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वन अधिकार समितियों ने एसडीएम कुल्लू को सौंपी दावों की फाइल

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Published : Mar 24, 2021, 1:27 PM IST

हिमालय नीति अभियान के द्वारा जिला कुल्लू के मणिकर्ण क्षेत्र की सात वन अधिकार समितियों के सामुदायिक व सांझे वन संसाधनों पर कानून के अनुरूप विभिन्न वन अधिकार समितियों द्वारा तैयार की गई. जो काम विकास खंड की 70 पंचायतों की 300 से ज्यादा वन अधिकार समितियों के साथ तीन-चार महीनों में पूरा होना था. वो एक वर्ष बीत जाने के बाद शून्य स्तर पर पहुंच गया.

Forest Rights Committees submitted claims file to SDM
फोटो

कुल्लू : हिमालय नीति अभियान के द्वारा जिला कुल्लू के मणिकर्ण क्षेत्र की सात वन अधिकार समितियों के सामुदायिक और साझे वन संसाधनों पर कानून के अनुरूप विभिन्न वन अधिकार समितियों द्वारा तैयार की गई. वहीं, समितियों की दावा फाइलें उपमंडल स्तरीय समिति कुल्लू में जमा की गई. जिन्हें कानून के अनुरूप वन अधिकार कानून के अंतर्गत संबंधित ग्राम सभाओं द्वारा प्रेषित किया गया था.

हिमालय नीति अभियान

हिमालय नीति अभियान के सदस्य पूर्ण पुजारी ने बताया कि कुछ समय पहले प्रशासन ने पंचायत सचिवों के माध्यम से आनन फानन में वन अधिकार समितियों के रजिस्टर में ‘निल क्लेम’ के प्रस्ताव लिखवाये थे. जिसमें हिमालय नीति अभियान ने सरकार के स्तर पर हस्तक्षेप करके इस प्रक्रिया को कानून की मूल भावना के विपरीत बताया था. वन अधिकार समितियां प्रशिक्षण की कमी की वजह सामुदायिक वन संसाधनों पर दावे प्रस्तुत नही कर पाई थी. फिर बाद में हिमालय नीति अभियान ने प्रशासन के साथ मिलकर विकास खंड कुल्लू में वन अधिकार समितियों का प्रशिक्षण किया था.

समिति ने आधी-अधूरी फाइलें की वापिस

प्रशिक्षण के बाद की प्रक्रिया में ना तो विकास खंड प्रशासन कुल्लू ने तो कोई सहयोग किया. बल्कि आधी अधूरी दावा फाइलें उप मंडल स्तर की समिति में जमा करवा दी. जिसका खामयाजा विकास खंड की समस्त जनता को भुगतना पड़ा और पूरी प्रक्रिया शून्य हो गई. विकास खंड और प्रशासन की इस कारगुजारी के कारण कानून के अनुरूप ग्राम सभाओं द्वारा सामुदायिक वन संसाधनों पर दावा फाइलें तैयार करने का जो काम विकास खंड की 70 पंचायतों की 300 से ज्यादा वन अधिकार समितियों के साथ तीन-चार महीनों में पूरा होना था. वो एक वर्ष बीत जाने के बाद शून्य स्तर पर पहुंच गया.

अधिकार समितियों को नहीं दिए गए निशुल्क दस्तावेज

हिमालय नीति अभियान की टीम लगातार व निरंतर वन अधिकार कानून को लेकर लोगों के बीच जाकर वन अधिकार समितियों का क्षमता वर्धन भी कर रही है और सामुदायिक दावों को भरने की प्रक्रिया में लोगों की मदद भी कर रही है. दावों को भरने में हो रही देरी का कारण प्रशासन को बताते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में कानून का अनुसार हर तरह के दस्तावेज ग्राम सभा को उपलब्ध करवाना उप मंडल स्तर की समिति का कार्य है. परन्तु कानून को लागू करने के नाम पर ना तो किसी तरह का दस्तावेज वन अधिकार समितियों को नि:शुल्क दिया जा रहा है और वन विभाग की शाखाओं जैसे ‘वाइल्ड लाइफ’ और ‘ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क’ को तो दस्तावेज देने के लिए अभी तक कोई आदेश तक नहीं दिया है.

