कुल्लू: सनातन धर्म के अनुसार भगवान गणेश को सभी देवी देवताओं में प्रमुख माना गया है. यही वजह है कि हर पूजा में सबसे पहले गणेश पूजा का भी विधान है. ऐसे में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. वहीं, इसी चतुर्थी को बहुला चतुर्थी या बहुला चौथ भी कहा जाता है. क्योंकि इस दिन भगवान गणेश की पूजा के साथ-साथ भगवान कृष्ण और गायों का पूजन भी किया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण और गणेश की पूजा साथ करने से संतान के प्राप्ति होती है और भक्त को धन-धान्य का आशीर्वाद मिलता है. ऐसे में तीन सितंबर को संकष्टी चतुर्थी का व्रत मनाया जाएगा.
3 सितंबर रविवार को रखा जाएगा व्रत: दरअसल, हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि 2 सितंबर रात 8:49 से शुरू होकर 3 सितंबर को शाम 6:24 तक रहेगी. उदया तिथि 3 सितंबर को हो रही है ऐसे में 3 सितंबर रविवार को इसका व्रत रखा जाएगा. वहीं, आचार्य राजकुमार शर्मा का कहना है कि इस दिन भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प ले और भगवान गणेश, भगवान कृष्ण और गौ माता की उपासना करें. वहीं, पूजा के लिए भगवान कृष्ण के किसी ऐसे चित्र या प्रतिमा को पूजा स्थान पर स्थापित करें. जिसमें गाय भी साथ हो. भक्त भगवान को शुद्ध ही का दीपक अर्पित करें और अबीर गुलाब जैसी चीज भगवान को अर्पित करे. भगवान कृष्ण और गणेश की पूजा के बाद गए सहित बछड़े की भी पूजा की जाए.
गाय माता की पूजा करने से अक्षय पुण्य की होती है प्राप्ति: धार्मिक मान्यता के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. क्योंकि भगवान गणेश के साथ कृष्ण और गौ माता की भी उपासना इसी दिन की जाती है. बहुला चतुर्थी के नाम से भी इसी दिन को जाना जाता है और इस दिन गाय माता की पूजा और सेवा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश और चंद्र देव की उपासना से भी जीवन में कई कष्टों का निवारण होता है.
कामधेनु गाय ने बहुला के रूप में नन्द की गौशाला में किया था प्रवेश: पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, कृष्ण की लीलाओं को देखने के लिए कामधेनु गाय ने बहुला के रूप में नन्द की गौशाला में प्रवेश किया. कृष्ण को यह गाय बहुत पसंद आई, वे हमेशा उसके साथ समय बिताते थे. बहुला का एक बछड़ा भी था, जब बहुला चरने के लिए जाती तब वो उसको बहुत याद करता था. एक बार जब बहुला चरने के लिए जंगल गई. चरते-चरते वो बहुत आगे निकल गई और एक शेर के पास जा पहुंची. शेर उसे देख खुश हो गया और अपना शिकार बनाने की सोचने लगा. बहुला डर गई और उसे अपने बछड़े का ही ख्याल आ रहा था. जैसे ही शेर उसकी ओर आगे बढ़ा तो बहुला ने उससे बोला कि वो उसे अभी न खाए. घर में उसका बछड़ा भूखा है और वह उसे दूध पिलाकर वो वापस आ जाएगी तब वो उसे अपना शिकार बना ले.
शेर ने कहा कि मैं कैसे तुम्हारी इस बात पर विश्वास कर लूं. तब बहुला ने उसे विश्वास दिलाया और कसम खाई कि वो जरुर आएगी. बहुला वापस गौशाला जाकर बछड़े को दूध पिलाती है और बहुत प्यार कर उसे वहां छोड़ वापस जंगल में शेर के पास आ जाती है. शेर उसे देख हैरान हो जाता है. दरअसल, ये शेर के रूप में कृष्ण होते है. जो बहुला की परीक्षा लेने आते है. कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ जाते है और बहुला को कहते है कि मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हुआ. तुम परीक्षा में सफल रही. समस्त मानव जाति द्वारा सावन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा अर्चना की जाएगी और समस्त जाति तुमको गौमाता कहकर संबोधित करेगी. जो भी ये व्रत रखेगा उसे सुख, समृद्धि, धन, ऐश्वर्या व संतान की प्राप्ति होगी.
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