मंडीः मंडी जनपद की देव व मानस मिलन का अनूठा संगम है. शिवरात्रि महोत्सव में पधारने वाले हर देवी-देवता का राज परिवार में विशेष स्थान होता है. हर देवी-देवता का अपना एक इतिहास है, जिस कारण आज भी लोगों में इनकी आस्था बनी हुई है. मंडी मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर तरौर नामक स्थान पर श्रीदेव मांहूनाग का लकड़ी और पत्थर से निर्मित प्राचीन शैली का मंदिर है. लोगों का मानना है कि देव माहूनाग सर्प के काटने पर भक्तों की रक्षा करते हैं और विष को हर लेते हैं.
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देव मांहूनाग को कहा जाता है विष का भंडारी
मंदिर के पुजारी दीना नाथ शर्मा ने बताया कि देव माहूंनाग का प्राचीन मंदिर जबराट जंगल में विराजमान हैं. प्राचीन समय में वहां दो चबूतरे मिले थे. एक चबूतरे पर देव माहूंनाग के कड़ोले व त्रिशूल और दूसरे चबूतरे पर देवता का मंदिर निर्मित है. देव मांहूनाग को विष का भंडारी कहा जाता है. अगर किसी को सांप, बिच्छू और पागल कुत्ता या विषैली चीज ने काट लिया, तो देवता को गाय के गोबर से चौका लगा याद किया जाता है. इसमें छोटा पत्थर श्रद्धानुसार दक्षिणा रख कर बांधा जाता है और फिर देवता के आदेशानुसार चरणामृत व विभूति खाने को दी जाती है. इसके बाद रोगी ठीक हो जाता है.
ऋषि पंचमी को देवता उत्पत्ति उत्सव
देवता उत्पत्ति उत्सव ऋषि पंचमी को मनाया जाता है. इसके साथ ही देवता के पास चैत्र नवरात्रों में दुर्गा पाठ का आयोजन होता है. आश्विन मास को व चैत्र के नवरात्रों को जाग का आयोजन होता है और तीसरे नवरात्रे को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है.
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