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अनछुआ हिमाचल: देवभूमि के ये खूबसूरत पर्यटक स्थल ताक रहे विकास की राह, शांघड़ की सुंदरता को कब लगेंगे चार चांद

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Published : Jul 27, 2019, 12:39 PM IST

जिला कुल्लू के पर्यटन स्थल शांघड़ की खुबसुरती देखते ही बनती है. देवदार के पेड़ों के बीच शांगड़ मैदान ऊंची-ऊंची बर्फीली वादियों का दीदार मन को मोह लेने वाला होता है. लेकिन यहां सुविधाओं की कमी के चलते बहुत से पर्यटक इस स्थान का दीदार नहीं कर पाते.

डिजाइन फोटो.

कुल्लू: हिमाचल को ईश्वर ने अपार प्राकृतिक सुंदरता से तराशा है. बर्फीली वादियों से ढके पहाड़, ऊंचे-ऊंचे देवदार के पेड़, नदियां, झीलें और हिमाचल के भोले-भाले लोग पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. लेकिन ये दुर्भाग्य की बात है कि हिमाचल पहुंचने वाले सैलानी महज़ कुछ ही पर्यटक स्थलों से रूबरू हो पाते हैं.

जिला कुल्लू के पर्यटन स्थल शांघड़ की खुबसुरती देखते ही बनती है. देवदार के पेड़ों के बीच शांगड़ मैदान ऊंची-ऊंची बर्फीली वादियों का दीदार मन को मोह लेने वाला होता है. लेकिन यहां सुविधाओं की कमी के चलते बहुत से पर्यटक इस स्थान का दीदार नहीं कर पाते.

वीडियो.

कुल्लू से 58 किलोमीटर की दूरी पर बसा शांघड़ गांव सैंज घाटी के अंतिम छोर पर है. एक हजार से अधिक आबादी वाले शांघड़ को अपने मैदान से पहचान मिली है. लगभग 228 बीघा में फैला शांघड़ मैदान सुंदरता में चंबा के खज्जियार से कम नहीं है.

ये मैदान यहां के स्थानीय देवता शंगचुल महादेव का आवास स्थल है. मान्यता है कि इस मैदान पर देवता के आदेशों की पालना न होने पर स्थानीय लोगों को देवता का क्रोध झेलना पड़ता है. देवता की पूरी जमीन का आधा हिस्सा ऐसा है जो ब्राह्मण, पुजारी, मुजारों, बजंतरी, गुर और देव कारकूनों को दिया गया है. वहीं, आधा हिस्सा गौ चारे के रूप में खाली रखा गया है.

shanghad
शांघड़ मैदान.

शांघड़ पंचायत विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क क्षेत्र में होने की वजह से भी प्रसिद्ध है. मैदान में गंदगी फैलाने, शराब पीकर आने, पुलिस और वन विभाग के कर्मचारियों के बेल्ट और टोपी पहनकर आने पर मनाही है. इस क्षेत्र में स्थानीय लोगों का प्रवेश भी वर्जित है.

मान्यता है कि शांघड़ मैदान का इतिहास पांडवों के जीवन काल से जुड़ा है. अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय शांघड़ में भी बिताया. इस दौरान उन्होंने यहां धान की खेती के लिए मिट्टी छानकर खेत तैयार किए. वह खेत आज भी विशाल शांघड़ मैदान के रूप में वैसे ही मौजूद हैं.

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शांघड़ मैदान में शंगचुल महादेव का मंदिर.

मैदान पर घोड़े के प्रवेश पर भी मनाही है. यदि किसी का घोड़ा शंगचुल देवता के निजी क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उसके मालिक को जुर्माना देना पड़ता है या फिर देवता कमेटी की ओर से उसके खिलाफ कार्रवाई अमल में लाई जाती है.

