कुल्लू: देवभूमि कुल्लू की मणिकर्ण घाटी का पीणी गांव. यहां मनाए जाने वाले श्रावण मेले के अंत में लोग इस अनोखी परंपरा को निभाते हैं. भादो संक्रांति को यहां काला महीना कहा जाता है और श्रावण मास मेले के अंत में 19 अगस्त से 21 अगस्त के बीच पीणी गांव की औरतें दशकों से चली आ रहे इस रिवाज को निभाती हैं और 5 दिनों तक सिर्फ ऊन की पट्टू ओढ़ कर रहती हैं.
ग्रामीणों की मान्यता के अनुसार, कई सालों पहले गांव में एक राक्षस का साया आ गया था. राक्षस अच्छे और सुन्दर कपड़े पहनने वाली औरतों को उठा के ले जाता था. तब इस गांव में लाहुआ घोंड देवताओं ने पहुंचकर इस राक्षस का अंत किया था और तभी से इनकी पूजा की जाती है.
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पौराणिक समय में राक्षस के गांव में आने के समय में महिलाएं पांच दिन तक बिना कपड़ों के रहती थी. हालांकि, अब इस परंपरा में काफी बदलाव देखने को मिलता है. अब महिलाएं देवता के सम्मान में 5 दिन सिर्फ ऊन के पट्टू को पहनती हैं. मान्यता है कि अगर पीणी गांव के लोगों ने ये परंपरा नहीं निभाई तो उनके देवता नाराज हो जाएंगे.
मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र देवी-देवताओं के गूरों द्वारा खेला गया देवखेल होता है. खेल के दौरान देवता के गूर जंगलों में मिलने वाली बिच्छू बूटी के साथ नाचते हैं. गूरों द्वारा फैंकी जाने वाली बिच्छू बूटी को लोग देवता के आशीर्वाद के रूप में ग्रहण करते हैं. बता दें जंगलों में मिलने वाली बिच्छू बूटी छूने से ही तेज दर्द होता है, लेकिन पीणी में श्रावण मेले में देव खेल खेलने वाले गूरों को इसका थोड़ा सा भी असर नहीं पड़ता है.
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