कुल्लू: अभिवादन का पर्व फागली उत्सव लाहौल घाटी में चंद्रमास की प्रथम तिथि की अमावस्या को धार्मिक हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. बर्फ से लकदक घाटी में ग्रामीणों ने आकर्षक परिधानों में सज-धज कर घरों में बारी-बारी जाकर पारंपारिक पकवानों का आदान-प्रदान किया.
बता दें कि इसके बाद गांव से सभी घरों में फागली के दिन घाटी के सभी कनिष्ठ लोगों ने अपने निकट संबंधियों, गांववासियों, बुजुर्गों और ज्येष्ठ लोगों को जातीय और आयु की वरीयता के मुताबिक आदर, सम्मान व श्रद्धा अभिव्यक्त कर नमस्कार करने का रस्म निभाया. वहीं, जिला कुल्लू में भी फागली उत्सव की धूम रही. जिसमें लोगों ने अपने घरों में राजा बली, चांद, सूरज, कुलज देवता, लक्ष्मी तथा स्वास्तिक चिन्ह अंकित कर पूजा अर्चना करने के बाद इष्ट देवों से सुख-स्मृद्धि व खुशहाली की कामना की.
ऐसी मान्यता है कि सर्दियों में बर्फ अधिक पड़ती थी और लोग कई महीनों तक एक-दूसरे से अलग-थलग पड़ जाते थे. सर्दियों में राक्षसों व आसुरी शक्तियों का आतंक बढ़ जाने के कारण लोग घरों से बाहर कम ही निकलते थे. इसलिए लोग इष्ट देवों से प्रार्थना करते थे कि सुरक्षित रहे तो चंद्रमास की प्रथम तिथि को एक-दूसरे का हाल जानेंगे और इक्कठे होकर देवी-देवताओं सहित बुजुर्गों से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे. वहीं, फागली से एक दिन पूर्व कुहमग मनाया गया. इसमें तरह-तरह के पारंपारिक पकवान नमकीन मीठे मन्ना, मार्चू, सिड्डू इत्यादि परोसे गए.
गौर रहे कि लाहौल के भिन्न-भिन्न घाटी के लोगों ने इस त्यौहार को अलग नाम दिए हैं. जैसे कुंहन, कुस, फागली, लोसर तथा जुकारी आदि. लाहौल में अभिवादन दैनिक शिष्टाचार का अंग रहा है. इसी लिए इस पर्व ने अब वार्षिक पर्व का रुप धारण कर लिया है. फागली त्यौहार के दिन सभी कनिष्ठ लोग अपने निकट संबंधियों, गांववासियों, बुर्जुर्गों और जयेष्ठ लोगों को जातीय और आयुगत वरीयता के मुताबिक आदर सम्मान, नमस्कार एवं श्रद्धा को अभिव्यक्त करने का रस्म निभाएंगे. इस सभी प्रकिया को ढाल कहा जाता है.
फागली के दिन दीवार के कोने में बराजा स्थापित किया जाएगा. जिस में राजा बलि राज, चांद, सूरज, स्थानीय देवता, लक्ष्मी, तथा स्वास्तिक आदि अंकित कर पूजा अर्चना की जाएगी. परंपरा को निभाते हुए लाहुली तीज त्यौहार फागली के दिन अपने इष्ट देवों से सुख स समृद्धि का आर्शीवाद लेंगे.