कुल्लू: महाशिवरात्रि पर्व के लिए जहां देशभर में भक्त तैयारियों में जुट गए हैं. तो वहीं, शिव मंदिरों को भी फूलों से सजाया जा रहा है. जिला कुल्लू के बजौरा में भी भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है जो आठवीं सदी से यहां पर स्थापित है और आज भी भक्त इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था और यह पूरा मंदिर एक पत्थर से ही बना हुआ है. इसे विश्वेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है.
इस मंदिर में उकेरी गई नक्काशी आज भी उत्कृष्ट कलाकारी को दर्शाती है. यह मंदिर अब भारतीय सर्वेक्षण एवं पुरातत्व विभाग के अधीन है. भगवान शिव को समर्पित यह ऐतिहासिक धार्मिक स्थल कुल्लू जिले के बजौरा गांव में स्थित है. बशेश्वर महादेव मंदिर को विश्वेश्वर महादेव मंदिर के रूप में भी जाना जाता है. यह मंदिर इस क्षेत्र की आस्था का केंद्र है. यहां हर साल बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. यह मंदिर कुल्लू जिले के सबसे बड़े धार्मिक स्थलों में से एक है.
ब्यास नदी के तट पर स्थित बशेश्वर महादेव मंदिर एक असाधारण मंदिर है. यह धार्मिक स्थल अपनी पत्थर की नक्काशी, समतल शिकारा और चमत्कारिक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है. मंदिर को नागर शैली में बनाया गया है. मंदिर की आंतरिक और बाहरी दीवारों पर अद्भुत नक्काशी की गई है. यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर की अद्भुत नक्काशी देखकर चौंक जाते हैं. मंदिर का इतिहास 8वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व का है.
मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी स्थित है. जो विभिन्न देवताओं को समर्पित है. यहां हिंदू देवता भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी, स्त्री शक्ति की अवतार माता दुर्गा और भगवान गणेश की लघु मूर्तियों के भी दर्शन होते हैं. यहां पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. खासकर महाशिवरात्रि और सावन के महीने में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. श्रद्धालुओं का विश्वास है कि जो भी श्रद्धालु भगवान शिव के दरबार में सच्चे मन से दर्शन करने के लिए आता है. उसकी हर सभी मनोकामनाएं जरूर पूर्ण होती है.
प्रदेश के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. सूरत ठाकुर का कहना है कि यह मंदिर काफी प्राचीन हैं और यहां सावन माह व शिवरात्रि के दिन श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ हैं और यह शैली भारत में सातवीं सदी से ग्यारहवीं सदी तक मंदिर व भवन निर्माण में प्रयोग में लाई जाती रही हैं. इससे पता चलता है कि यह मंदिर अति प्राचीन है.
डॉ. सूरत ठाकुर ने बताया कि यहां पर स्थानीय लोगों की मान्यता है कि पांडव जब अज्ञातवास पर हिमालय की यात्रा कर रहे थे, तो उस दौरान पांडवों के द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया गया है. वहीं, आसपास के इलाके में खुदाई करने पर भी यहां पर बड़ी-बड़ी शिलाएं मिली हैं, जिन्हें पुरातत्व विभाग के द्वारा संरक्षित कर लिया गया है.
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