शिमला: इन दिनों हिमाचल प्रदेश में राधास्वामी सत्संग ब्यास, सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग्स एक्ट, एचपी टेनेंसी एंड लैंड रिफॉर्म्स एक्ट की खूब चर्चा है. मामला कुछ यूं है कि हिमाचल के हमीरपुर जिला में भोटा नामक स्थान पर एक धर्मार्थ अस्पताल है. इस अस्पताल का संचालन महाराज जगत सिंह मेडिकल रिलीफ सोसायटी कर रही है. ये सोसायटी पंजाब के विश्वविख्यात राधास्वामी सत्संग सोसायटी की सिस्टर आर्गेनाइजेशन है. भोटा अस्पताल को बेशक महाराज जगत सिंह मेडिकल रिलीफ सोसायटी चला रही है, लेकिन जमीन का मालिकाना हक डेरा ब्यास यानी राधास्वामी सत्संग ब्यास के पास है.
अब डेरा ब्यास चाहता है कि इस जमीन का मालिकाना हक भी महाराज जगत सिंह मेडिकल रिलीफ सोसायटी को दिया जाए. ये मालिकाना हक ट्रांसफर करने के लिए भारतीय संविधान द्वारा प्रोटेक्टेड हिमाचल प्रदेश सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग्स एक्ट में बदलाव करना होगा. ये बदलाव करना आसान नहीं है. पहले विधानसभा में बिल लाना होगा और फिर उसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाएगा, लेकिन सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग्स एक्ट इतना जटिल और सख्त है कि इस पर हाथ डालना यानी बदलाव करना आसान काम नहीं है. इधर, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने ऐलान किया है कि विधानसभा के विंटर सेशन के पहले दिन राज्य सरकार बिल लाएगी. क्या लैंड सीलिंग एक्ट में बदलाव आसान है और क्या सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार इस दिशा में सफल होगी, ये इन दिनों चर्चा का विषय है. यहां इस एक्ट में बदलाव की संभावनाओं, सरकार के पास मौजूद विकल्पों और इसके रास्ते की बाधाओं की पड़ताल का प्रयास किया जाएगा.
क्या है सीलिंग ऑन लैंड होल्डिंग्स एक्ट ?
हिमाचल प्रदेश में जमीन की सीमित उपलब्धता है. ऐसे में यहां की जमीन को संपन्न लोग बड़ी मात्रा में न खरीद लें, इसके लिए जमीन रखने की सीमा तय की गई है. यानी लैंड रखने पर सीलिंग है. हिमाचल प्रदेश में यह एक्ट 28 जुलाई 1973 से प्रभावी माना गया है और 22 जनवरी 1974 को राजपत्र में प्रकाशित हुआ. एक्ट के अनुसार साल में दो फसल देने वाली सिंचाई लायक जमीन 10 एकड़ से अधिक नहीं रखी जा सकती. साल में एक बार फसल देने वाली सिंचाई लायक जमीन 15 एकड़ तक रखी जा सकती है. इसके अलावा जनजातीय इलाकों में लैंड की सीलिंग 70 एकड़ है. बीघा के माप में देखें तो कोई भी व्यक्ति या परिवार सिंचाई लायक जमीन सिर्फ 50 बीघा ही रख सकता है. केवल एक फसल देने वाली जमीन की सीमा 75 बीघा है. बागीचा रखने की सीमा 150 बीघा और जनजातीय क्षेत्र में 300 बीघा है. इसके अधिक भूमि कोई रख नहीं सकता. धार्मिक संस्थाएं जो कृषक का दर्जा ले चुकी हैं, उनके लिए कोई सीमा नहीं है, लेकिन यदि सरप्लस जमीन बेचनी हो तो सरकार से धारा-118 के तहत अनुमति लेनी होती है.
