कुल्लू: हिमाचल प्रदेश के लोगों की भरोसेमंद सवारी कही जानी वाली एचआरटीसी अभी पूरी तरह सड़कों पर रफ्तार नहीं पकड़ी पाई है. खास कर हिमाचल के ग्रामीण इलाकों में कई रुटों पर एचआरटीसी बस सेवा ठप है. जिस वजह से लोगों को दूसरी विकल्पों का सहारा लेना पड़ रहा है.
जिला कुल्लू के शहरी इलाकों में जहां लोगों को के लिए निगम की बसों के अलावा निजी बसें, ऑटो और टैक्सियों की सुविधा मिल रही है. वहीं, ग्रामीण इलाकों में अभी भी लोगों को सफर के लिए टैक्सियों का सहारा लेना पड़ रहा है.
कोरोना के दौर के बाद से अभी तक एचआरटीसी की ग्रामीण परिवहन सेवा पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाई है. जिसके चलते लोगों की जेब पर भी काफी असर पड़ रहा है. जिला कुल्लू के ग्रामीण इलाके मणिकर्ण, लगघाटी, खराहल, गड़सा, बंजार, सैंज के इलाकों की बात करें, तो यहां अभी भी कई सड़कों पर सारा दिन एक या फिर दो बसें ही सेवाएं दे रहीं हैं.
कोरोना से पहले अधिकतर रुट पर छह या उससे अधिक बसे लगातार सड़कों पर दौड़ती रहती थी. जिसका फायदा सुबह और शाम को ग्रामीणों को खूब मिलता था. वहीं, कोरोना के दौर में सरकार द्वारा बसों का किराया भी बढ़ाया गया, लेकिन टैक्सी के मुकाबले ग्रामीणों को बस में सफर फायदेमंद रहता है.
परिवहन निगम ने दिया घाटे का तर्क
बस में ग्रामीणों को जहां अपने घर पहुंचने के लिए 20 रुपये खर्च करने पड़ते हैं, तो टैक्सियों में 10 गुणा अधिक किराया देकर सफर करना पड़ रहा है. इसका सीधा कारण लोकल रुटों पर बसों की कमी है. निगम के अधिकारी भी ग्रामीण रूटों पर घाटे का तर्क देकर अपनी बात खत्म कर रहे हैं, लेकिन इसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है.
हालांकि टैक्सी चालकों ने इस मामले में ग्रामीणों को काफी राहत दी है. एक और जहां बसों के किराए में बढ़ोतरी की गई तो वही, टैक्सी चालकों ने पुराने किराए पर ही ग्रामीण रूटों पर अपनी सेवाएं बरकरार रखी है.
टैक्सी चालकों ने दी ये दलील
टैक्सी चालकों के अनुसार उनके काम मे अभी तक कोई तेजी नहीं आई है, लेकिन कुल्लू में करीब 50 वाहन लगातार ग्रामीण रूट पर लोगों को कम किराए में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. वहीं, कुल्लू टैक्सी यूनियन के प्रधान युवराज ठाकुर का कहना है कि यूनियन ग्रामीण इलाकों में पहले की तरह कम किराए पर लोगों को अपनी सेवाएं दे रही है. कुछ रूट घाटे पर भी चल रहे हैं और उनका कारोबार अभी तक गति नहीं पकड़ पाया है.
वहीं, जिला कुल्लू के ग्रामीणों का कहना है कि अब जब सब कुछ सामान्य हो गया है, तो सरकार को भी ग्रामीण रूट पहले की तरह बहाल करने चाहिए. ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजाना अपने काम के लिए कुल्लू आना होता है और शाम के समय अगर कोई लेट हो जाए, तो उसे 20 रुपए की जगह मजबूरी में 200 रुपए खर्च कर अपने घर पहुंचना पड़ता है. गरीब आदमी के लिए रोजाना इतना खर्च करना बेहद मुश्किल है.
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