कुल्लू: जिले की पैराग्लाइडिंग साइट पर अब पर्यटन विभाग की टीम की नजरें रहेंगी. इस दौरान विभाग की टीम नाका लगाएगी और पैराग्लाइडिंग के पायलट को लाइसेंस दिखाना होगा.अगर कोई पायलट नियमों का उल्लंघन करेगा तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी. वहीं, पैराग्लाइडिंग साइट में नाके के दौरान पायलट को लाइसेंस गले में लटकाना अनिवार्य होगा, इसमें पायलट की पूरी जानकारी होगी.
नाके की जगह फाइनल: जानकारी के मुताबिक अगर कोई बिना लाइसेंस पहने साहसिक गतिविधियों को कराता पकड़ा गया तो उसका लाइसेंस रद्द भी किया जा सकता है. इस योजना में साइट पर जाने वाले रास्ते में नाका प्वाइंट को भी चिन्हित किया गया है. यहां पर पर्यटकों और पायलट की जानकारी दर्ज करना होगी.
एक दिन में सिर्फ 4 उड़ानें : नियमों के अनुसार साइट पर एक पायलट 4 से अधिक उड़ानें एक दिन में नहीं भर सकेगा. लगातार हो रहे हादसों के बाद पर्यटन विभाग सजग हो गया है. इसी के चलते नियमों का उल्लंघन करने पर गड़सा साइट को भी आगामी आदेश तक रद्द कर दिया था. लगातार गड़सा साइट में ऑपरेटर और पायलट नियमों को ताक पर रखकर उड़ाने भर रहे थे.
सैलानियों की जान को था जोखिम: इसी आधार पर उपायुक्त आशुतोष गर्ग के आदेश पर जिला पर्यटन अधिकारी न साइट पर पैराग्लाइडिंग बंद करवा दी थी. ऐसे ही नियम अन्य साइट पर भी लागू किए गए हैं, इसमें अभी कई अन्य साइट पर भी गाज गिर सकती है. हालांकि नियम पहले से बने हैं ,लेकिन सख्ती से लागू नहीं हो रहे थे. कुल्लू जिले के कई स्थलों पर साहसिक गतिविधि को अंजाम देकर सैलानियों की जान को जोखिम में डाल रहे हैं. ऐसी लापरवाह पैराग्लाइडिंग ऑपरेटर और पायलट पर अब पर्यटन विभाग कोई नरमी बरतने के मूड में नही है.
हिमाचल प्रदेश एयरो स्पोर्ट्स नियम 2004: हिमाचल प्रदेश एयरो स्पोर्ट्स नियम 2004 के तहत मानसून के मौसम में राज्य में पैराग्लाइडिंग पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहता है. वहीं, पैराग्लाइडर लाइसेंस के लिए अटल बिहारी पर्वतारोहण संस्थान सभी पायलट कोर्स का प्रशिक्षण दिया जाता है. पायलट को मौसम की स्थिति, हवा की दिशा का भी पता लगाना काफी जरूरी होता है. ऐसे में हवा की दिशा भी पैराग्लाइडिंग के लिए काफी जरूरी है. जब पायलट को इन सब चीजों का ज्ञान हो जाता है, तो उसे पर्वतारोहण संस्थान की तरफ से लाइसेंस भी प्रदान किया जाता है. 3 साल के बाद इस लाइसेंस को दोबारा से रिन्यू किया जाता है. लाइसेंस मिलने के बाद पैराग्लाइडर पायलट मान्यता प्राप्त किसी भी साइट पर उड़ान भर सकता है.
अनुभवी पायलट सिखाते हैं गुर: पैराग्लाइडर पायलट का प्रशिक्षण लेने वाला युवक अनुभवी पायलट के साथ उड़ान भरने के गुर सीखते हैं. कुछ गुर सीखने के बाद 1 माह तक सोलंग नाला के 100 मीटर के दायरे में 20 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरते हैं. अनुभवी पायलटों से ही सभी गुर सीखने के बाद पायलट पंजीकरण के लिए पर्यटन विभाग के पास लाइसेंस के लिए आवेदन करता है. वहीं, पर्यटन विभाग इसके बाद पैराग्लाइडर पायलटों के लिए एक ट्रायल का आयोजन करता है. जो भी पायलट इस ट्रायल में सफल रहता है उसे उड़ान भरने के लिए पर्यटन विभाग लाइसेंस जारी करता है.
लाइसेंस दिखाना अनिवार्य होगा: वहीं, इस मामले में जिला पर्यटन अधिकारी सुनैयना शर्मा ने बताया कि पैराग्लाइडिंग साइट पर नाका लगाने की तैयारियां की जा रही, इसमें पायलट को लाइसेंस को गले में लटकाना अनिवार्य रहेगा. साथ ही एक पायलट दिन में 4 से अधिक उड़ानें नहीं भर सकेगा. बता दें कि पिछले कुछ महीनों में पैराग्लाइडिंग के दौरान कुछ हादसे हुए थे, उसके बाद यह फैसला लिया गया है.