है, लेकिन इस बार समीकरण कुछ बदले से नजर आ रहे हैं. इस बार पार्टी में ब्राह्मण लॉबी शिकंजा कसती नजर आ रही है. कांग्रेस में मुख्यमंत्री की कुर्सी का रास्ता कई दफा प्रदेशाध्यक्ष से होकर गुजरा है.

कांग्रेस में वीरभद्र सिंह के विरोधी धड़े की बात करें तो, ये सभी नेता फिलहाल शांत दिखाई दे रहे हैं. ना तो किसी मंथन में मौजूद हैं और ना ही किसी के समर्थन में. कोविड-19 के इस संकट काल में अपने विधानसभा क्षेत्रों में मौजूद रहकर अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में जुटे हैं. कुल मिलाकर कहे तो वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष के समर्थन में कांग्रेस का कोई भी धड़ा नहीं दिख रहा है.

संगठन में हो सकता है बदलाव
वर्तमान राजनीतिक हालातों में भाजपा की स्थिति भी कुछ ज्यादा बेहतर नहीं है. पहले पंचायत और फिर नगर निगम चुनावों में मिली शिकस्त के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पर हाईकमान की नजरें थोड़ी टेढ़ी होती लग रही है. निकाय चुनावों में मिली हार के बाद अब पार्टी हाईकमान उपचुनावों और आने वाले विधानसभा चुनावों में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. ऐसे में अगर संगठन और सरकार में कुछ बदलाव होता है तो शुरुआत पार्टी अध्यक्ष से ही होती दिख रही है.

प्रदेशाध्यक्ष की परफॉर्मेंस पर होगा रिव्यू

हाल ही में चंडीगढ़ आरएसएस मुख्यालय में हुई बैठकों से इशारा इसी तरफ जाता है. आरएसएस ने पहले प्रदेश भाजपा प्रभारी से नगर निगम चुनावों में हुई हार के लिए रणनीतिक चुप्पी पर जवाब मांगा और बाद में मुख्यमंत्री से रिपोर्ट तलब की. चंडीगढ़ के बाद अब दिल्ली में हाईकमान के साथ बैठक में हिमाचल भाजपा के भविष्य को लेकर बड़ा फैसला होने की संभावना है. दोनों ही बैठकों में जयराम ठाकुर की पसंद से बनाए गए प्रदेशाध्यक्ष की परफॉर्मेंस पर भी रिव्यू होना स्वाभाविक है.

हाईकमान कर सकती है बड़ा फेरबदल

मौजूदा हालात में भाजपा सरकार वन मैन आर्मी के रूप में आगे बढ़ रही है. अच्छा बुरा सब सीएम पर ही निर्धारित हो रहा है. शुरुआती दौर से ही संगठन को परखे तो आरएसएस की तरफ से दवाब जारी है. ऐसे में नगर निगम और पंचायती राज चुनावों में मिली हार के बाद अब उपचुनावों से पहले हाईकमान अपनी पसंद का प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त कर दे तो कोई हैरानी नहीं होगी.


ये भी पढ़ें: देवभूमि का नाम हुआ रोशन, पुमोरी चोटी फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बनी सोलन की बलजीत कौर

शिमला: हिमाचल प्रदेश में पहले सत्ता का सेमीफाइनल हुआ. नगर निगम चुनावों के उस रण में भाजपा को कड़वा घूंट पीना पड़ा और अब तीन-तीन उप चुनाव आ रहे हैं. विधानसभा चुनाव भी अधिक दूर नहीं है. ऐसे में हिमाचल के दोनों प्रमुख सियासी दलों में खींचतान शुरू हो गई है. नौबत यहां तक पहुंच गई है कि इन चुनावों से पहले दोनों दलों के कप्तानों की कुर्सी खिसक सकती है. भाजपा में मुख्यमंत्री और भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी पर कब्जा जमाने की तिकड़में चलाई जा रही हैं, तो कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष से लेकर नेता प्रतिपक्ष के पद में बदलाव हो सकता है.

उपचुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज

प्रदेश में आने वाले उपचुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के अंदरखाने मतभेदों की अटकलों के बीच दोनों दलों के पार्टी अध्यक्ष बदले जाने के कयास लगाए जा रहे हैं. कांग्रेस में नेताओं की मुलाकात का दौर जारी है, लेकिन पार्टी के वर्तमान कप्तान गायब हैं. भाजपा में भी मंथन का दौर शुरू हो गया है. कभी संघ तो कभी हाईकमान के साथ मुख्यमंत्री की बैठकों ने सियासी हलचल तेज कर दी है.

