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हिमाचल में नहीं थम रहे सड़क हादसे, एक दशक में इतने अनमोल जीवन बने काल का ग्रास

हिमाचल प्रदेश में सड़क हादसों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. प्रदेश में करीब 500 से अधिक ब्लैक स्पॉट चिन्हित किए गए हैं, लेकिन इन जगहों में दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए अभी कुछ खास कदम नहीं उठाए गए हैं.

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Published : Jun 21, 2019, 10:30 AM IST

Updated : Jun 23, 2019, 8:57 AM IST

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कुल्लू: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में सड़क हादसों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. गुरुवार को कुल्लू के बंजार में हुए बस हादसे ने सबको झकझोर कर रख दिया है. 44 अनमोल जीवन इस हादसे में काल का ग्रास बने हैं. हादसे का कारण ओवरलोडिंग और चालक की लापरवाही बताई जा रही है.

सड़क के किनारों को सुरक्षित न करना भी हादसों का कारण बन रहा है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पर्याप्त बस सुविधा मुहैया न करवाने से भी लोग ओवरलोडिड बसों में सफर करने के लिए मजबूर होते हैं. ऐसा ही कुछ कुल्लू बस हादसे में देखने को मिला. 42 सीटर बस में 80 से ज्यादा लोग सवार थे और जिनमें अधिकतर कॉलेज में एडमिशन लेने के बाद घर लौट रहे स्टूडेंट्स थे.

ये भी पढे़ं-कुल्लू बस हादसे पर PM मोदी और राहुल गांधी ने जताई संवेदना, घायलों के जल्द स्वस्थ होने की कामना

प्रदेश में करीब 500 से अधिक ब्लैक स्पॉट चिन्हित किए गए हैं, लेकिन इन जगहों में दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए अभी कुछ खास कदम नहीं उठाए गए हैं.

स्पेशल रिपोर्ट

हिमाचल प्रदेश मे एक दशक में 10,500 से अधिक लोग सड़क हादसों में काल का ग्रास बन चुके हैं. औसत के लिहाज से देखा जाए तो प्रदेश में रोजाना सड़क हादसों में तीन से अधिक लोगों की मौत होती है. ये आंकड़ा भयावह है. प्रदेश की सड़कों पर 500 से अधिक खतरनाक ब्लैक स्पॉट्स हैं.

एक गैर सरकारी संगठन सोशल वेल्फेयर काउंसिल के सर्वेक्षण के मुताबिक प्रदेश में 80 प्रतिशत सड़क हादसे तेज रफ्तार से वाहन चलाने व चालकों की लापरवाही से होते हैं. कुल हादसों में 5 फीसदी दुर्घटनाओं का कारण तकनीकी खामियां होती हैं और 15 प्रतिशत दुर्घटनाएं खराब सड़कों की वजह से होती हैं.

ये भी पढे़ं-कुल्लू बस हादसे पर हिमाचल परिवहन मंत्री ने जताया शोक, ओवरलोडिंग को बताया हादसे की वजह

सोशल वेल्फेयर काउंसिल के चेयरमैन राजेश्वर नेगी के अनुसार हिमाचल प्रदेश में लापरवाह ड्राइविंग व मोटर वाहन अधिनियम को ताक पर रख कर गाड़ी चलाने के साथ ही खस्ताहाल सड़कों की वजह से मौत का खेल थम नहीं रहा है.

वर्ष 2009 से लेकर बड़े हादसे
साल हादसे मौत घायल
2009 5579 1140 3051
2010 5328 1102 3069
2011 5462 1353 3099
2012 5248 1109 2899
2013 5081 1054 2981
2014 5680 1199 3058
2015 5109 1097 3010
2016 5587 1163 3153
2017 5338 1176 3119
2018 3110 1206 5444
2019 662 298 2155(आंकड़े अप्रैल तक)

ये भी पढे़ं-कुल्लू बस हादसा: घायलों ने लगाया चालक पर आरोप, बस को बचाने की नहीं की गई कोशिश

सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने भी विभागों को निर्देश जारी किए हैं. उन्होंने जिला पुलिस अधीक्षक और लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को संयुक्त रूप से इन स्थलों का दौरा कर निरीक्षण करने के आदेश दिए हुए हैं ताकि इन स्थलों का सुधार सुनिश्चित बनाया जा सके. उन्होंने पथ परिवहन विभाग को राज्य में पथ परिवहन निगम की बसों की दुर्घटनाओं के कारणों का तुलनात्मक अध्ययन करने के भी निर्देश दिए.

