कुल्लू: हिमाचल प्रदेश के आंचल में एक ऐसी नदी का अस्तित्व है जिसे यूनान के लोगों ने अपशकुनी करार दिया था. वहीं, भारत में जब मुगल आए तो उन्होंने इस नदी को चीन के पानी के नाम से नवाजा. बौद्ध धर्म के दर्शन में नदी के पानी को स्वर्ग के पानी की संज्ञा दी गई और महान बौद्ध धर्म गुरू गुरू घंटाल ने भी इसी नदी के संगम स्थल पर कई सिद्धियों का ज्ञान हासिल किया.
वहीं, हिंदू धर्म के महान ऋषि लोमश ऋषि ने भी यहां तपस्या की थी. सुनने में बेशक आज यह अजीब लगता हो, लेकिन आज भी वो नदी हिमालय की धरा पर अविरल होकर बह रही है. यह नदी है जिला लाहौल स्पीति में बहने वाली पवित्र चंद्रभागा नदी.
इसी नदी के संगम को पूरे पश्चिमी हिमालय में दूसरे हरिद्वार की संज्ञा दी गई है और युगों-युगों से चंद्रभागा संगम का इतिहास कई ग्रंथों में भरा पड़ा है. आज भी पश्चिमी हिमालय के लोग इस संगम को हरिद्वार के रूप में भी प्रयोग करते हैं. लाहौल स्पीति के लोग इसी संगम स्थल पर अपने पूर्वजों की अस्थियां बहाकर पुण्य कमाते हैं.
लाहौल-स्पीति के इस संगम स्थल के इतिहास पर यदि नजर डाले तो चंद्रभागा नदी कई युगों की साक्षी रही है. यूनान का राजा सिकंदर जब तिब्बत से होकर भारत आया तो उस समय इस नदी को हाईपोसिस का नाम दिया गया. यूनानी भाषा में हाईपोसिस का मतलब अपशकुनी नदी है और यूनानियों का मानना था कि उस दौरान नदी के दूसरे तट की ओर रहने वाले लोगों ने सिकंदर को तीर मारकर घायल किया था.
बौद्ध धर्म के युग में नदी का नाम तंगती पड़ा. जिसका मतलब स्वर्ग का पानी था. बौद्ध धर्म के लोग इस पानी को स्वर्ग से आया हुआ पानी मानते हैं. बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध ग्ंरथ विमान बत्थू में इस नदी को तंगती कहा गया है. वहीं, अरब से आए लोगों ने इस नदी को आबे चीन कहा. जिसका मतलब चीन से आने वाला पानी है. वहीं, वैदिक काल में चंद्रभागा नदी का नाम अस्किनी भी पड़ा. हिंदु धर्म के पवित्र वेद ऋगवेद के नदी स्त्रोत अध्याय में नदी को अस्किनी नाम से पुकारा गया है.
पौराणिक काल में शिव पुराण और महाभारत में इस नदी को चंद्रभागा का नाम दिया है. वहीं, बौद्ध सिद्ध घंटापा ग्रंथ में विस्तार से बताया गया है कि इसी संगम पर द्रोपदी का अंतिम संस्कार हुआ था.
यही नहीं, इस ग्रंथ में यह भी दर्शाया गया है कि यह स्थल लोमश ऋषि की तपोस्थली है. वर्तमान में इस नदी को लाहौल-स्पीति में चंद्रभागा व वहां से आगे चिनाब के नाम से जाना जाता है.
खास बात यह है कि यह नदी पश्चिमी हिमालय के कई देशों को सिंचती है. जिसमें तिब्बत, भारत व पाकिस्तान भी शामिल है.
वर्तमान में लाहौल-स्पीति का चंद्राभागा संगम स्थल बेहद सुंदर व धार्मिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है. संगम स्थल को विकसित करने के लिए लाहौल-स्पीति की जनता एकजुट हो चुकी है और यही कारण है कि गत वर्ष से यहां पर संगम पर्व मनाया जा रहा है.
अब यह संगम पर्व हर वर्ष यहां पर मनाया जाएगा. इसके विकास के लिए लाहौल के लोगों ने प्रयास तेज कर दिए हैं. भविष्य में यहां पर हरिद्वार की तर्ज पर घाट बनाने की भी योजना है. लाहौल-स्पीति के लोगों का कहना है कि वे भौगोलिक तौर पर अति दुर्गम क्षेत्र में रहते हैं.
करीब छह माह तक जो क्षेत्र बर्फ के कारावास में कैद रहता है. उसी स्थिति को नजर में रखते हुए इस क्षेत्र के लोग सदियों से इसी संगम स्थल पर अस्थियां विसर्जित करते आए हैं. इसलिए उनके लिए यह स्थल हरिद्वार से कम नहीं है और इस स्थल का वर्तमान में विकास होना आवश्यक है. जिससे यहां की धार्मिक आस्था व नदी के इतिहास को बरकरार रखा जा सके.
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