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लाल बुरांश से सजे के जंगल, फूलों से जूस तैयार कर रहे ग्रामीण - लाल बुरांश से सजे के जंगल

हिमाचल के जंगल इन दिनों बुरांश के फूलों से सजे हुए हैं. फरवरी, मार्च और अप्रैल महीने में खिलने वाले बुरांश के फूलों का इन क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण लोग विभिन्न बीमारियों में औषधि के रूप में भी प्रयोग करते हैं. इसके अलावा बुरांश के फूल की तासीर ठंडी होने के कारण इसका जूस (Buransh flowers in kullu) भी बनाया जाता है. कुल्लू में भी इन दिनों ग्रामीण इन फूलों का इस्तेमाल जूस बनाने में कर रहे हैं.

Buransh flowers in kullu
कुल्लू में बुरांश के फूल.
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Published : Mar 30, 2022, 7:31 PM IST

कुल्लू: हिमाचल के पहाड़ों पर इन दिनों जंगल बुरांश के फूलों से मनमोहक एवं आकर्षक बने हुए हैं. फरवरी, मार्च और अप्रैल महीने में खिलने वाले बुरांश के फूलों का इन क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण लोग विभिन्न बीमारियों में औषधि के रूप में भी प्रयोग करते हैं. इसके अलावा बुरांश के फूल की तासीर ठंडी होने के कारण इसका जूस (Buransh flowers in kullu) भी बनाया जाता है. करीब 14 मीटर तक की लंबाई वाले ये वृक्ष ढलानदार भूमि में पाए जाते हैं. बुरांश के फूल देखने में जितने सुंदर होते हैं, उतने ही स्वास्थ्यवर्धक भी माने जाते हैं.

कुल्लू जिले के ऊंचाई वाले इलाकों में भी इन दिनों जंगल बुरांश (Buransh juice benefits) के फूलों से खिल गए हैं. यह फूल अब ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका का साधन बन गए हैं. ग्रामीण जंगलों से इन फूलों को इकट्ठा करके ला रहे हैं और भुट्टी में एचपीएमसी के फल विधायन केंद्र में इसका जूस भी तैयार किया जा रहा है. हिमाचल में बुरांश के 3 प्रकार के फूल पाए जाते हैं, जिनमें गुलाबी, लाल और सफेद फूल शामिल हैं. इनमें लाल फूलों का औषधीय महत्व अधिक माना जाता है. लोग इसे लिवर, किडनी रोग के अलावा खूनी दस्त और बुखार आदि के दौरान भी प्रयोग करते हैं. बुरांश के फूलों में मिथेनॉल होता है, जोकि डायबिटीज के लिए भी उत्तम माना जाता है.

कुल्लू में बुरांश के फूल ms जूस तैयार कर रहे ग्रामीण.

इसके अलावा बुरांश के फूलों से जूस और चटनी (Burans flower chutney) भी बनाई जाती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इसके फूलों दवाइयां भी बनाई जाती हैं, जिन्हें दस्त-उल्टी आदि में प्रयोग किया जाता है. उन्होंने बताया कि बुरांश के फूल भगवान को भी चढ़ाए जाते हैं. पहाड़ों पर बुरांश का पौधा 1500-3600 मीटर की ऊंचाई पर उगता है. यह 20 मीटर तक ऊंचा होता है. इसकी दो प्रजातियां पहाड़ों में इन दिनों खिली हुई हैं. एक लाल और दूसरी सफेद. सफेद बुरांश को आमतौर पर प्रयोग में कम लाया जाता है, लेकिन लाल बुरांश का प्रयोग पहाड़ों में बहुत ज्यादा किया जाता है.

