कुल्लू: हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को माघ अमावस्या या मौनी अमावस्या कहते हैं.इस दिन मनुष्य को मौन रहना चाहिए और गंगा, यमुना या अन्य पवित्र नदियों, जलाशय अथवा कुंड में स्नान करना चाहिए. धार्मिक मान्यता के अनुसार मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है. इसलिए इस दिन मौन रहकर व्रत करने वाले व्यक्ति को मुनि पद की प्राप्ति होती है.
दान-पुण्य का विशेष महत्व: माघ मास में होने वाले स्नान का सबसे महत्वपूर्ण पर्व अमावस्या ही है. इस दिन स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है. इस बार यह अमावस्या 21 जनवरी शनिवार को है, इसलिए इसे शनिश्चरी अमावस्या भी कहा जा रहा है. शनिश्चरी अमावस्या से पहले शनिदेव अपनी राशि कुंभ में 30 साल बाद गोचर कर रहे हैं इस वजह से इस साल की शनिश्चरी अमावस्या और भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है. इसे माघी अमावस्या भी कहते हैं और इस दिन पवित्र गंगा नदी में स्नान करने का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है.
पूजा से पितरों को मिलती प्रसन्नता: मौनी अमावस्या पर गंगा, यमुना शिप्रा और पवित्र नदियों में स्नान करने की मान्यता है. इस दिन साधु-संत और धार्मिक कार्यों में रुचि रखने वाले प्रयागराज में संगम में डुबकी लगाते हैं. इसके अलावा इस दिन साधु -संत मौन व्रत भी धारण करते हैं. स्नान के बाद सूर्य देवता को अर्घ्य देकर पूजन किया जाता है. इस पूजन से पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है. इसके साथ ही इस दिन जरूरतमंदों को दान भी जरूर करना चाहिए. इस दिन गरम कपड़े, कंबल, फल और अन्न का दान करना भी शुभ माना जाता है. इस बार यह अमावस्या शनिवार को होने की वजह से यदि आप शनि से जुड़ी वस्तुओं का दान करेंगे तो यह विशेष फल प्रदान करने वाला माना जाएगा.
शनिश्चरी अमावस्या पर खप्पर योग: इस बार खास संयोग यह है कि मौनी शनिश्चरी अमावस्या पर शनि अपनी मूल त्रिकोण राशि कुंभ में रहेंगे. इसके साथ ही इस बार शनिश्चरी अमावस्या पर खप्पर योग, चतुर्ग्रही योग, षडाष्टक योग और समसप्तक योग रहने से यह बहुत खास मानी जा रही है. ज्योतिषाचार्य दीप कुमार का कहना हैं कि माघ अमावस्या पर मौन रहने का विशेष महत्व बताया गया है. वहीं ,यदि मौन रहना संभव न हो तो अपने मुख से कटु वचन न बोलें. वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक कहा गया और अमावस्या के दिन चंद्र दर्शन नहीं होते हैं. इससे मन की स्थिति कमजोर रहती है. इसलिए इस दिन मौन व्रत रखकर मन को संयम में रखने का विधान बताया गया है. इस दिन भगवान विष्णु और शिव दोनों की पूजा का विधान है.
प्रायश्चित करने का दिन: शनिदेव को प्रसन्न और अपनी गलतियों का प्रायश्चित करने के लिए इस बार की शनिश्चरी अमावस्या सबसे खास होगी. इस दिन शनि की प्रिय वस्तुओं का दान करके आप उनकी कृपा के पात्र बन सकते हैं. इस दिन काले कंबल, काले जूते, काले तिल, काली उड़द का दान करना सबसे उत्तम माना गया है. शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन सरसों के तेल से शनि महाराज का अभिषेक करने से शनिदेव आपकी सभी गलतियों को माफ करते हैं. इसके साथ शनि मंदिर में जाकर दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ करना चाहिए.
मौनी अमावस्या शुभ मुहूर्त: मौनी या शनिश्चरी अमावस्या शनिवार 21 जनवरी को सुबह 6 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी. तिथि का समापन 22 जनवरी रविवार को सुबह 2 बजकर 22 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार शनिवार 21 जनवरी को मौनी या माघ अमावस्या मान्य होगी. इसी दिन स्नान, दान, तर्पण और पूजा-पाठ किया जाएगा. माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान से अमृत स्नान के समान पुण्यफल मिलता है. और सारे पाप धुल जाते हैं.
सुबह उठकर यह करना चाहिए: मौनी अमावस्या पर सबसे पहले जल्दी उठकर गंगा स्नान करना चाहिए. यदि गंगा स्नान करना संभव न हो तो इस दिन घर पर ही जल में गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए. स्नान के बाद सूर्य को तांबे के लोटे में काले तिल डालकर अर्घ्य दें. उसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करके ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और पितरों के नाम से दान-पुण्य करें. कहते हैं कि मौनी अमावस्या पर दान करने से देवों के साथ-साथ पितर भी प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न हैं तो गौ दान, स्वर्ण दान या भूमि दान भी कर सकते हैं. इसके अलावा हर अमावस्या की भांति माघ अमावस्या पर भी पितरों को याद करना चाहिए. इस दिन पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.
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