कुल्लू : दुनिया की सबसे कठिन धार्मिक यात्राओं में से एक श्रीखंड महादेव की यात्रा इस बार 7 जुलाई से 20 जुलाई तक होगी. बरसात को देखते हुए श्रीखंड यात्रा ट्रस्ट ने यह यात्रा जल्दी कराने का फैसला लिया है. पिछले साल यह पवित्र यात्रा 11 जुलाई से शुरू हुई थी. इस बार देशभर के श्रद्धालु श्रीखंड महादेव के दर्शन 7 से 20 जुलाई तक कर सकेंगे. कुल्लू में हुई श्रीखंड यात्रा ट्रस्ट की बैठक में यह निर्णय लिया गया है. यात्रा की तारीखों का ऐलान होने के साथ ही प्रशासन भी इससे जुड़ी तैयारियों में जुट गया है. श्रीखंड महादेव से जुड़ी पौराणिक कहानी भी है. लेकिन इसे जानने से पहले अगर आप भी इस यात्रा पर जाना चाहते हैं तो आपको भी इस यात्रा के बारे में सबकुछ जान लेना चाहिए.
करीब 35 किमी की पैदल यात्रा- कुल्लू जिले के उपमंडल निरमंड में 18,570 फीट की ऊंचाई पर विराजमान भगवान श्रीखंड महादेव के प्रति देशभर के श्रद्धालुओं में गहरी आस्था है. जिला कुल्लू के जावो नामक स्थान से करीब 35 किमी पैदल यात्रा कर भक्त श्रीखंड पहुंचते हैं. संकरी, खड़ी और कठिन चढ़ाई में भक्तों को सिंहगाड़, थाचडू, नयन सरोवर, भीमडवारी और पार्वती बाग जैसे सुंदर स्थानों का दर्शन करने का अवसर मिलता है. इसके बाद श्रद्धालुओं को श्रीखंड महादेव के दर्शन होते हैं.
प्रशासन की तैयारी- कुल्लू प्रशासन से जारी निर्देशों के अनुसार इस यात्रा में 18 साल से 60 साल तक की आयु वाले श्रद्धालु ही हिस्सा ले सकते हैं. वहीं पार्वती बाग में विशेष मेडिकल कैंप लगाया जाएगा और यहां पर एक रेस्क्यू टीम भी तैनात की जाएगी. इसके अलावा कुश बेसकैंप में चेक पोस्ट भी स्थापित होगा, जहां पर पुलिस जवान तैनात होंगे. यहां से किसी भी तरह की नशीली वस्तुओं को आगे के जाने की इजाजत नहीं दी जाएगी. इस बार पंजीकरण का शुल्क ₹ 250 रखा गया है और श्रीखंड यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालु shrikhandyatra.hp.gov.in पर ऑनलाइन पंजीकरण भी कर सकते हैं. जिला प्रशासन के द्वारा 10 जून को श्री खंड यात्रा के लिए रास्तों की जांच करने के लिए एक टीम श्रीखंड भेजी जाएगी.
श्रीखंड महादेव यात्रा के लिए सिंह गाड़ में बेस कैंप और कुश में मेडिकल सहायता कैंप के अलावा भीम डवारी, पार्वती बाग, और थाचडू में भी कैंप स्थापित किए जाएंगे. जहां पर मेडिकल टीमें, दवा और ऑक्सीजन की व्यवस्था की जाएगी। इसके अलावा सभी कैंप में रेस्क्यू टीम, पुलिस व होमगार्ड के जवान भी तैयार रहेंगे. जो किसी भी आपात स्थिति के लिए तैयार रहेंगे. दरअसल सर्दी के मौसम के बाद श्रीखंड यात्रा का रूट पर बर्फ की सफेद चादर बिछी रहती है. इन दिनों मौसम साफ होने पर प्रशासन की ओर से इस यात्रा का आयोजन करवाया जाता है. प्रशासन के सामने यात्रा को मॉनसून आने से पहले संपन्न कराने की भी चुनौती रहती है.
अब तक 36 लोगों की हो चुकी है मौत- श्रीखंड महादेव की यात्रा बहुत ही कठिन यात्रा होती है. शारीरिक और मानसिक रूप से फिट लोगों को ही इसकी इजाजत दी जाती है. आंकड़ों के अनुसार साल 2010 से अब तक करीब 36 लोगों की यात्रा के दौरान मौत हो चुकी है. श्रीखंड यात्रा के दौरान कई जगह पर ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. जिसके चलते श्रद्धालु अपनी जान गंवा सकते हैं. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति शुगर, बीपी या किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं. तो वे इस यात्रा पर बिल्कुल भी ना जाएं. वहीं मेडिकल कैंप में पहले सभी श्रद्धालुओं का के स्वास्थ्य की जांच की जाएगी और फिट पाए जाने के बाद ही उन्हें आगे जाने की इजाजत दी जाएगी. हालांकि ऐसे हालात से निपटने के लिए डॉक्टर से लेकर रेस्क्यू टीम मौजूद होती है लेकिन कई बार हालात पर किसी का बस नहीं चलता. कई बार कुछ लोग प्रशासन के आदेश के बावजूद गलत रास्तों से यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं और रास्ता भटकने से लेकर जान जोखिम में डालने जैसे खतरे भी मोल लेते हैं.