कुल्लू: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में सड़क हादसों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. गुरुवार को कुल्लू के बंजार में हुए बस हादसे ने सबको झकझोर कर रख दिया है. 44 अनमोल जीवन इस हादसे में काल का ग्रास बने हैं. हादसे का कारण ओवरलोडिंग और चालक की लापरवाही बताई जा रही है.

सड़क के किनारों को सुरक्षित न करना भी हादसों का कारण बन रहा है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पर्याप्त बस सुविधा मुहैया न करवाने से भी लोग ओवरलोडिड बसों में सफर करने के लिए मजबूर होते हैं. ऐसा ही कुछ कुल्लू बस हादसे में देखने को मिला. 42 सीटर बस में 80 से ज्यादा लोग सवार थे और जिनमें अधिकतर कॉलेज में एडमिशन लेने के बाद घर लौट रहे स्टूडेंट्स थे.

ये भी पढे़ं-कुल्लू बस हादसे पर PM मोदी और राहुल गांधी ने जताई संवेदना, घायलों के जल्द स्वस्थ होने की कामना

प्रदेश में करीब 500 से अधिक ब्लैक स्पॉट चिन्हित किए गए हैं, लेकिन इन जगहों में दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए अभी कुछ खास कदम नहीं उठाए गए हैं.

स्पेशल रिपोर्ट

हिमाचल प्रदेश मे एक दशक में 10,500 से अधिक लोग सड़क हादसों में काल का ग्रास बन चुके हैं. औसत के लिहाज से देखा जाए तो प्रदेश में रोजाना सड़क हादसों में तीन से अधिक लोगों की मौत होती है. ये आंकड़ा भयावह है. प्रदेश की सड़कों पर 500 से अधिक खतरनाक ब्लैक स्पॉट्स हैं.

एक गैर सरकारी संगठन सोशल वेल्फेयर काउंसिल के सर्वेक्षण के मुताबिक प्रदेश में 80 प्रतिशत सड़क हादसे तेज रफ्तार से वाहन चलाने व चालकों की लापरवाही से होते हैं. कुल हादसों में 5 फीसदी दुर्घटनाओं का कारण तकनीकी खामियां होती हैं और 15 प्रतिशत दुर्घटनाएं खराब सड़कों की वजह से होती हैं.

ये भी पढे़ं-कुल्लू बस हादसे पर हिमाचल परिवहन मंत्री ने जताया शोक, ओवरलोडिंग को बताया हादसे की वजह

सोशल वेल्फेयर काउंसिल के चेयरमैन राजेश्वर नेगी के अनुसार हिमाचल प्रदेश में लापरवाह ड्राइविंग व मोटर वाहन अधिनियम को ताक पर रख कर गाड़ी चलाने के साथ ही खस्ताहाल सड़कों की वजह से मौत का खेल थम नहीं रहा है.

वर्ष 2009 से लेकर बड़े हादसे
साल हादसे मौत घायल
2009 5579 1140 3051
2010 5328 1102 3069
2011 5462 1353 3099
2012 5248 1109 2899
2013 5081 1054 2981
2014 5680 1199 3058
2015 5109 1097 3010
2016 5587 1163 3153
2017 5338 1176 3119
2018 3110 1206 5444
2019 662 298 2155(आंकड़े अप्रैल तक)

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सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने भी विभागों को निर्देश जारी किए हैं. उन्होंने जिला पुलिस अधीक्षक और लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को संयुक्त रूप से इन स्थलों का दौरा कर निरीक्षण करने के आदेश दिए हुए हैं ताकि इन स्थलों का सुधार सुनिश्चित बनाया जा सके. उन्होंने पथ परिवहन विभाग को राज्य में पथ परिवहन निगम की बसों की दुर्घटनाओं के कारणों का तुलनात्मक अध्ययन करने के भी निर्देश दिए.