ये भी पढ़े:- हिमाचल में जमकर बरसे बादल, बुधवार को भी ऊपरी क्षेत्रों में खराब रहेगा मौसम

कुल्लू : हिमालय नीति अभियान के द्वारा जिला कुल्लू के मणिकर्ण क्षेत्र की सात वन अधिकार समितियों के सामुदायिक और साझे वन संसाधनों पर कानून के अनुरूप विभिन्न वन अधिकार समितियों द्वारा तैयार की गई. वहीं, समितियों की दावा फाइलें उपमंडल स्तरीय समिति कुल्लू में जमा की गई. जिन्हें कानून के अनुरूप वन अधिकार कानून के अंतर्गत संबंधित ग्राम सभाओं द्वारा प्रेषित किया गया था.

हिमालय नीति अभियान

हिमालय नीति अभियान के सदस्य पूर्ण पुजारी ने बताया कि कुछ समय पहले प्रशासन ने पंचायत सचिवों के माध्यम से आनन फानन में वन अधिकार समितियों के रजिस्टर में ‘निल क्लेम’ के प्रस्ताव लिखवाये थे. जिसमें हिमालय नीति अभियान ने सरकार के स्तर पर हस्तक्षेप करके इस प्रक्रिया को कानून की मूल भावना के विपरीत बताया था. वन अधिकार समितियां प्रशिक्षण की कमी की वजह सामुदायिक वन संसाधनों पर दावे प्रस्तुत नही कर पाई थी. फिर बाद में हिमालय नीति अभियान ने प्रशासन के साथ मिलकर विकास खंड कुल्लू में वन अधिकार समितियों का प्रशिक्षण किया था.

समिति ने आधी-अधूरी फाइलें की वापिस

प्रशिक्षण के बाद की प्रक्रिया में ना तो विकास खंड प्रशासन कुल्लू ने तो कोई सहयोग किया. बल्कि आधी अधूरी दावा फाइलें उप मंडल स्तर की समिति में जमा करवा दी. जिसका खामयाजा विकास खंड की समस्त जनता को भुगतना पड़ा और पूरी प्रक्रिया शून्य हो गई. विकास खंड और प्रशासन की इस कारगुजारी के कारण कानून के अनुरूप ग्राम सभाओं द्वारा सामुदायिक वन संसाधनों पर दावा फाइलें तैयार करने का जो काम विकास खंड की 70 पंचायतों की 300 से ज्यादा वन अधिकार समितियों के साथ तीन-चार महीनों में पूरा होना था. वो एक वर्ष बीत जाने के बाद शून्य स्तर पर पहुंच गया.

अधिकार समितियों को नहीं दिए गए निशुल्क दस्तावेज

हिमालय नीति अभियान की टीम लगातार व निरंतर वन अधिकार कानून को लेकर लोगों के बीच जाकर वन अधिकार समितियों का क्षमता वर्धन भी कर रही है और सामुदायिक दावों को भरने की प्रक्रिया में लोगों की मदद भी कर रही है. दावों को भरने में हो रही देरी का कारण प्रशासन को बताते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में कानून का अनुसार हर तरह के दस्तावेज ग्राम सभा को उपलब्ध करवाना उप मंडल स्तर की समिति का कार्य है. परन्तु कानून को लागू करने के नाम पर ना तो किसी तरह का दस्तावेज वन अधिकार समितियों को नि:शुल्क दिया जा रहा है और वन विभाग की शाखाओं जैसे ‘वाइल्ड लाइफ’ और ‘ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क’ को तो दस्तावेज देने के लिए अभी तक कोई आदेश तक नहीं दिया है.

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