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अटल टनल ने बढ़ाई हिमाचल की शान, पर्यटन कारोबार को लगाए चार चांद

24 जून से लेकर 30 जून तक 12 हजार 103 वाहनों ने अटल टनल को पार किया है. हालांकि अभी भी कई बंदिशें पर्यटन पर लगी हुई हैं. ऐसे में आने वाले दिनों में अगर सरकार बंदिशों को खोल देती है तो हिमाचल के पर्यटन के लिए अटल टनल एक नई तस्वीर के रूप में सामने होगी.

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Published : Jul 1, 2021, 4:33 PM IST

कुल्लू: कोरोना संकट के बीच मिली राहत के बाद अब सैलानियों का हिमाचल आना शुरू हो गया है. हिमाचल के पर्यटन पर एक नई इबारत अटल टनल ने भी उकेर दी है. अटल टनल के दीदार को रोजाना हजारों वाहन पहुंच रहे हैं. इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 24 जून से लेकर 30 जून तक 12 हजार 103 वाहनों ने अटल टनल को पार किया है. हालांकि अभी भी कई बंदिशें पर्यटन पर लगी हुई हैं. ऐसे में आने वाले दिनों में अगर सरकार बंदिशों को खोल देती है तो हिमाचल के पर्यटन के लिए अटल टनल एक नई तस्वीर के रूप में सामने होगी.

Atal Tunnel
अटल टनल

6 महीने की बर्फीली कैद से मुक्ति

अटल टनल ने चीन और पाकिस्तान की सीमा पर तैनात सेना के जवानों के लिए भी राहत दी है और शीत मरुस्थल लाहौल के लोगों को भी 6 महीने की बर्फीली कैद से मुक्ति मिली है. बीते वीकेंड के दिन 24 घंटों के भीतर 7,276 वाहन अटल टनल के आर पार हुए. यह अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है.

मनाली पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार 30 जून तक 12 हजार से अधिक गाड़ियों ने अटल टनल को पार किया है और 7 हजार गाड़िया वापिस अटल टनल होते हुए मनाली पहुंची हैं. बाकी 5 हजार गाड़िया अटल टनल होते हुए लेह का रुख कर गई हैं.

3 अक्टूबर 2020 को पीएम नरेंद्र मोदी ने अटल टनल का शुभारंभ करते हुए कहा था कि आज अटल जी का सपना पूरा हुआ है. उन्होंने कहा कि यह टनल लेह और लद्दाख के लिए भी लाइफ लाइन बनेगी. देश के अन्य हिस्सों से लेह और लद्दाख पहुंचना आसान हो जाएगा. यहां के किसान देश के अन्य बड़े बाजारों से आसानी से जुड़ सकेंगे.

Atal Tunnel
अटल टनल

मनाली-लेह को जोड़ने में भूमिका

पीएम ने कहा था कि यह टनल देश की सीमाओं को भी बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करेगी. पीएम ने बीआरओ, रक्षा मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय को सुझाव देते हुए कहा कि अटल टनल का काम अपने आप में बेहद यूनीक है. पीएम ने कहा कि इस टनल में काम करने वाले लोगों में से लगभग 1500 लोग ऐसे सेलेक्ट करें जो अपने अनुभव को लिखें.

उन्होंने कहा कि इससे एक ऐसा डॉक्यूमेंट तैयार होगा जिसमें ह्यूमन टच होगा. उन्होंने शिक्षा मंत्रालय से कहा कि टेक्निकल यूनिवर्सटीज के बच्चों को केस स्टडी का काम दिया जाए और हर विश्वविद्यालय के बच्चों के एक बैच को अटल टनल के बारे में बताएं.

अटल टनल मनाली और लेह के बीच की दूरी को 46 किलोमीटर तक कम करती है और यात्रा के समय को भी 4 से 5 घंटे कम कर देती है. यह 9.02 किलोमीटर लंबी सुरंग है जो मनाली को पूरे साल लाहौल-स्पीति घाटी से जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. अटल टनल बनने के बाद लाहौल घाटी की जो तस्वीर अब सामने आई है, वह पहले ऐसी ऐसे नहीं थी.

