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Jaya Ekadashi: 1 फरवरी को ऐसे करें जया एकादशी का व्रत, बड़ी से बड़ी इच्छा भी होगी पूरी - जया एकादशी 2023

माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी भी कहा जाता है. इस बार यह व्रत 1 फरवरी 2023 को आ रहा है. इस दिन बुधवार भी होने से विशेष योग बन रहा है. ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार जया एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के समस्त दुख, दर्द समाप्त हो जाते हैं. इसके प्रभाव से उसे सभी प्रकार के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.(Jaya Ekadashi 2023)(Jaya Ekadashi Vrat)(Jaya Ekadashi Muhurat ).

Jaya Ekadashi Vrat
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Published : Jan 29, 2023, 1:09 PM IST

Jaya Ekadashi Vrat: सनातन धर्म में त्योहार और अतिथियों का जितना महत्व है, उतना ही महत्व एकादशी का भी है. माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है और इस बार जया एकादशी 1 फरवरी बुधवार को मनाई जा रही है. जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त जया एकादशी का व्रत रखता है, उस व्यक्ति पर भूत प्रेत और पिशाचों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. इस दिन व्रत रखने वाले सभी भक्त पापमुक्त हो जाते हैं. जया एकादशी के दिन वस्त्र, धन, भोजन और आवश्यक चीजों का दान करना शुभ माना जाता है. जया एकादशी को दक्षिण भारत में 'भूमि एकादशी' और 'भीष्म एकादशी' के नाम से जाना जाता है.

कब है जया एकादशी 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार जया एकादशी की शुरुआत 31 जनवरी को रात 11 बजकर 53 मिनट पर होगी और इसका समापन 1 फरवरी को दोपहर 2 बजकर 1 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार जया एकादशी 1 फरवरी को ही मनाई जाएगी. जया एकादशी पारण 2 फरवरी सुबह 7 बजकर 9 मिनट से सुबह 9 बजकर 19 मिनट तक किया जाएगा. इसके अलावा सर्वार्थ सिद्धि योग 1 फरवरी सुबह 7 बजकर 10 मिनट से 2 फरवरी की आधी रात 3 बजकर 23 मिनट तक होगा.

एकादशी पर बन रहा सर्वार्ध सिद्धि योग: माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर सर्वाद्ध सिद्धि योग बन रहा है. सर्वाद्ध सिद्धि योग की शुरुआत 1 फरवरी 2023 को सुबह 7 बजकर 10 मिनट से लेकर अर्द्धरात्रि 3 बजकर 23 मिनट पर हो रही है. कोई भी शुभ कार्य करने के लिए यह अबूझ मुहूर्त होता है. वहीं इस दिन सूर्योदय से लेकर सुबह 11 बजकर 30 मिनट तक सर्वाद्ध सिद्धि योग भी बन रहा है.

जया एकादशी पूजा विधि: जया एकादशी के दिन प्रातः काल स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद पूजा में धूप, दीप, फल और पंचामृत अवश्य शामिल करें. इस दिन की पूजा में भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करने का विधान बताया गया है. एकादशी व्रत में रात्रि जागरण करना बेहद ही शुभ होता है. ऐसे में रात में जगकर श्री हरि के नाम का भजन करें. इसके बाद अगले दिन द्वादशी पर किसी जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं. उन्हें दान दक्षिणा दें और उसके बाद ही अपने व्रत का पारण करें. इसके अलावा इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना भी अनिवार्य होता है.

इन चीजों से करें परहेज: एकादशी के व्रत वाले दिन विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ करना बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन सभी लोगों को सदाचार का पालन करना चाहिए. इसके अलावा जो लोग व्रत नहीं रख सकते हैं, उन्हें भी इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए. इस दिन सात्विक भोजन ही करें और दूसरों की बुराई करने से बचें. जया एकादशी के दिन भोग विलास, छल कपट, जैसी बुरी चीजों से बचना चाहिए. इस दिन लहसुन, प्याज, बैंगन, मांस, मदिरा, पान, सुपारी, तंबाकू इत्यादि खाने से भी परहेज करना चाहिए.

क्या है व्रत की मान्यता: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक समय इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था. जिसमे देवगण, संत, दिव्य पुरूष सभी उत्सव में उपस्थित थे. उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं. इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था, जो बहुत ही सुरीला गाता था. जितनी सुरीली उसकी आवाज थी उतना ही सुंदर रूप था. उधर गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी.

पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे को देखकर सुध-बुध खो बैठते हैं और अपनी लय व ताल से भटक जाते हैं. उनके इस कृत्य से देवराज इंद्र नाराज हो जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगोगे. इंद्र के श्राप के प्रभाव से वे दोनों प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे. पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था और दोनों बहुत दुखी थे.

