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3 महीने में चार्जशीट पेश नहीं कर पाई पुलिस, दुराचार का आरोपी जमानत पर रिहा - बलात्कार का आरोपी जमानत पर रिहा

अतिरिक्त सत्र न्यायधीश (1) हंस राज के न्यायलय ने सदर तहसील के सकोर (नसलोह) निवासी गगन कुमार पुत्र मान सिंह की जमानत याचिका को स्वीकारते हुए उसे एक-एक लाख दो की जमानती राशियों सहित रिहा करने का आदेश दिया है.

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Published : Jun 13, 2019, 7:52 AM IST

मंडीः अदालत ने पुलिस द्वारा एक याचिकाकर्ता के खिलाफ 90 दिनों में चार्जशीट पेश न करने पर उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है. अदालत ने चार्जशीट पेश करने में देरी को याचिकाकर्ता की डिफाल्ट बेल के लिए समाप्त न होने वाला (अलोप्य) अधिकार मानते उसे सशर्त रिहा करने के आदेश दिए हैं.

अतिरिक्त सत्र न्यायधीश (1) हंस राज के न्यायलय ने सदर तहसील के सकोर (नसलोह) निवासी गगन कुमार पुत्र मान सिंह की जमानत याचिका को स्वीकारते हुए उसे एक-एक लाख दो की जमानती राशियों सहित रिहा करने का आदेश दिया है.

अधिवक्ता समीर कश्यप के माध्यम से अदालत में दायर याचिका के अनुसार पुलिस ने याचिकाकर्ता को दुराचार के एक मामले में हिरासत में लिया था, लेकिन पुलिस ने याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट अदालत में पेश नहीं की थी. जिसके चलते उन्होंने डिफाल्ट बेल के लिए अदालत में जमानत याचिका दायर की थी.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता ने निचली अदालत में जमानत याचिका दायर की थी, लेकिन निचली अदालत में यह याचिका इस आधार पर खारिज कर दी थी कि पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ 22 फरवरी 2014 को अंतिम रिपोर्ट अदालत में पेश कर दी थी.

अतिरिक्त सत्र न्यायलय ने अपने फैसले में कहा कि जब साल 2014 में चार्जशीट पेश की गई थी. उस समय उसे गिरफ्तार नहीं किया गया था और वह हिरासत में नहीं था. उस समय याचिकाकर्ता को भगौडा अपराधी घोषित किया गया था और यह चार्जशीट उसकी अनुपस्थिती में पेश की गई थी.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167 के तहत 60 या 90 दिनों की अवधि में चार्जशीट पेश न करने पर डिफाल्ट बेल का प्रावधान है. पुलिस को हिरासत में लिए जाने के बाद उक्त अवधि में अदालत में चार्जशीट पेश करनी होती है. ऐसा न करने पर याचिकाकर्ता को डिफाल्ट बेल का समाप्त नहीं होने वाला अधिकार प्राप्त हो जाता है.

बता दें कि भले ही बाद में चार्जशीट क्यों न पेश कर दी जाए. इस मामले में पुलिस ने याचिकाकर्ता को 13 जून 2018 को हिरासत में लिया था, लेकिन पुलिस ने 2 जनवरी 2019 को चार्जशीट अदालत में पेश की गई. इस तरह चार्जशीट 90 दिनों से बहुत दिनों बाद पेश की गई.

फिलहाल अब अदालत ने उच्चतम न्यायलय की राकेश कुमार पॉल बनाम स्टेट ऑफ आसाम में दी गई व्यवस्था के तहत याचिकाकर्ता की जमानत याचिका को डिफाल्ट बेल के लिए उपयुक्त मानते हुए उसे दो जमानती राशियों पर रिहा करने का फैसला सुनाया है.

पढ़ेंः नाहन के जंगल में संदिग्ध हालत में मिला युवक का शव, जांच में जुटी पुलिस

मंडीः अदालत ने पुलिस द्वारा एक याचिकाकर्ता के खिलाफ 90 दिनों में चार्जशीट पेश न करने पर उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है. अदालत ने चार्जशीट पेश करने में देरी को याचिकाकर्ता की डिफाल्ट बेल के लिए समाप्त न होने वाला (अलोप्य) अधिकार मानते उसे सशर्त रिहा करने के आदेश दिए हैं.

अतिरिक्त सत्र न्यायधीश (1) हंस राज के न्यायलय ने सदर तहसील के सकोर (नसलोह) निवासी गगन कुमार पुत्र मान सिंह की जमानत याचिका को स्वीकारते हुए उसे एक-एक लाख दो की जमानती राशियों सहित रिहा करने का आदेश दिया है.

अधिवक्ता समीर कश्यप के माध्यम से अदालत में दायर याचिका के अनुसार पुलिस ने याचिकाकर्ता को दुराचार के एक मामले में हिरासत में लिया था, लेकिन पुलिस ने याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट अदालत में पेश नहीं की थी. जिसके चलते उन्होंने डिफाल्ट बेल के लिए अदालत में जमानत याचिका दायर की थी.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता ने निचली अदालत में जमानत याचिका दायर की थी, लेकिन निचली अदालत में यह याचिका इस आधार पर खारिज कर दी थी कि पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ 22 फरवरी 2014 को अंतिम रिपोर्ट अदालत में पेश कर दी थी.