46 किमी लंबा सफर हुआ 9 किमी

रोहतांग दर्रे में भारी बर्फबारी के चलते लाहौल के लोगों का संपर्क पूरी दुनिया से 6 महीने के लिए कट जाता था. ऐसे में मात्र हेलीकॉप्टर सेवा ही लाहौल के लोगों का सहारा थी. अटल टनल के बन जाने से अब 12 महीने लाहौल घाटी कुल्लू से जुड़ी हुई है और लोगों का आवागमन भी इससे काफी आसान हुआ है. लाहौल घाटी में लोगों की आर्थिकी का जरिया कृषि है और लाहौल का मटर और आलू भी पूरे भारत में प्रसिद्ध है लेकिन रोहतांग दर्रे में बर्फबारी या भूस्खलन होने के चलते कई बार लोगों की फसलें खेतों में ही खराब हो जाती थी. अब अटल टनल के माध्यम से वह अपनी फसलों को भी बाहरी राज्यों में भेज सकते हैं. इसके अलावा साल भर आवागमन की सुविधा मिलने से राशन, दवाइयों सहित अन्य सुविधाएं भी लाहौल के लोगों को मिलती रहेंगी. अटल टनल बनने के बाद रोहतांग दर्रे से होने वाला 46 किलोमीटर का सफर भी अब कम हो गया है और 46 किलोमीटर का सफर अब मात्र 9 किलोमीटर की अटल टनल से पूरा हो रहा है.

Atal Tunnel
अटल टनल

बाजपेयी-टशी दावा की दोस्ती की कड़ी

भले ही अटल टनल रोहतांग के निर्माण में हर नेता और पार्टी ने अपनी भूमिका निभाई है लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी और टशी दावा की दोस्ती इस दिशा में अहम कड़ी बनी. वर्ष 1942 में आरएसएस के तृतीय वर्ष कोर्स में नागपुर में दोनों की दोस्ती परवान चढ़ी.

जब अटल देश के प्रधानमंत्री बने तब संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी चमन लाल ने सालों बाद दोनों की मुलाकात करवाई. फिर टनल निर्माण को लेकर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ. टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल के निमंत्रण पर ही वाजपेयी 2 जून 2000 को केलांग पहुंचे. यहां पर वाजपेयी ने रोहतांग सुरंग निर्माण की विधिवत घोषणा की. सुरंग निर्माण की मांग को लेकर टशी दावा अपने दो मित्रों छेरिंग दोरजे और अभय चंद राणा ने कई बार दिल्ली जाकर वाजपेयी से मुलाकात की.

भले ही रोहतांग टनल निर्माण की सुगबुगाहट दशकों पूर्व से चल रही थी लेकिन पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने मित्र टशी दावा के कहने के बाद घोषणा की और 2002 में मनाली के बाहंग से वाजपेयी ने पलचान से साउथ पोर्टल सड़क मार्ग का शिलान्यास किया.

पर्यटन नगरी मनाली के रोहतांग दर्रे के नीचे सामरिक महत्‍व की सुरंग बनाए जाने का फैसला 2 जून 2000 को लिया गया था. यह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान तय हुआ था. अटल सुरंग के दक्षिणी भाग को जोड़ने वाली सड़क की आधारशिला 26 मई 2002 को रखी गई थी. स्व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 2003 में रोहतांग टनल का शिलान्यास किया था. अटल सुरंग के दोनों छोर पर सड़क निर्माण 15 अक्टूबर 2017 को पूरा हुआ था.