यात्रा पर इन बातों का रखें ध्यान- श्रीखंड महादेव पहुंचने के लिए शिमला जिला के रामपुर से और कुल्लू जिला के निरमंड से होकर बागीपुल और जाओ तक छोटे वाहनों, बसों में पहुंचा जा सकता है. जहां से आगे 35 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है. श्रीखंड महादेव की यात्रा के लिए शारीरिक रूप से स्वस्थ होना काफी आवश्यक है. इसके अलावा इस यात्रा को पूरा करने के लिए गर्म कपड़े, जूते, छाता, रेनकोट भी आवश्यक होता है. यहां पर इस यात्रा को पूरा करने के लिए करीब 3 दिन का समय लगता है और उसके बाद यात्री वापस कैंप पहुंच जाते हैं. जगह-जगह रेस्क्यू टीम व पुलिस जवान श्रद्धालुओ की मदद करने के लिए भी तैनात रहते हैं.
श्रीखंड महादेव और भस्मासुर- श्रीखंड महादेव में भगवान शिव से जुड़ा तीर्थ स्थल है. यहां एक बड़ी सी शिला को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है. इसी शिला के दर्शन के लिए हर साल कई लोग आते हैं. इस स्थान की कहानी भस्मासुर से जुड़ती है. भगवान शिव से वरदान मिलने के बाद भस्मासुर भगवान भोलेनाथ को ही भस्म करना चाहता था. जिससे बचने के लिए महादेव इस स्थान पर आए थे. तब भगवान विष्णु ने भस्मासुर को इसी स्थान पर भस्म किया था. कहते हैं कि भस्मासुर का आतंक देखकर माता पार्वती के आंसू निकल आए थे. जिससे यहां एक सरोवर की उत्पत्ति हुई, जिसे पार्वती बाग के नाम से जाना जाता है. इस सरोवर की एक धार यहां से 25 किलोमीटर नीचे भगवान शिव की गुफा निरमंड के देव ढांक तक पहुंचती है. कहते हैं इसके बाद से भगवान शिव यहां शिला रूप में मौजूद हैं.
इसके अलावा मान्यता है कि जब पांडवों ने वनवास के दौरान यहां कुछ समय बिताया था. इसके साक्ष्य यहां मौजूद बड़े-बड़े पत्थर भी हैं. माना जाता है कि इन्हें भीम ने ही यहां स्थापित किया था. उन्होंने यहां एक राक्षस को मारा था, जो यहां आने वाले भक्तों को मार देता था। राक्षस का लाल रक्त जब जमीन पर पड़ा तो उस जगह की जमीन लाल हो गई. वहां लाल रंग आज भी मौजूद है.
क्या कहते हैं जिला उपायुक्त- कुल्लू जिला उपायुक्त आशुतोष गर्ग ने कहा कि यात्रा से पहले एक टीम यात्रा के रास्ते की रेकी करेगी और उसे यात्रा के लिए दुरुस्त किया जाएगा. रास्ते में मौजूद सराय से लेकर पेयजल स्कीम से जुड़े रिपेयरिंग और अस्थायी टॉयलेट्स की मरम्मत की जाएगी. जिला प्रशासन ने लोगों से यात्रा के लिए ऑनलाइन अप्लाई करने की सलाह दी है. जिससे प्रशासन को पहले से जानकारी हो कि किस दिन कितने श्रद्धालु इस यात्रा के लिए पहुंच रहे हैं. श्रद्धालु अपना मेडिकल सर्टिफिकेट भी ऑनलाइन डाल सकते हैं जिससे कि मेडिकल कैंप में उनका वक्त बर्बाद नहीं होगा. हालांकि बिना रजिस्ट्रेशन और बिना मेडिकल सर्टिफिकेट के आए श्रद्धालुओं के लिए रजिस्ट्रेशन और हेल्थ चेकअप की भी सुविधा दी जाएगी. प्रशासन की नजर उन लोगों पर भी रहेगी जो तय रूट से अलग चले जाते हैं, इसके लिए एक अतिरिक्त टीम लगाई गई है.
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