अतिरिक्त सत्र न्यायलय ने अपने फैसले में कहा कि जब साल 2014 में चार्जशीट पेश की गई थी. उस समय उसे गिरफ्तार नहीं किया गया था और वह हिरासत में नहीं था. उस समय याचिकाकर्ता को भगौडा अपराधी घोषित किया गया था और यह चार्जशीट उसकी अनुपस्थिती में पेश की गई थी.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167 के तहत 60 या 90 दिनों की अवधि में चार्जशीट पेश न करने पर डिफाल्ट बेल का प्रावधान है. पुलिस को हिरासत में लिए जाने के बाद उक्त अवधि में अदालत में चार्जशीट पेश करनी होती है. ऐसा न करने पर याचिकाकर्ता को डिफाल्ट बेल का समाप्त नहीं होने वाला अधिकार प्राप्त हो जाता है.

बता दें कि भले ही बाद में चार्जशीट क्यों न पेश कर दी जाए. इस मामले में पुलिस ने याचिकाकर्ता को 13 जून 2018 को हिरासत में लिया था, लेकिन पुलिस ने 2 जनवरी 2019 को चार्जशीट अदालत में पेश की गई. इस तरह चार्जशीट 90 दिनों से बहुत दिनों बाद पेश की गई.

फिलहाल अब अदालत ने उच्चतम न्यायलय की राकेश कुमार पॉल बनाम स्टेट ऑफ आसाम में दी गई व्यवस्था के तहत याचिकाकर्ता की जमानत याचिका को डिफाल्ट बेल के लिए उपयुक्त मानते हुए उसे दो जमानती राशियों पर रिहा करने का फैसला सुनाया है.

पढ़ेंः नाहन के जंगल में संदिग्ध हालत में मिला युवक का शव, जांच में जुटी पुलिस

Intro:मंडी। अदालत ने पुलिस द्वारा एक याचिकाकर्ता के खिलाफ 90 दिनों में चार्जशीट पेश न करने पर उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। अदालत ने चार्जशीट पेश करने में देरी को याचिकाकर्ता की डिफाल्ट बेल के लिए समाप्त न होने वाला (अलोप्य) अधिकार मानते उसे सशर्त रिहा करने के आदेश दिये हैं।


Body:अतिरिक्त सत्र न्यायधीश (1) हंस राज के न्यायलय ने सदर तहसील के सकोर (नसलोह) निवासी गगन कुमार पुत्र मान सिंह की जमानत याचिका को स्वीकारते हुए उसे एक-एक लाख दो जमानती राशियों सहित रिहा करने का आदेश दिया है। अधिवक्ता समीर कश्यप के माध्यम से अदालत में दायर याचिका के अनुसार पुलिस ने याचिकाकर्ता को दुराचार के एक मामले में हिरासत में लिया था, लेकिन पुलिस ने याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट अदालत में पेश नहीं की थी। जिसके चलते उन्होंने डिफाल्ट बेल के लिए अदालत में जमानत याचिका दायर की थी। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता ने निचली अदालत में जमानत याचिका दायर की थी, लेकिन निचली अदालत में यह याचिका इस आधार पर खारिज कर दी थी कि पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ 22 फरवरी 2014 को अंतिम रिपोर्ट अदालत में पेश कर दी थी। अतिरिक्त सत्र न्यायलय ने अपने फैसले में कहा कि जब साल 2014 में चार्जशीट पेश की गई थी उस समय उसे गिरफ्तार नहीं किया गया था और वह हिरासत में नहीं था। उस समय याचिकाकर्ता को भगौडा अपराधी घोषित किया गया था और यह चार्जशीट उसकी अनुपस्थिती में पेश की गई थी। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167 के तहत 60 या 90 दिनों की अवधि में चार्जशीट पेश न करने पर डिफाल्ट बेल का प्रावधान है। पुलिस को हिरासत में लिये जाने के बाद उक्त अवधि में अदालत में चार्जशीट पेश करनी होती है। ऐसा न करने पर याचिकाकर्ता को डिफाल्ट बेल का समाप्त नहीं होने वाला अधिकार प्राप्त हो जाता है। भले ही बाद में चार्जशीट क्यों न पेश कर दी जाए। इस मामले में पुलिस ने याचिकाकर्ता को 13 जून 2018 को हिरासत में लिया था। लेकिन पुलिस ने 2 जनवरी 2019 को चार्जशीट अदालत में पेश की गई। इस तरह चार्जशीट 90 दिनों से बहुत दिनों बाद पेश की गई।


Conclusion:अदालत ने उच्चतम न्यायलय की राकेश कुमार पॉल बनाम स्टेट ऑफ आसाम में दी गई व्यवस्था के तहत याचिकाकर्ता की जमानत याचिका को डिफाल्ट बेल के लिए उपयुक्त मानते हुए उसे दो जमानती राशियों पर रिहा करने का फैसला सुनाया है।

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