शिमला: आम आदमी पार्टी की नजर अब हिमाचल पर है. पहाड़ी राज्य हिमाचल के पड़ोसी पंजाब में शानदार सफलता के बाद आम आदमी पार्टी अब हिमाचल में पांव जमाना चाहती है. वैसे तो हिमाचल की जनता ने कभी तीसरे विकल्प को तरजीह नहीं दी है, लेकिन बदले राजनीतिक हालात में आम आदमी पार्टी को खारिज नहीं किया जा सकता. ये सही है कि आम आदमी पार्टी के पास अभी हिमाचल में मजबूत नेटवर्क नहीं है और उसे किसी बड़े चेहरे की तलाश भी है, लेकिन वो हिमाचल में गम्भीरता से शुरुआत करना चाहती है.
हिमाचल में पांव जमाना आप के लिए कठिन: पंजाब में भी एक दशक से अधिक समय तक संघर्ष करने के बाद आम आदमी पार्टी ने इस बार करिश्मा कर दिखाया है. वहीं, हिमाचल की तरह ही पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में अभी आम आदमी पार्टी को कोई सफलता नहीं मिली है. ऐसे में हिमाचल में भी पांव जमाना आप के लिए आसान नहीं होगा. फिर भी ये तय है कि आप ने पहाड़ का राजनीतिक ताप बढ़ा दिया है.
हिमाचल में अभी शिमला नगर निगम चुनाव (Shimla Municipal Corporation Election) हैं. यहां आप दस्तक दे रही है. इस चुनाव के परिणाम बताएंगे कि आप को हिमाचल शुरुआत में कैसे देख रहा है. फिर इसी साल विधानसभा चुनाव हैं. आप को आश है कि कांग्रेस और भाजपा के कुछ चेहरे पार्टी से अलग होकर उसके साथ मिल जाएंगे.उनमें सहारे आप यहां अपना प्रभाव जमाएगी. हिमाचल में आम आदमी पार्टी के पास अभी कार्यकर्ता जुटाने और जोड़ने की चुनौती है. भाजपा के पास कार्यकर्ताओं की बड़ी संख्या है. कांग्रेस के पास भी अच्छा संगठन है.
आपके सामने समय कम और चुनौतियां अधिक: चुनाव में उतरने से पहले आम आदमी पार्टी को हिमाचल में 7 हजार से अधिक मतदान केंद्रों से लेकर प्रदेश स्तर तक संगठन खड़ा करना होगा. हिमाचल में चुनाव को अभी 8 महीने का समय है. इस समय में संगठन से हजारों कार्यकर्ताओं को जोड़ कर पहाड़ पर चढ़ने की चुनौती के साथ-साथ प्रदेश में संगठनात्मक तौर पर मजबूत भाजपा व कांग्रेस का मुकाबला आम आदमी पार्टी को करना है.
हिमाचल के चुनावी इतिहास (Himachal assembly election history) को देखें तो 1998 से पहले व इसके बाद किसी भी तीसरे विकल्प को मतदाता नकारता रहा है. यह बात अलग है कि इक्का-दुक्का मौकों पर माकपा व भाकपा के उम्मीदवार यहां चुनाव जीतते रहे हैं. मगर सत्ता का संतुलन सिर्फ एक बार 1998 में पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस के हाथों में आया था. हिमाचल विकास कांग्रेस 1998 में 5 विधान सभा सीटें जीत गई थी.
पंजाब में कांग्रेस की अतर्कलह आप के लिए 'संजीवनी': अगर पंजाब की बात करें तो वहां आम आदमी पार्टी एक दशक से लगातार मेहनत कर रही है. दिल्ली के बाद से ही पार्टी के प्रमुख व रणनीतिकारों ने पंजाब पर फोकस किया हुआ था. पंजाब में जातीय समीकरणों के साथ-साथ कांग्रेस की अंतर्कलह से पार्टी को और मजबूती मिली. किसान आंदोलन के दम पर तैयार पिच पर आम आदमी पार्टी ने जमकर बैटिंग की और वह जीत गई. वहीं, उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party in Uttarakhand) ने चुनाव में उम्मीदवार उतारे, मगर पार्टी के प्रदेश के कार्यवाहक अध्यक्ष अजय कोठियाल भी हार गए.
हिमाचल में आप के लिए चुनौती: उत्तराखंड व हिमाचल की सियासत लगभग एक जैसी है. उत्तराखंड में भाजपा चुनाव जीत गयी.हिमाचल में मिशन रिपीट का दावा कर रही है. कांग्रेस इस बात के आसरे टिकी है कि एन्टी इन्कम्बेंसी उसके काम आएगी. साथ ही बारी बारी से सत्ता पलटने की परम्परा भी कांग्रेस याद रख रही है. वहीं, आप हिमाचल की राजनीतिक झील में कंकड़ फेंक कर अपनी लहरें गिनने का प्रयास कर रही है. देखना है कि पहाड़ पर आप कितना सियासी ताप बढ़ाती है.
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