हिमाचल प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल की बैठक में 20 अगस्त 2018 को रोहतांग टनल का नाम पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर रखने का प्रस्ताव किया गया था. बाद में इसे केंद्र सरकार की मंजूरी के लिए भेजा गया था. वर्ष 2000 में टनल परियोजना की अनुमानित लागत 500 करोड़ रुपये आंकी गई थी और 2007 में स्नोवी माउंटेन इंजीनियरिंग कारपोरेशन को निर्माण का ठेका दिया गया. घोषणाओं के बावजूद 2009 तक कार्य में कोई प्रगति नहीं हुई. फिर एफकॉन व स्ट्रॉबेग को काम सौंपा गया. उसी साल कैबिनेट ऑन सिक्योरिटी ने रोहतांग टनल निर्माण को हरी झंडी दी. 28 जून 2010 को सोनिया गांधी के टनल शिलान्यास के बाद खुदाई का काम शुरू हुआ.

काम में देरी से 3200 करोड़ हुई लागत

टनल के निर्माण की लागत 1500 करोड़ रुपये थी. लेकिन काम में देरी होने और विकट परिस्थितियों ने इसकी लागत 3200 करोड़ रुपए कर दी. दुनिया में सबसे ऊंचाई पर बनी सबसे लंबी अटल टनल रोहतांग ने करीब 160 साल का लंबा सफर तय किया है. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान साल 1860 में सबसे पहले मोरोवियन मिशनरीज ने रोहतांग दर्रा के नीचे सुरंग बनाने की कल्पना की थी.

हालांकि उनकी यह कल्पना महज कल्पना ही बनकर रह गई लेकिन अंग्रेजों की इस सोच ने भविष्य में इस ऐतिहासिक टनल की नींव रखने में अहम किरदार निभाया. अटल टनल की खासियतपर्यटन नगरी मनाली की तरफ से सुरंग तक पहुंचने के लिए स्नो गैलरी है और साल भर मनाली को कनेक्टिविटी मिलती रहेगी.

सुरंग के भीतर इमरजेंसी एग्जिट का निर्माण भी किया गया है और हर 150 मीटर पर टेलीफोन, हर 60 मीटर पर फायर हायड्रेंट लगाए गए हैं. अटल टनलमें हर 500 मीटर पर इमरजेंसी एग्जिट बनाए गए हैं. और सुरंग के अंदर वापस मुड़ने के लिए हर 2.2 किमी के बाद टर्निंग है. टनल में हर 250 मीटर पर सीसीटीवी और हर एक किमी पर एयर क्वालिटी निगरानी सिस्टम है और सुरंग के भीतर अधिकतम 60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार रखी गई है.

ये भी पढ़ें: वीडियो: हिमाचल की 'थप्पड़बाज पुलिस', शिमला में पर्यटक के साथ की मारपीट

कुल्लू: कोरोना संकट के बीच मिली राहत के बाद अब सैलानियों का हिमाचल आना शुरू हो गया है. हिमाचल के पर्यटन पर एक नई इबारत अटल टनल ने भी उकेर दी है. अटल टनल के दीदार को रोजाना हजारों वाहन पहुंच रहे हैं. इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 24 जून से लेकर 30 जून तक 12 हजार 103 वाहनों ने अटल टनल को पार किया है. हालांकि अभी भी कई बंदिशें पर्यटन पर लगी हुई हैं. ऐसे में आने वाले दिनों में अगर सरकार बंदिशों को खोल देती है तो हिमाचल के पर्यटन के लिए अटल टनल एक नई तस्वीर के रूप में सामने होगी.

Atal Tunnel
अटल टनल

6 महीने की बर्फीली कैद से मुक्ति

अटल टनल ने चीन और पाकिस्तान की सीमा पर तैनात सेना के जवानों के लिए भी राहत दी है और शीत मरुस्थल लाहौल के लोगों को भी 6 महीने की बर्फीली कैद से मुक्ति मिली है. बीते वीकेंड के दिन 24 घंटों के भीतर 7,276 वाहन अटल टनल के आर पार हुए. यह अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है.

मनाली पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार 30 जून तक 12 हजार से अधिक गाड़ियों ने अटल टनल को पार किया है और 7 हजार गाड़िया वापिस अटल टनल होते हुए मनाली पहुंची हैं. बाकी 5 हजार गाड़िया अटल टनल होते हुए लेह का रुख कर गई हैं.

