करसोग: देवभूमि हिमाचल के जिला मंडी के तहत अपनी अनूठी संस्कृति और रीति रिवाजों के लिए विख्यात करसोग में बूढ़ी दिवाली का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. यहां बुधवार की आधी रात को ग्रामीण क्षेत्रों च्वासी क्षेत्र के महोग, खन्योल च्वासी मंदिर व कांडी कौजौन ममलेश्वर महादेव देव थनाली मंदिर में लोगों ने देवदार और चीड़ की लकड़ियों की मशालेंं जलाकर रोशनी की और फिर ढोल नगाड़ों की थाप पर नृत्य करते हुए गांव की परिक्रमा कर दशकों पुरानी लोक परंपरा को निभाया. (Budhi Diwali celebrate in karsog) (Karsog budhi diwali) (Mashaal lit in Karsog budhi diwali)
लोकगीतों के साथ त्योहार का समापन: शाम के समय देव थनाली नाग माहूं बनेछ के नृत्य के साथ बूढ़ी दिवाली मानने का पर्व शुरू हुआ और हाथों में मशालें लेकर गांव की परिक्रमा पूर्ण करने के बाद वीरवार तड़के लोगों के वापस मंदिर में लौटने पर लोक नृत्य के साथ पर्व संपन्न हुआ. ममलेश्वर महादेव मंदिर देव थनाली के कारदार युवराज ठाकुर ने बताया कि गांव में अन्न धन और सुख समृद्धि की कामना के लिए दिन के समय मंदिर में भंडारे का भी आयोजन रखा गया है.
देव गुरों ने किया ठंडे पानी में स्नान: बूढ़ी दिवाली के उपलक्ष्य में कांडी कौजौन ममलेश्वर महादेव देव थनाली मंदिर में रात को भंडारे के बाद गुरों में देवता आने के बाद उन्होंने खेलते हुए करीब 10 फीट गहरी बावड़ी में छलांग लगाकर कड़ाके की सर्दी में ठंडे पानी में स्नान किया. इसके बाद जयकारों के साथ आधी रात को करीब 1 बजे ग्रामीणों ने दरेछ (मशालें) जलाकर गांव की परिक्रमा की और सुबह करीब 4 बजे वापस मंदिर में लौट आए. इस दौरान लोगों ने गांव में खुशहाली और शांति बनाए रखने के लिए देवता से आशीर्वाद लिया.
क्यों मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली: मान्यता है कि भगवान राम जब 14 वर्ष बाद लंका पर विजय प्राप्त करके दिवाली के दिन वापस अयोध्या पहुंचे थे तो लोगों को इसकी जानकारी एक महीने बाद मिली दी. जिस कारण करसोग के कई ग्रामीण इलाकों में दिवाली के एक महीने बाद बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा है.
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