हिमाचल में डैथ पॉइंट बने 516 ब्लैक स्पाट्स, पीडब्ल्यूडी ने सुधारे केवल 91, हर साल हादसों की भेंट चढ़ते हैं अनमोल जीवन
शिमला। सडक़ दुर्घटनाओं के यूं तो कई कारण हैं, लेकिन हिमाचल में ब्लैक स्पॉट्स के कारण हादसों का खतरा लगातार बना हुआ है। लोक निर्माण विभाग ने अपने स्तर पर जो पड़ताल की है, उसके मुताबिक हिमाचल में 516 ब्लैक स्पॉट्स हैं, लेकिन जीवीके कंपनी के सर्वे में इन स्पॉट्स की संख्या 697 बताई गई है। ब्लैक स्पॉट्स को सुधारने में लोक निर्माण विभाग की चाल सुस्त है। एक साल के अंतराल में विभाग ने कुल 91 स्पॉट्स सुधारे हैं। प्रदेश सरकार ने ब्लैक स्पॉट्स मैनेजमेंट के लिए लोक निर्माण विभाग को 22 करोड़ रुपए से अधिक की रकम जारी की है। यदि साल भर के सडक़ हादसों का ग्राफ देखा जाए तो हिमाचल में हर साल 1300 के करीब अनमोल जीवन दुर्घटनाओं की भेंट चढ़ जाते हैं। प्रदेश में इसी साल अप्रैल महीने तक 1200 से अधिक हादसे हुए, जिनमें चार सौ से अधिक लोगों की मौत हुई। अधिकांश हादसे खस्ताहाल सडक़ों, पैरापिट और क्रैश बैरियर की कमी से होते हैं। हर बार बड़ा सडक़ हादसा होने के बाद जांच होती है, लेकिन जांच समिति की सिफारिशों पर अमल नहीं होता। जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने सत्ता में आते ही ब्लैक स्पॉट सुधारने के निर्देश दिए थे। इसके लिए अलग से 22 करोड़ रुपए से अधिक का बजट आवंटित किया गया। जयराम सरकार के कार्यकाल में ही नूरपुर सडक़ हादसे में बच्चों की मौत ने सभी को स्तब्ध कर दिया था। उस हादसे में 24 बच्चे मौत का शिकार हुए थे। उसके बाद से भी दुर्घटनाओं का सिलसिला थमा नहीं है। नेशनल हाईवेज पर भी करीब 90 ब्लैक स्पॉट हैं। लोक निर्माण विभाग की मानें तो इनमें से इसी वर्ष 20 स्पॉट्स ठीक कर दिए गए हैं। राज्य सरकार के लोक निर्माण विभाग ने 17 ब्लैक स्पॉट्स को नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया को सुधारने के लिए कहा है। यदि जीवीके कंपनी के सर्वे की बात की जाए तो उसके प्रदेश भर में 255 ऐसे स्थान हैं जहां बार-बार सडक़ हादसे होते हैं। इसके अलावा करीब 45 ऐसे स्थान हैं, जहां पर बहुत अधिक दुर्घटनाएं सामने आई हैं। यहां उल्लेखनीय है कि जीवीके ने सर्वे के लिए दिसंबर 2010 से दिसंबर 2017 के सडक़ हादसों का अध्ययन किया था। उसी दौरान ये तथ्य सामने आया था कि सबसे अधिक हादसे वीकेंड के दौरान होते हैं। दिन ढलने पर और रात 9 बजे के बीच में बहुत एक्सीडेंट होते हैं। मई से अगस्त तक के महीनों में अधिक हादसे घटित हुए हैं। लोक निर्माण विभाग के सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर एमके मिन्हास का कहना है कि 91 स्पॉट्स सुधारे गए हैं, शेष को भी इस साल के अंत तक सुधारने का प्रयास है। 
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क्या हैं ब्लैक स्पॉट्स
ब्लैक स्पॉट्स को डैथ पॉइंट भी बोलते हैं। नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे या अन्य किसी सडक़ के 500 मीटर के दायरे में तीन सालों में कम से कम दो एक्सीडेंट हुए हों और जिसमें 10 से अधिक लोगों को मौत हुई हो, उन्हें ब्लैक स्पॉट बोला जाता है। हिमाचल में इस साल नूरपुर हादसे में 24 बच्चों की मौत सहित साल 2015 में जिला किन्नौर में नेशनल हाइवे-5 पर भयावह सडक़ दुर्घटना में 21 लोगों की मौत हो गई थी और 11 लोग गंभीर तौर पर जख्मी हुए थे। वर्ष 2016 में जून महीने में दो दिन के भीतर तीन सडक़ हादसों में 41 लोग काल का शिकार हो गए थे। ऐसे-ऐसे कई हादसे हैं, जिन्होंने हिमाचल को गहरे और कभी न भरने वाले जख्म दिए हैं। 
Last Updated : Jun 23, 2019, 8:57 AM IST
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