प्रदेश सरकार ने नए पर्यटन स्थलों को विकसित करने की दिशा में नई राहें नई मंजिलें अभियान तो शुरू किया है. अपार प्राकृतिक सौंदर्य से नवाजा गया शांघड़ में आज भी सुविधाओं का अभाव है. लेकिन, सैंज घाटी के शांघड़ को जाने वाली सड़कें अभी भी कच्ची है और बरसात के दिनों में तो सड़क दलदल में तब्दील हो जाती है. अगर सरकार शांघड़ एक नए पर्यटन स्थल के रूप में उभार पाता तो यहां पर्यटन कारोबार का नजारा कुछ और ही होता और स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया होता.

कुल्लू: हिमाचल को ईश्वर ने अपार प्राकृतिक सुंदरता से तराशा है. बर्फीली वादियों से ढके पहाड़, ऊंचे-ऊंचे देवदार के पेड़, नदियां, झीलें और हिमाचल के भोले-भाले लोग पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. लेकिन ये दुर्भाग्य की बात है कि हिमाचल पहुंचने वाले सैलानी महज़ कुछ ही पर्यटक स्थलों से रूबरू हो पाते हैं.

जिला कुल्लू के पर्यटन स्थल शांघड़ की खुबसुरती देखते ही बनती है. देवदार के पेड़ों के बीच शांगड़ मैदान ऊंची-ऊंची बर्फीली वादियों का दीदार मन को मोह लेने वाला होता है. लेकिन यहां सुविधाओं की कमी के चलते बहुत से पर्यटक इस स्थान का दीदार नहीं कर पाते.

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कुल्लू से 58 किलोमीटर की दूरी पर बसा शांघड़ गांव सैंज घाटी के अंतिम छोर पर है. एक हजार से अधिक आबादी वाले शांघड़ को अपने मैदान से पहचान मिली है. लगभग 228 बीघा में फैला शांघड़ मैदान सुंदरता में चंबा के खज्जियार से कम नहीं है.

ये मैदान यहां के स्थानीय देवता शंगचुल महादेव का आवास स्थल है. मान्यता है कि इस मैदान पर देवता के आदेशों की पालना न होने पर स्थानीय लोगों को देवता का क्रोध झेलना पड़ता है. देवता की पूरी जमीन का आधा हिस्सा ऐसा है जो ब्राह्मण, पुजारी, मुजारों, बजंतरी, गुर और देव कारकूनों को दिया गया है. वहीं, आधा हिस्सा गौ चारे के रूप में खाली रखा गया है.

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शांघड़ मैदान.

शांघड़ पंचायत विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क क्षेत्र में होने की वजह से भी प्रसिद्ध है. मैदान में गंदगी फैलाने, शराब पीकर आने, पुलिस और वन विभाग के कर्मचारियों के बेल्ट और टोपी पहनकर आने पर मनाही है. इस क्षेत्र में स्थानीय लोगों का प्रवेश भी वर्जित है.

मान्यता है कि शांघड़ मैदान का इतिहास पांडवों के जीवन काल से जुड़ा है. अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय शांघड़ में भी बिताया. इस दौरान उन्होंने यहां धान की खेती के लिए मिट्टी छानकर खेत तैयार किए. वह खेत आज भी विशाल शांघड़ मैदान के रूप में वैसे ही मौजूद हैं.

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शांघड़ मैदान में शंगचुल महादेव का मंदिर.

मैदान पर घोड़े के प्रवेश पर भी मनाही है. यदि किसी का घोड़ा शंगचुल देवता के निजी क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उसके मालिक को जुर्माना देना पड़ता है या फिर देवता कमेटी की ओर से उसके खिलाफ कार्रवाई अमल में लाई जाती है.

प्रदेश सरकार ने नए पर्यटन स्थलों को विकसित करने की दिशा में नई राहें नई मंजिलें अभियान तो शुरू किया है. अपार प्राकृतिक सौंदर्य से नवाजा गया शांघड़ में आज भी सुविधाओं का अभाव है. लेकिन, सैंज घाटी के शांघड़ को जाने वाली सड़कें अभी भी कच्ची है और बरसात के दिनों में तो सड़क दलदल में तब्दील हो जाती है. अगर सरकार शांघड़ एक नए पर्यटन स्थल के रूप में उभार पाता तो यहां पर्यटन कारोबार का नजारा कुछ और ही होता और स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया होता.

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