धार्मिक संस्थाओं में केवल राधास्वामी सत्संग ब्यास को छूट
हिमाचल में सिर्फ एक धार्मिक संस्था लैंड सीलिंग एक्ट के दायरे से बाहर है. ये संस्था राधास्वामी सत्संग ब्यास है. वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2014 में डेरा ब्यास को लैंड सीलिंग एक्ट के दायरे से बाहर किया गया था, लेकिन इसमें भारत सरकार की तरफ से राइडर लगाया गया था कि डेरा ब्यास सरप्लस जमीन को न तो बेच सकती है, न ट्रांसफर कर सकती है और न ही लीज या गिफ्ट डीड कर सकती है. अब डेरा ब्यास भोटा अस्पताल की जमीन का मालिकाना हक महाराज जगत सिंह मेडिकल रिलीफ सोसायटी को देना चाहता है, जिसे लेकर सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने विधानसभा सेशन में बिल लाने की बात कही है.
क्या है एक्ट में बदलाव की बाधाएं ?
हिमाचल प्रदेश में लैंड सीलिंग एक्ट व टेनेंसी एंड लैंड रिफॉर्म्स एक्ट के गहरे जानकार और वरिष्ठतम मीडिया कर्मी बलदेव शर्मा कहते हैं-एक्ट में बदलाव से पहले कई सवाल पैदा होते हैं. क्या दान में मिली जमीन को भेंटकर्ता की सहमति के बिना बेचा जा सकता है? क्या राधास्वामी सत्संग ब्यास को कृषक का दर्जा हासिल होने के बाद संस्था सामान्य किसान की तरह जमीन को खरीद अथवा बेच सकती है? जहां तक लैंड सीलिंग एक्ट के प्रावधान हैं तो सीलिंग से अधिक जमीन केवल राज्य सरकार, केंद्र सरकार अथवा सहकारी सभाएं रख सकती हैं. एक्ट में समय-समय पर संशोधन जरूर हुए हैं, लेकिन एक्ट में अब जो संशोधन करने की तैयारी है, उसे अमल में लाना कठिन होगा. कारण ये है कि दानदाता की सहमति के बिना क्या जमीन का मालिकाना हक ट्रांसफर किया जा सकता है या नहीं, ये सवाल उठेगा. बलदेव शर्मा का कहना है कि यदि डेरा ब्यास को छूट दी जाती है तो फिर एक रास्ता खुल जाएगा.
आरटीआई की नजर में मामला
सोलन जिले के ओचघाट इलाके के रहने वाले एक व्यक्ति स्वामी बलराम सिंह ने विगत में एक आरटीआई के माध्यम से सूचना जुटाई थी. आरटीआई के जवाब में सरकार की तरफ से बताया गया था कि 7 जून, 1991 को राधा स्वामी सत्संग ब्यास यानी डेरा बाबा जैमल सिंह जिला अमृतसर पंजाब ने हमीरपुर के जिला प्रशासन को भोटा में चैरिटेबल अस्पताल खोलने के लिए 155 बीघा जमीन खरीदने से जुड़ा पत्र लिखा था. फिर 20 जून, 1991 को डीसी हमीरपुर ने संबंधित तहसीलदार को विभागीय पत्र में लिखा कि जमीन की सेल डीड लोगों के घर में ही करने की व्यवस्था की जाए. उसके बाद 26 जून को तहसीलदार ने डीसी हमीरपुर को पत्र लिखा कि राधास्वामी सत्संग ब्यास धार्मिक संस्था है और प्रदेश में टेनेंसी एक्ट की धारा 2(2) के अनुसार कृषक की परिभाषा में नहीं आती. साथ ही धारा 118 के अनुसार भूमि रहन लेने के लिए भी डेरा ब्यास पात्र नहीं है. इस पर डीसी हमीरपुर ने उस समय के राजस्व विभाग के सचिव को लिखा कि डेरा ब्यास के पास हमीरपुर, भोटा, नादौन व सुजानपुर में क्रमश: 4, 7, 7 व 3 कनाल भूमि और भी है. इस पर विधि विभाग की राय मांगी गई तो वहां से बताया गया कि यदि डेरा ब्यास के पास राज्य में जमीन है तो यह कृषक की परिभाषा में आते हैं.
