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करसोग की कुल्थी और माश की होगी जीआई टैगिंग, देश विदेश में मिलेगी पहचान

करसोग विकासखंड के पांगना क्षेत्र के तहत छंडयारा गांव में सोमवार को पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम पर एक दिवसीय जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया. शिविर का आयोजन कृषि विज्ञान केंद्र सुंदरनगर और हिमालयन डेवलपमेंट सोसाइटी के सहयोग से किया गया.

जागरूकता शिविर का आयोजन
जागरूकता शिविर का आयोजन
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Published : Nov 23, 2020, 7:57 PM IST

Updated : Nov 23, 2020, 8:29 PM IST

करसोग/मंडी: करसोग विकासखंड के पांगना क्षेत्र के तहत छंडयारा गांव में सोमवार को पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम पर एक दिवसीय जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. वाईपी ठाकुर ने की. इस शिविर का आयोजन कृषि विज्ञान केंद्र सुंदरनगर और हिमालयन डेवलपमेंट सोसाइटी के सहयोग से किया गया.

इसमें करीब 300 किसानों ने भाग लिया. इस शिविर में स्थानीय विधायक हीरा लाल बतौर मुख्यातिथि उपस्थित हुए. डॉ. वाईपी ठाकुर ने बताया कि करसोग को पारंपरिक फसलों की पैदावार देने के लिए विश्वभर में जल्द ही नई पहचान मिलेगी. यहां की पारंपरिक फसलों कुल्थी, माश व अन्य फसलों को अब जीआई टैगिंग के तहत लाया जाएगा, जिससे क्षेत्र के इन उत्पादों की ब्रांडिंग की जा सके.

जागरूकता शिविर
जागरूकता शिविर

देश व विदेश में इन उत्पादों की नई पहचान मिलेगी और किसानों को भी फसलों के उचित दाम मिलेंगे, जिससे किसान आर्थिक तौर पर समृद्ध होंगे. इसके लिए किसानों को कुल्थी, माश, राजमाह, लाल धान व लहसुन जैसी पारंपरिक फसलों के पंजीकरण की सलाह दी गई है. डॉ कृषि वाईपी ठाकुर ने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के अधीन 8 जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र काम कर रहे हैं, जो किसानों को नवीनतम कृषि संबंधी जानकारी दे रहे हैं.

डॉ वाईपी ठाकुर ने कहा कि खेती से अधिक लाभ अर्जित करने के लिए किसान कृषि विज्ञान केंद्रों में कार्यरत वैज्ञानिकों के संपर्क में रहें. प्रदेश का हर किसान खुशहाल व आत्मनिर्भर बने. इसी संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्रों में कार्यरत वैज्ञानिकों को दूरदराज के क्षेत्रों में पहुंच कर किसानों को कृषि की आधुनिक तकनीकों को पहुंचाने के निर्देश दिए. इस मौके पर हीरालाल ने कहा कि करसोग क्षेत्र में किसान बहुत सी पारंपरिक फसलें ले रहे हैं.

डॉ वाईपी ठाकुर ने कहा कि आधुनिक खेती के तरीकों के साथ-साथ किसानों को अपनी परंपरागत फसलों की खेती को निरंतर जारी रखना चाहिए. इस क्षेत्र में उगाई जाने वाली विभिन्न लोकल फसलें जैसे माह, कुल्थी आदि की देश में अत्याधिक मांग है. इन फसलों की खेती से किसानों की आर्थिकी सुदृढ़ हो सकती है. उन्होंने युवाओं के लिए पंचायत स्तर में नगदी फसलों पर व्यवसायिक प्रशिक्षण आयोजित करने का भी सुझाव दिया, जिससे युवा किसान खेती को लाभप्रद व्यवसाय के तौर पर अपना सकें.

करसोग/मंडी: करसोग विकासखंड के पांगना क्षेत्र के तहत छंडयारा गांव में सोमवार को पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम पर एक दिवसीय जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. वाईपी ठाकुर ने की. इस शिविर का आयोजन कृषि विज्ञान केंद्र सुंदरनगर और हिमालयन डेवलपमेंट सोसाइटी के सहयोग से किया गया.

इसमें करीब 300 किसानों ने भाग लिया. इस शिविर में स्थानीय विधायक हीरा लाल बतौर मुख्यातिथि उपस्थित हुए. डॉ. वाईपी ठाकुर ने बताया कि करसोग को पारंपरिक फसलों की पैदावार देने के लिए विश्वभर में जल्द ही नई पहचान मिलेगी. यहां की पारंपरिक फसलों कुल्थी, माश व अन्य फसलों को अब जीआई टैगिंग के तहत लाया जाएगा, जिससे क्षेत्र के इन उत्पादों की ब्रांडिंग की जा सके.

जागरूकता शिविर
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देश व विदेश में इन उत्पादों की नई पहचान मिलेगी और किसानों को भी फसलों के उचित दाम मिलेंगे, जिससे किसान आर्थिक तौर पर समृद्ध होंगे. इसके लिए किसानों को कुल्थी, माश, राजमाह, लाल धान व लहसुन जैसी पारंपरिक फसलों के पंजीकरण की सलाह दी गई है. डॉ कृषि वाईपी ठाकुर ने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के अधीन 8 जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र काम कर रहे हैं, जो किसानों को नवीनतम कृषि संबंधी जानकारी दे रहे हैं.

डॉ वाईपी ठाकुर ने कहा कि खेती से अधिक लाभ अर्जित करने के लिए किसान कृषि विज्ञान केंद्रों में कार्यरत वैज्ञानिकों के संपर्क में रहें. प्रदेश का हर किसान खुशहाल व आत्मनिर्भर बने. इसी संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्रों में कार्यरत वैज्ञानिकों को दूरदराज के क्षेत्रों में पहुंच कर किसानों को कृषि की आधुनिक तकनीकों को पहुंचाने के निर्देश दिए. इस मौके पर हीरालाल ने कहा कि करसोग क्षेत्र में किसान बहुत सी पारंपरिक फसलें ले रहे हैं.

डॉ वाईपी ठाकुर ने कहा कि आधुनिक खेती के तरीकों के साथ-साथ किसानों को अपनी परंपरागत फसलों की खेती को निरंतर जारी रखना चाहिए. इस क्षेत्र में उगाई जाने वाली विभिन्न लोकल फसलें जैसे माह, कुल्थी आदि की देश में अत्याधिक मांग है. इन फसलों की खेती से किसानों की आर्थिकी सुदृढ़ हो सकती है. उन्होंने युवाओं के लिए पंचायत स्तर में नगदी फसलों पर व्यवसायिक प्रशिक्षण आयोजित करने का भी सुझाव दिया, जिससे युवा किसान खेती को लाभप्रद व्यवसाय के तौर पर अपना सकें.

Last Updated : Nov 23, 2020, 8:29 PM IST
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