कुल्लू: सरकार ने कोविड-19 संक्रमण से बचने के लिए कोरोना वॉरियर्स के लिए भी पीपीई किट पहनना अनिवार्य किया है. वहीं, कोरोना से बचाव के लिए प्रयोग में लाए जा रहे पीपीई किट, फेस मास्क और सैनिटाइजर की बोतलों का अगर ठीक से निस्तारण नहीं हुआ तो यह पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं.
जानकारों का कहना है कि पीपीई किट, मास्क और सैनिटाइजर का निर्माण प्लास्टिक, रबड़ और केमिकल से किया जाता है. यह सभी इको फ्रेंडली नहीं होते और इससे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है. कोरोना वायरस में मदद के बाद अब यह उपकरण पर्यावरण के लिए भी खतरा बनना शुरू हो गए हैं.
जिला कुल्लू में भी लगातार कोरोना से बचने के लिए पीपीई किट का इस्तेमाल किया जा रहा है. वहीं, प्रशासन द्वारा इसका सही ढंग से निस्तारण भी किया जा रहा है ताकि किट के कारण कोई और व्यक्ति संक्रमित न हो सके और ना ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचे.
जिला कुल्लू में कोरोना मामलों के नोडल अधिकारी डॉ. विकास डोगरा का कहना है कि स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन के अनुसार पीपीई किट के पहनने और निकालने का तरीका होता है. किट को उतारने के बाद एक बार फिर से स्नान करना भी जरूरी होता है.
डॉ. विकास डोगरा का कहना है कि कोरोना से संक्रमित मरीजों के इलाज के दौरान संक्रमण से बचने के लिए पीपीई किट काफी मददगार है. इसे पहनकर मरीजों का उपचार करने से कोरोना वायरस का डर भी नहीं रहता है. वहीं, इस्तेमाल के बाद पीपीई किट को सही तरह से निस्तारण किया जाना चाहिए, ताकि उसे आगे किसी को संक्रमण न फैल सके. इसका भी स्वास्थ्य विभाग की ओर से विशेष ध्यान रखा जा रहा है.
बता दें कि पीपीई किट का मतलब पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट होता है. जिसे पहनने पर डॉक्टर और नर्सों में कोरोना संक्रमण का खतरा कम हो जाता है. विशेषकर स्वास्थ्य कर्मी जो लगातार कोरोना के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें कोरोना वायरस से सुरक्षित रखने के लिए पीपीई किट पहनना बेहद आवश्यक है.
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