एक समय माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था. पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था. दोनों रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे. इसके बाद सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई. अंजाने में ही सही लेकिन उन्होंने एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुन: स्वर्ग लोक चले गए.

ये भी पढ़ें: अनोखी जाजड़ा प्रथा: राजेंद्र के घर बारात लेकर पहुंची सुमन, दूल्हे के घर निभाई जाती है सारी रस्में

Jaya Ekadashi Vrat: सनातन धर्म में त्योहार और अतिथियों का जितना महत्व है, उतना ही महत्व एकादशी का भी है. माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है और इस बार जया एकादशी 1 फरवरी बुधवार को मनाई जा रही है. जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की उपासना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त जया एकादशी का व्रत रखता है, उस व्यक्ति पर भूत प्रेत और पिशाचों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. इस दिन व्रत रखने वाले सभी भक्त पापमुक्त हो जाते हैं. जया एकादशी के दिन वस्त्र, धन, भोजन और आवश्यक चीजों का दान करना शुभ माना जाता है. जया एकादशी को दक्षिण भारत में 'भूमि एकादशी' और 'भीष्म एकादशी' के नाम से जाना जाता है.

कब है जया एकादशी 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार जया एकादशी की शुरुआत 31 जनवरी को रात 11 बजकर 53 मिनट पर होगी और इसका समापन 1 फरवरी को दोपहर 2 बजकर 1 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार जया एकादशी 1 फरवरी को ही मनाई जाएगी. जया एकादशी पारण 2 फरवरी सुबह 7 बजकर 9 मिनट से सुबह 9 बजकर 19 मिनट तक किया जाएगा. इसके अलावा सर्वार्थ सिद्धि योग 1 फरवरी सुबह 7 बजकर 10 मिनट से 2 फरवरी की आधी रात 3 बजकर 23 मिनट तक होगा.

एकादशी पर बन रहा सर्वार्ध सिद्धि योग: माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर सर्वाद्ध सिद्धि योग बन रहा है. सर्वाद्ध सिद्धि योग की शुरुआत 1 फरवरी 2023 को सुबह 7 बजकर 10 मिनट से लेकर अर्द्धरात्रि 3 बजकर 23 मिनट पर हो रही है. कोई भी शुभ कार्य करने के लिए यह अबूझ मुहूर्त होता है. वहीं इस दिन सूर्योदय से लेकर सुबह 11 बजकर 30 मिनट तक सर्वाद्ध सिद्धि योग भी बन रहा है.

जया एकादशी पूजा विधि: जया एकादशी के दिन प्रातः काल स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद पूजा में धूप, दीप, फल और पंचामृत अवश्य शामिल करें. इस दिन की पूजा में भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करने का विधान बताया गया है. एकादशी व्रत में रात्रि जागरण करना बेहद ही शुभ होता है. ऐसे में रात में जगकर श्री हरि के नाम का भजन करें. इसके बाद अगले दिन द्वादशी पर किसी जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं. उन्हें दान दक्षिणा दें और उसके बाद ही अपने व्रत का पारण करें. इसके अलावा इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना भी अनिवार्य होता है.

इन चीजों से करें परहेज: एकादशी के व्रत वाले दिन विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ करना बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन सभी लोगों को सदाचार का पालन करना चाहिए. इसके अलावा जो लोग व्रत नहीं रख सकते हैं, उन्हें भी इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए. इस दिन सात्विक भोजन ही करें और दूसरों की बुराई करने से बचें. जया एकादशी के दिन भोग विलास, छल कपट, जैसी बुरी चीजों से बचना चाहिए. इस दिन लहसुन, प्याज, बैंगन, मांस, मदिरा, पान, सुपारी, तंबाकू इत्यादि खाने से भी परहेज करना चाहिए.

क्या है व्रत की मान्यता: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक समय इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था. जिसमे देवगण, संत, दिव्य पुरूष सभी उत्सव में उपस्थित थे. उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं. इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था, जो बहुत ही सुरीला गाता था. जितनी सुरीली उसकी आवाज थी उतना ही सुंदर रूप था. उधर गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी.

पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे को देखकर सुध-बुध खो बैठते हैं और अपनी लय व ताल से भटक जाते हैं. उनके इस कृत्य से देवराज इंद्र नाराज हो जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगोगे. इंद्र के श्राप के प्रभाव से वे दोनों प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे. पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था और दोनों बहुत दुखी थे.

एक समय माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था. पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था. दोनों रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे. इसके बाद सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई. अंजाने में ही सही लेकिन उन्होंने एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुन: स्वर्ग लोक चले गए.

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