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अद्भुत हिमाचल: आज भी देवता के सम्मान में 5 दिन सिर्फ ऊन के पट्टू पहनती है महिलाएं, बिच्छू बूटी के साथ नाचते हैं गूर

कुल्लू की मणिकर्ण घाटी का पीणी गांव में मनाए जाने वाले श्रावण मेले के अंत में लोग इस अनोखी परंपरा को निभाते हैं. श्रावण मास मेले के अंत में पीणी गांव की औरतें 5 दिनों तक सिर्फ ऊन की पट्टू ओढ़ कर रहती हैं.

पीणी मेला कुल्लू
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Published : Aug 30, 2019, 4:01 PM IST

Updated : Aug 30, 2019, 4:47 PM IST

कुल्लू: देवभूमि कुल्लू की मणिकर्ण घाटी का पीणी गांव. यहां मनाए जाने वाले श्रावण मेले के अंत में लोग इस अनोखी परंपरा को निभाते हैं. भादो संक्रांति को यहां काला महीना कहा जाता है और श्रावण मास मेले के अंत में 19 अगस्त से 21 अगस्त के बीच पीणी गांव की औरतें दशकों से चली आ रहे इस रिवाज को निभाती हैं और 5 दिनों तक सिर्फ ऊन की पट्टू ओढ़ कर रहती हैं.

ग्रामीणों की मान्यता के अनुसार, कई सालों पहले गांव में एक राक्षस का साया आ गया था. राक्षस अच्छे और सुन्दर कपड़े पहनने वाली औरतों को उठा के ले जाता था. तब इस गांव में लाहुआ घोंड देवताओं ने पहुंचकर इस राक्षस का अंत किया था और तभी से इनकी पूजा की जाती है.

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ये भी पढ़ें-अद्भुत हिमाचल: इस गांव में है दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र, यहां चलता है देवता का राज!

पौराणिक समय में राक्षस के गांव में आने के समय में महिलाएं पांच दिन तक बिना कपड़ों के रहती थी. हालांकि, अब इस परंपरा में काफी बदलाव देखने को मिलता है. अब महिलाएं देवता के सम्मान में 5 दिन सिर्फ ऊन के पट्टू को पहनती हैं. मान्यता है कि अगर पीणी गांव के लोगों ने ये परंपरा नहीं निभाई तो उनके देवता नाराज हो जाएंगे.

मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र देवी-देवताओं के गूरों द्वारा खेला गया देवखेल होता है. खेल के दौरान देवता के गूर जंगलों में मिलने वाली बिच्छू बूटी के साथ नाचते हैं. गूरों द्वारा फैंकी जाने वाली बिच्छू बूटी को लोग देवता के आशीर्वाद के रूप में ग्रहण करते हैं. बता दें जंगलों में मिलने वाली बिच्छू बूटी छूने से ही तेज दर्द होता है, लेकिन पीणी में श्रावण मेले में देव खेल खेलने वाले गूरों को इसका थोड़ा सा भी असर नहीं पड़ता है.

ये भी पढ़ें-अद्भुत हिमाचल: गद्दी समुदाय की है एक अलग पहचान, आज भी संजोए हुए है अपनी कला और संस्कृति

कुल्लू: देवभूमि कुल्लू की मणिकर्ण घाटी का पीणी गांव. यहां मनाए जाने वाले श्रावण मेले के अंत में लोग इस अनोखी परंपरा को निभाते हैं. भादो संक्रांति को यहां काला महीना कहा जाता है और श्रावण मास मेले के अंत में 19 अगस्त से 21 अगस्त के बीच पीणी गांव की औरतें दशकों से चली आ रहे इस रिवाज को निभाती हैं और 5 दिनों तक सिर्फ ऊन की पट्टू ओढ़ कर रहती हैं.

ग्रामीणों की मान्यता के अनुसार, कई सालों पहले गांव में एक राक्षस का साया आ गया था. राक्षस अच्छे और सुन्दर कपड़े पहनने वाली औरतों को उठा के ले जाता था. तब इस गांव में लाहुआ घोंड देवताओं ने पहुंचकर इस राक्षस का अंत किया था और तभी से इनकी पूजा की जाती है.

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पौराणिक समय में राक्षस के गांव में आने के समय में महिलाएं पांच दिन तक बिना कपड़ों के रहती थी. हालांकि, अब इस परंपरा में काफी बदलाव देखने को मिलता है. अब महिलाएं देवता के सम्मान में 5 दिन सिर्फ ऊन के पट्टू को पहनती हैं. मान्यता है कि अगर पीणी गांव के लोगों ने ये परंपरा नहीं निभाई तो उनके देवता नाराज हो जाएंगे.

मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र देवी-देवताओं के गूरों द्वारा खेला गया देवखेल होता है. खेल के दौरान देवता के गूर जंगलों में मिलने वाली बिच्छू बूटी के साथ नाचते हैं. गूरों द्वारा फैंकी जाने वाली बिच्छू बूटी को लोग देवता के आशीर्वाद के रूप में ग्रहण करते हैं. बता दें जंगलों में मिलने वाली बिच्छू बूटी छूने से ही तेज दर्द होता है, लेकिन पीणी में श्रावण मेले में देव खेल खेलने वाले गूरों को इसका थोड़ा सा भी असर नहीं पड़ता है.

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Intro:कुल्लू
पीणी गांव में जब बिच्छूबूटी के साथ नाचे गूर
गांव में देवता ने श्रद्धालुओं को दिया आशीर्वादBody:


जिला कुल्लू की धार्मिक नगरी मणिकर्ण घाटी के पीणी गांव में अनोखा व अद्भूत नजारा श्रद्धालुओं को तब देखने को मिला। जब देवता के गूर जंगलों में मिलने वाली बिच्छूबूटी के साथ नाचे। इस दौरान यह नजारा देखने के लिए सैंकड़ो श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहा। यह नजारा और भी आकर्षक तब बना जब गूरों द्वारा फैंकी जा रही बिच्छूबूटी को आशीर्वाद और शेष के रूप में ग्रहण करने के लिए पीणी गांव पहुंचे सैंकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। जंगलों में मिलने वाली बिच्छू बूटी को आम व्यक्ति पकड़े तो उसी समय व्यक्ति को तेज पीड़ा होती है। लेकिन पीणी में शाउण मेले में देव खेल खेलने वाले गूरों को इसका तनित सा प्रभाव भी नहीं पड़ता है। यह अलौकिक नजारा पीणी शाउण मेले में सैंकड़ों श्रद्धालुओं को देखने के लिए मिला। तलपीणी गांव में माता भागासिद्ध, माता चामुंडा, देवता नारायण, माता कराण और देवता लाहुआ घोंड के सम्मान में शाउण मेला मनाया गया।
Conclusion:मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र सभी देवी-देवताओं के गूरों द्वारा खेली गई देवखेल रहा। वही, देवखेल के बाद देवता द्वारा लोगो की समस्याओं का भी समाधान किया गया।
Last Updated : Aug 30, 2019, 4:47 PM IST
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