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कुल्लू दशहरा उत्सव में कोदरे की चाय बनी लोगों का आकर्षण, पारंपरिक अनाज से बने पकवान भी लोगों को भाए

कुल्लू के ढालपुर मैदान में जहां अंतरराष्ट्रीय दशहरे (Kullu Dussehra 2022) की धूम मची हुई है, तो वहीं दशहरा उत्सव को आकर्षक बनाने के लिए यहां विभिन्न विभागों द्वारा प्रदर्शनियां भी लगाई गई हैं. जिसमें कोदरे की चाय जनता के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई (Kodra tea in Kullu Dussehra festival) है. इसके अलावा प्रदर्शनी में पारंपरिक अनाज भी लोगों को उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. जबकि किसानों का एक समूह लोगों को पारंपरिक अनाज उगाने के बारे में भी प्रेरित कर रहा है.

Kullu Dussehra 2022
Kullu Dussehra 2022
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Published : Oct 8, 2022, 3:54 PM IST

Updated : Oct 8, 2022, 4:37 PM IST

कुल्लू: जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर के रथ मैदान में जहां अंतरराष्ट्रीय दशहरे (Kullu Dussehra 2022) की धूम मची हुई है, तो वहीं दशहरा उत्सव को आकर्षक बनाने के लिए यहां विभिन्न विभागों द्वारा प्रदर्शनियां भी लगाई गई हैं. जिसमें कोदरे की चाय जनता के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई (Kodra tea in Kullu Dussehra festival) है. इसके अलावा प्रदर्शनी में पारंपरिक अनाज भी लोगों को उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. जबकि किसानों का एक समूह लोगों को पारंपरिक अनाज उगाने के बारे में भी प्रेरित कर रहा है. दशहरा उत्सव में किसानों के एक समूह द्वारा कृषि विभाग के स्टॉल में पारंपरिक अनाज से बने पकवान तैयार किए जा रहे हैं. जिसका आनंद मेले में पहुंच रहे पर्यटक और स्थानीय लोग खूब उठा रहे हैं.

इतना ही नहीं इन पारंपरिक अनाजों को कैसे उगाया जाएगा और इसके क्या-क्या फायदे हैं, इसके बारे में भी जनता को जानकारी दी जा रही है. वहीं, मोटे अनाज को लेकर भी किसान लोगों को जागरूक कर रहे हैं. जिसमें मोटे अनाज को लेकर प्रचार-प्रसार पर बल दिया जा रहा हैं. प्रदर्शनी में मौजूद किसान नेक राम शर्मा ने बताया कि पुरानी फसलें कोदरा, काउंणी, चीणी, सिरयारा, काठू, लाल चावल, धान, बीथू उगाने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा हैं. वहीं, किसानों को थोड़े-थोड़े बीज भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं, ताकि वे इन फसलों को उगा सकें.

दशहरा उत्सव में कोदरे की चाय बनी लोगों का आकर्षण.

उन्होंने कहा कि पुराने समय में परंपरागत फसलों के बीज तैयार करने की परंपरा थी, लेकिन पिछले कई वर्षों से न केवल खेती खत्म हो रही है, बल्कि बीज भी मुश्किल से मिल रहा है. इसी के चलते अब इन परंपरागत फसलों को फिर से उगाया जाएगा. प्रदर्शनी मैदान में लगाए गए स्टॉल में कोदरे के आटे से बनी चाय और डोसा भी लोगों को उपलब्ध करवाया जा रहा है. इसके अलावा कोदरे का आटा, कांगनी सहित कई पारंपरिक अनाज भी लोगों को उपलब्ध करवाए जा रहे हैं, ताकि इनका सेवन कर लोग अपने शरीर को स्वस्थ बना सकें.

पौष्टिकता से भरपूर है यह परंपरागत फसलें: औषधीय गुणों वाले मोटे अनाज के उत्पादन की पुरानी परंपरा अब धीरे-धीरे समाप्त हो रही है. इन फसलों में पौष्टिकता भरपूर मात्रा में पाई जाती है. कोदरे का आटा दिल संबंधी रोग रक्तचाप, शुगर जैसी बीमारियों को ठीक करने में काफी सहायक माना जाता है. पौष्टिक तत्वों और प्रचुर कैल्शियम करने वाली परंपरागत कोदरा काउंणी की खेती को बचाने का विभाग प्रयास भी कर रहा है.