3 अक्टूबर 2020 को पीएम नरेंद्र मोदी ने अटल टनल का शुभारंभ करते हुए कहा था कि आज अटल जी का सपना पूरा हुआ है. उन्होंने कहा कि यह टनल लेह और लद्दाख के लिए भी लाइफ लाइन बनेगी. देश के अन्य हिस्सों से लेह और लद्दाख पहुंचना आसान हो जाएगा. यहां के किसान देश के अन्य बड़े बाजारों से आसानी से जुड़ सकेंगे.

Atal Tunnel
अटल टनल

मनाली-लेह को जोड़ने में भूमिका

पीएम ने कहा था कि यह टनल देश की सीमाओं को भी बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करेगी. पीएम ने बीआरओ, रक्षा मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय को सुझाव देते हुए कहा कि अटल टनल का काम अपने आप में बेहद यूनीक है. पीएम ने कहा कि इस टनल में काम करने वाले लोगों में से लगभग 1500 लोग ऐसे सेलेक्ट करें जो अपने अनुभव को लिखें.

उन्होंने कहा कि इससे एक ऐसा डॉक्यूमेंट तैयार होगा जिसमें ह्यूमन टच होगा. उन्होंने शिक्षा मंत्रालय से कहा कि टेक्निकल यूनिवर्सटीज के बच्चों को केस स्टडी का काम दिया जाए और हर विश्वविद्यालय के बच्चों के एक बैच को अटल टनल के बारे में बताएं.

अटल टनल मनाली और लेह के बीच की दूरी को 46 किलोमीटर तक कम करती है और यात्रा के समय को भी 4 से 5 घंटे कम कर देती है. यह 9.02 किलोमीटर लंबी सुरंग है जो मनाली को पूरे साल लाहौल-स्पीति घाटी से जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. अटल टनल बनने के बाद लाहौल घाटी की जो तस्वीर अब सामने आई है, वह पहले ऐसी ऐसे नहीं थी.

46 किमी लंबा सफर हुआ 9 किमी

रोहतांग दर्रे में भारी बर्फबारी के चलते लाहौल के लोगों का संपर्क पूरी दुनिया से 6 महीने के लिए कट जाता था. ऐसे में मात्र हेलीकॉप्टर सेवा ही लाहौल के लोगों का सहारा थी. अटल टनल के बन जाने से अब 12 महीने लाहौल घाटी कुल्लू से जुड़ी हुई है और लोगों का आवागमन भी इससे काफी आसान हुआ है. लाहौल घाटी में लोगों की आर्थिकी का जरिया कृषि है और लाहौल का मटर और आलू भी पूरे भारत में प्रसिद्ध है लेकिन रोहतांग दर्रे में बर्फबारी या भूस्खलन होने के चलते कई बार लोगों की फसलें खेतों में ही खराब हो जाती थी. अब अटल टनल के माध्यम से वह अपनी फसलों को भी बाहरी राज्यों में भेज सकते हैं. इसके अलावा साल भर आवागमन की सुविधा मिलने से राशन, दवाइयों सहित अन्य सुविधाएं भी लाहौल के लोगों को मिलती रहेंगी. अटल टनल बनने के बाद रोहतांग दर्रे से होने वाला 46 किलोमीटर का सफर भी अब कम हो गया है और 46 किलोमीटर का सफर अब मात्र 9 किलोमीटर की अटल टनल से पूरा हो रहा है.

Atal Tunnel
अटल टनल

बाजपेयी-टशी दावा की दोस्ती की कड़ी

भले ही अटल टनल रोहतांग के निर्माण में हर नेता और पार्टी ने अपनी भूमिका निभाई है लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी और टशी दावा की दोस्ती इस दिशा में अहम कड़ी बनी. वर्ष 1942 में आरएसएस के तृतीय वर्ष कोर्स में नागपुर में दोनों की दोस्ती परवान चढ़ी.