वरिष्ठ मीडिया कर्मी बलदेव शर्मा बताते हैं, "जुलाई 1991 में शांता कुमार की सरकार के समय डेरा ब्यास को कृषक का दर्जा दिया गया. फिर 1998 में सत्ता में आई प्रेम कुमार धूमल की सरकार ने भी धार्मिक संस्थाओं को राहत दी. वीरभद्र सिंह सरकार के समय 2014 में डेरा ब्यास को लैंड सीलिंग एक्ट में छूट मिली थी. यानी डेरा ब्यास सीलिंग के दायरे से बाहर हो गया. इसी का परिणाम ये हुआ कि डेरा ब्यास के पास अब 6 हजार बीघा जमीन है. प्रदेश में इस समय डेरा ब्यास के 900 से अधिक छोटे-बड़े सत्संग घर हैं. इनमें शिमला, सोलन, पालमपुर के परौर सहित हर बड़े शहर में एक से अधिक सत्संग घर हैं."
अब क्या है ताजा स्थिति ?
अभी 12 दिसंबर को सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू की अगुवाई में कैबिनेट की मीटिंग हुई थी. उसमें लैंड सीलिंग एक्ट वाला ड्राफ्ट आया जरूर, लेकिन उसे लेकर मंत्रिमंडल में सहमति नहीं थी. चूंकि मामला बहुत जटिल है तो इस पर कैबिनेट में व्यापक चर्चा हुई. अब ये तय किया गया है कि कैबिनेट के नोट को लॉ सेक्रेटरी और एडवोकेट जनरल एडिट करेंगे. कैबिनेट से डेरा ब्यास वाली फाइल वापस राजस्व विभाग के पास पहुंची है. इसके अनुसार कैबिनेट के नोट को लॉ सेक्रेटरी और एडवोकेट जनरल एडिट करेंगे. फिर संशोधित प्रस्ताव वापस कैबिनेट में आएगा. उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान कह चुके हैं कि कैबिनेट ने सीएम को फैसला लेने के लिए अधिकृत कर दिया है. लिहाजा अब सरकार बिना कैबिनेट मीटिंग के भी सर्कुलेशन के जरिए मंजूरी ले सकती है.
सरकार के रास्ते में क्या है बड़ी बाधा ?
सरकार के रास्ते में बड़ी बाधा ये है कि एक्ट में संशोधन कर डेरा ब्यास को दो तरह की छूट देनी होगी. जब 2014 में डेरा ब्यास को लैंड सीलिंग एक्ट से छूट मिली थी तो ये शर्त लगाई गई थी कि वो जमीन को ट्रांसफर, लीज, मॉर्टगेज या गिफ्ट डीड नहीं कर सकते. बताया जा रहा है कि कैबिनेट मीटिंग में चर्चा हुई कि इस तरह की छूट एक्ट की मूल भावना के खिलाफ होगी. एडवोकेट अमित ठाकुर के अनुसार लैंड सीलिंग एक्ट में बदलाव करना पेचीदा काम है. चूंकि ये एक्ट संविधान द्वारा संरक्षित है तो यदि विधानसभा से बिल पास भी हो जाए तो राष्ट्रपति भवन से मंजूरी मिलना आसान नहीं है. इसमें एक्ट की मूल भावना भी देखनी होगी. सीलिंग से मिली छूट का कानून के विपरीत जाकर लाभ नहीं उठाया जा सकता. वहीं, राज्य सरकार के एडवोकेट जनरल अनूप रतन कह चुके हैं कि ये मामला लैंड सीलिंग एक्ट के अनुभाग 5 व 7 से जुड़ा है. डेरा ब्यास लैंड सीलिंग एक्ट में जो अन्य सोसायटी को जमीन हस्तांतरण में रोक लगी हुई है, उस पर राहत मांग रही है. अब देखना है कि सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार इस मामले से कैसे पार पाती है.