पारंपरिक फसलों को दिया जा रहा बढ़ावा: स्टॉल में उपस्थित किसान नेक राम शर्मा ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दौरान मोटे अनाज कोदरे, काउंणी, सिरयारा से बने पकवान तैयार किए जा रहे हैं. इसके अलावा स्टॉल में इसके बारे में जानकारी भी दी जा रही है. वहीं, पारंपरिक फसलों के प्रति किसानों का रुझान बढ़ें, इसके लिए हिमाचल प्रदेश में 10 हजार किसानों को भी अपने साथ जोड़ा गया है, जो अब पारंपरिक फसलों की खेती (Traditional crops of Himachal) कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में हर साल 500 करोड़ की फसल उजाड़ने वाले बंदर इस बार क्यों नहीं हैं चुनावी मुद्दा ?

कुल्लू: जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर के रथ मैदान में जहां अंतरराष्ट्रीय दशहरे (Kullu Dussehra 2022) की धूम मची हुई है, तो वहीं दशहरा उत्सव को आकर्षक बनाने के लिए यहां विभिन्न विभागों द्वारा प्रदर्शनियां भी लगाई गई हैं. जिसमें कोदरे की चाय जनता के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई (Kodra tea in Kullu Dussehra festival) है. इसके अलावा प्रदर्शनी में पारंपरिक अनाज भी लोगों को उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. जबकि किसानों का एक समूह लोगों को पारंपरिक अनाज उगाने के बारे में भी प्रेरित कर रहा है. दशहरा उत्सव में किसानों के एक समूह द्वारा कृषि विभाग के स्टॉल में पारंपरिक अनाज से बने पकवान तैयार किए जा रहे हैं. जिसका आनंद मेले में पहुंच रहे पर्यटक और स्थानीय लोग खूब उठा रहे हैं.

इतना ही नहीं इन पारंपरिक अनाजों को कैसे उगाया जाएगा और इसके क्या-क्या फायदे हैं, इसके बारे में भी जनता को जानकारी दी जा रही है. वहीं, मोटे अनाज को लेकर भी किसान लोगों को जागरूक कर रहे हैं. जिसमें मोटे अनाज को लेकर प्रचार-प्रसार पर बल दिया जा रहा हैं. प्रदर्शनी में मौजूद किसान नेक राम शर्मा ने बताया कि पुरानी फसलें कोदरा, काउंणी, चीणी, सिरयारा, काठू, लाल चावल, धान, बीथू उगाने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा हैं. वहीं, किसानों को थोड़े-थोड़े बीज भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं, ताकि वे इन फसलों को उगा सकें.

दशहरा उत्सव में कोदरे की चाय बनी लोगों का आकर्षण.

उन्होंने कहा कि पुराने समय में परंपरागत फसलों के बीज तैयार करने की परंपरा थी, लेकिन पिछले कई वर्षों से न केवल खेती खत्म हो रही है, बल्कि बीज भी मुश्किल से मिल रहा है. इसी के चलते अब इन परंपरागत फसलों को फिर से उगाया जाएगा. प्रदर्शनी मैदान में लगाए गए स्टॉल में कोदरे के आटे से बनी चाय और डोसा भी लोगों को उपलब्ध करवाया जा रहा है. इसके अलावा कोदरे का आटा, कांगनी सहित कई पारंपरिक अनाज भी लोगों को उपलब्ध करवाए जा रहे हैं, ताकि इनका सेवन कर लोग अपने शरीर को स्वस्थ बना सकें.

पौष्टिकता से भरपूर है यह परंपरागत फसलें: औषधीय गुणों वाले मोटे अनाज के उत्पादन की पुरानी परंपरा अब धीरे-धीरे समाप्त हो रही है. इन फसलों में पौष्टिकता भरपूर मात्रा में पाई जाती है. कोदरे का आटा दिल संबंधी रोग रक्तचाप, शुगर जैसी बीमारियों को ठीक करने में काफी सहायक माना जाता है. पौष्टिक तत्वों और प्रचुर कैल्शियम करने वाली परंपरागत कोदरा काउंणी की खेती को बचाने का विभाग प्रयास भी कर रहा है.

पारंपरिक फसलों को दिया जा रहा बढ़ावा: स्टॉल में उपस्थित किसान नेक राम शर्मा ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दौरान मोटे अनाज कोदरे, काउंणी, सिरयारा से बने पकवान तैयार किए जा रहे हैं. इसके अलावा स्टॉल में इसके बारे में जानकारी भी दी जा रही है. वहीं, पारंपरिक फसलों के प्रति किसानों का रुझान बढ़ें, इसके लिए हिमाचल प्रदेश में 10 हजार किसानों को भी अपने साथ जोड़ा गया है, जो अब पारंपरिक फसलों की खेती (Traditional crops of Himachal) कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में हर साल 500 करोड़ की फसल उजाड़ने वाले बंदर इस बार क्यों नहीं हैं चुनावी मुद्दा ?

Last Updated : Oct 8, 2022, 4:37 PM IST
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