जब अटल देश के प्रधानमंत्री बने तब संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी चमन लाल ने सालों बाद दोनों की मुलाकात करवाई. फिर टनल निर्माण को लेकर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ. टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल के निमंत्रण पर ही वाजपेयी 2 जून 2000 को केलांग पहुंचे. यहां पर वाजपेयी ने रोहतांग सुरंग निर्माण की विधिवत घोषणा की. सुरंग निर्माण की मांग को लेकर टशी दावा अपने दो मित्रों छेरिंग दोरजे और अभय चंद राणा ने कई बार दिल्ली जाकर वाजपेयी से मुलाकात की.

भले ही रोहतांग टनल निर्माण की सुगबुगाहट दशकों पूर्व से चल रही थी लेकिन पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने मित्र टशी दावा के कहने के बाद घोषणा की और 2002 में मनाली के बाहंग से वाजपेयी ने पलचान से साउथ पोर्टल सड़क मार्ग का शिलान्यास किया.

पर्यटन नगरी मनाली के रोहतांग दर्रे के नीचे सामरिक महत्‍व की सुरंग बनाए जाने का फैसला 2 जून 2000 को लिया गया था. यह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान तय हुआ था. अटल सुरंग के दक्षिणी भाग को जोड़ने वाली सड़क की आधारशिला 26 मई 2002 को रखी गई थी. स्व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 2003 में रोहतांग टनल का शिलान्यास किया था. अटल सुरंग के दोनों छोर पर सड़क निर्माण 15 अक्टूबर 2017 को पूरा हुआ था.

हिमाचल प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल की बैठक में 20 अगस्त 2018 को रोहतांग टनल का नाम पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर रखने का प्रस्ताव किया गया था. बाद में इसे केंद्र सरकार की मंजूरी के लिए भेजा गया था. वर्ष 2000 में टनल परियोजना की अनुमानित लागत 500 करोड़ रुपये आंकी गई थी और 2007 में स्नोवी माउंटेन इंजीनियरिंग कारपोरेशन को निर्माण का ठेका दिया गया. घोषणाओं के बावजूद 2009 तक कार्य में कोई प्रगति नहीं हुई. फिर एफकॉन व स्ट्रॉबेग को काम सौंपा गया. उसी साल कैबिनेट ऑन सिक्योरिटी ने रोहतांग टनल निर्माण को हरी झंडी दी. 28 जून 2010 को सोनिया गांधी के टनल शिलान्यास के बाद खुदाई का काम शुरू हुआ.

काम में देरी से 3200 करोड़ हुई लागत

टनल के निर्माण की लागत 1500 करोड़ रुपये थी. लेकिन काम में देरी होने और विकट परिस्थितियों ने इसकी लागत 3200 करोड़ रुपए कर दी. दुनिया में सबसे ऊंचाई पर बनी सबसे लंबी अटल टनल रोहतांग ने करीब 160 साल का लंबा सफर तय किया है. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान साल 1860 में सबसे पहले मोरोवियन मिशनरीज ने रोहतांग दर्रा के नीचे सुरंग बनाने की कल्पना की थी.

हालांकि उनकी यह कल्पना महज कल्पना ही बनकर रह गई लेकिन अंग्रेजों की इस सोच ने भविष्य में इस ऐतिहासिक टनल की नींव रखने में अहम किरदार निभाया. अटल टनल की खासियतपर्यटन नगरी मनाली की तरफ से सुरंग तक पहुंचने के लिए स्नो गैलरी है और साल भर मनाली को कनेक्टिविटी मिलती रहेगी.

सुरंग के भीतर इमरजेंसी एग्जिट का निर्माण भी किया गया है और हर 150 मीटर पर टेलीफोन, हर 60 मीटर पर फायर हायड्रेंट लगाए गए हैं. अटल टनलमें हर 500 मीटर पर इमरजेंसी एग्जिट बनाए गए हैं. और सुरंग के अंदर वापस मुड़ने के लिए हर 2.2 किमी के बाद टर्निंग है. टनल में हर 250 मीटर पर सीसीटीवी और हर एक किमी पर एयर क्वालिटी निगरानी सिस्टम है और सुरंग के भीतर अधिकतम 60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार रखी गई है.

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