लाल बुरांश से बना हुआ शरबत हृदय रोग के लिए कारगर माना जाता है. वहीं, अब कोरोना की दवा के लिए भी लाल बुरांश का प्रयोग हो रहा है. भुट्टी में एचपीएमसी के फल विधायन केंद्र (HPMC Fruits Processing Center kullu) में तैनात अधिकारी नरेश का कहना है कि यहां पर इसके फूलों का शरबत भी तैयार किया जा रहा है. ग्रामीण जंगलों से फूल एकत्र करके ला रहे हैं. इसके फूलों के कई औषधीय गुण भी है और गर्मियों के रोगों में इसे रामबाण माना गया है.

ये भी पढ़ें: त्रिलोकपुर में नवरात्रि मेला अवधि के दौरान इन चीजों पर रहेगा प्रतिबंध, डीसी ने जारी किए आदेश

कुल्लू: हिमाचल के पहाड़ों पर इन दिनों जंगल बुरांश के फूलों से मनमोहक एवं आकर्षक बने हुए हैं. फरवरी, मार्च और अप्रैल महीने में खिलने वाले बुरांश के फूलों का इन क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण लोग विभिन्न बीमारियों में औषधि के रूप में भी प्रयोग करते हैं. इसके अलावा बुरांश के फूल की तासीर ठंडी होने के कारण इसका जूस (Buransh flowers in kullu) भी बनाया जाता है. करीब 14 मीटर तक की लंबाई वाले ये वृक्ष ढलानदार भूमि में पाए जाते हैं. बुरांश के फूल देखने में जितने सुंदर होते हैं, उतने ही स्वास्थ्यवर्धक भी माने जाते हैं.

कुल्लू जिले के ऊंचाई वाले इलाकों में भी इन दिनों जंगल बुरांश (Buransh juice benefits) के फूलों से खिल गए हैं. यह फूल अब ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका का साधन बन गए हैं. ग्रामीण जंगलों से इन फूलों को इकट्ठा करके ला रहे हैं और भुट्टी में एचपीएमसी के फल विधायन केंद्र में इसका जूस भी तैयार किया जा रहा है. हिमाचल में बुरांश के 3 प्रकार के फूल पाए जाते हैं, जिनमें गुलाबी, लाल और सफेद फूल शामिल हैं. इनमें लाल फूलों का औषधीय महत्व अधिक माना जाता है. लोग इसे लिवर, किडनी रोग के अलावा खूनी दस्त और बुखार आदि के दौरान भी प्रयोग करते हैं. बुरांश के फूलों में मिथेनॉल होता है, जोकि डायबिटीज के लिए भी उत्तम माना जाता है.

कुल्लू में बुरांश के फूल ms जूस तैयार कर रहे ग्रामीण.

इसके अलावा बुरांश के फूलों से जूस और चटनी (Burans flower chutney) भी बनाई जाती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इसके फूलों दवाइयां भी बनाई जाती हैं, जिन्हें दस्त-उल्टी आदि में प्रयोग किया जाता है. उन्होंने बताया कि बुरांश के फूल भगवान को भी चढ़ाए जाते हैं. पहाड़ों पर बुरांश का पौधा 1500-3600 मीटर की ऊंचाई पर उगता है. यह 20 मीटर तक ऊंचा होता है. इसकी दो प्रजातियां पहाड़ों में इन दिनों खिली हुई हैं. एक लाल और दूसरी सफेद. सफेद बुरांश को आमतौर पर प्रयोग में कम लाया जाता है, लेकिन लाल बुरांश का प्रयोग पहाड़ों में बहुत ज्यादा किया जाता है.

लाल बुरांश से बना हुआ शरबत हृदय रोग के लिए कारगर माना जाता है. वहीं, अब कोरोना की दवा के लिए भी लाल बुरांश का प्रयोग हो रहा है. भुट्टी में एचपीएमसी के फल विधायन केंद्र (HPMC Fruits Processing Center kullu) में तैनात अधिकारी नरेश का कहना है कि यहां पर इसके फूलों का शरबत भी तैयार किया जा रहा है. ग्रामीण जंगलों से फूल एकत्र करके ला रहे हैं. इसके फूलों के कई औषधीय गुण भी है और गर्मियों के रोगों में इसे रामबाण माना गया है.

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