खतरे में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी!

खेमों में बंटी कांग्रेस की बात करें तो एक खेमा सक्रिय हो गया है. वरिष्ठ नेता वीरभद्र सिंह के तबीयत खराब होने के बाद अब उनके नाम पर सेकंड लाइन ऑफ लीडरशिप अपना वजूद बचाने में जुट गए हैं. इस खेमे के नेताओं ने बैठकों का दौर शुरू कर दिया है. पहले ऊना में और फिर शिमला में नेताओं के बीच गहन मंथन हुए, लेकिन इन सबके बीच कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गायब दिखे.

पार्टी आलाकमान के आशीर्वाद से प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचे राठौर काफी लंबे समय से वीरभद्र सिंह के खेमे में भी फिट बैठ गए थे, लेकिन अब ना तो वीरभद्र सिंह का खेमा उन्हें अपनी रणनीति में साझेदार बना रहा है और ना ही कांग्रेस के अन्य नेता उनको साथ लेकर चलने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं.

खतरे में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी

ऐसे में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी खतरे में दिखाई दे रही है. कांग्रेस के इतिहास पर नजर डालें तो पार्टी की तरफ से सीएम की कुर्सी पर ठाकुरों का दबदबा रहा है, लेकिन इस बार समीकरण कुछ बदले से नजर आ रहे हैं. इस बार पार्टी में ब्राह्मण लॉबी शिकंजा कसती नजर आ रही है. कांग्रेस में मुख्यमंत्री की कुर्सी का रास्ता कई दफा प्रदेशाध्यक्ष से होकर गुजरा है.

कांग्रेस में वीरभद्र सिंह के विरोधी धड़े की बात करें तो, ये सभी नेता फिलहाल शांत दिखाई दे रहे हैं. ना तो किसी मंथन में मौजूद हैं और ना ही किसी के समर्थन में. कोविड-19 के इस संकट काल में अपने विधानसभा क्षेत्रों में मौजूद रहकर अपनी सियासी जमीन मजबूत करने में जुटे हैं. कुल मिलाकर कहे तो वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष के समर्थन में कांग्रेस का कोई भी धड़ा नहीं दिख रहा है.

संगठन में हो सकता है बदलाव
वर्तमान राजनीतिक हालातों में भाजपा की स्थिति भी कुछ ज्यादा बेहतर नहीं है. पहले पंचायत और फिर नगर निगम चुनावों में मिली शिकस्त के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पर हाईकमान की नजरें थोड़ी टेढ़ी होती लग रही है. निकाय चुनावों में मिली हार के बाद अब पार्टी हाईकमान उपचुनावों और आने वाले विधानसभा चुनावों में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. ऐसे में अगर संगठन और सरकार में कुछ बदलाव होता है तो शुरुआत पार्टी अध्यक्ष से ही होती दिख रही है.

प्रदेशाध्यक्ष की परफॉर्मेंस पर होगा रिव्यू

हाल ही में चंडीगढ़ आरएसएस मुख्यालय में हुई बैठकों से इशारा इसी तरफ जाता है. आरएसएस ने पहले प्रदेश भाजपा प्रभारी से नगर निगम चुनावों में हुई हार के लिए रणनीतिक चुप्पी पर जवाब मांगा और बाद में मुख्यमंत्री से रिपोर्ट तलब की. चंडीगढ़ के बाद अब दिल्ली में हाईकमान के साथ बैठक में हिमाचल भाजपा के भविष्य को लेकर बड़ा फैसला होने की संभावना है. दोनों ही बैठकों में जयराम ठाकुर की पसंद से बनाए गए प्रदेशाध्यक्ष की परफॉर्मेंस पर भी रिव्यू होना स्वाभाविक है.

हाईकमान कर सकती है बड़ा फेरबदल

मौजूदा हालात में भाजपा सरकार वन मैन आर्मी के रूप में आगे बढ़ रही है. अच्छा बुरा सब सीएम पर ही निर्धारित हो रहा है. शुरुआती दौर से ही संगठन को परखे तो आरएसएस की तरफ से दवाब जारी है. ऐसे में नगर निगम और पंचायती राज चुनावों में मिली हार के बाद अब उपचुनावों से पहले हाईकमान अपनी पसंद का प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त कर दे तो कोई हैरानी नहीं होगी.


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