किन्नौर: जनजातीय जिला किन्नौर(tribal district kinnaur) सेब की पैदावार(apple production) और अलग-अलग किस्मों के लिए दुनियाभर में मशहूर है. किन्नौर में सेब की कई किस्में होती हैं. किन्नौर में सेब की जो पारंपरिक किस्में होती हैं उनमें रॉयल, गोल्डन, रिचर्ड और रेड है, लेकिन जिले के एक बागवान ने सेब की बागवानी की परिभाषा ही बदल डाली है. अब सेब पेड़ की डालियों के अलावा जमीन के नीचे भी उगाया जा रहा है.
किन्नौर जिले(kinnaur district) के पुरबनी गांव से संबंध रखने वाले पेशे से वकील सत्यजीत नेगी ने अपने गांव में ग्राउंड एप्पल(भूमिगत सेब) तैयार कर बागवानी के क्षेत्र में बहुत बड़ा बदलाव लाया है. सत्यजीत नेगी ने ईटीवी भारत(etv bharat) को जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने अपने खेतों में आलू की भांति दिखने वाले ग्राउंड एप्पल(ground apple) को तैयार करने के लिए कड़ी मेहनत की है. वर्ष 2015 के आसपास ग्राउंड एप्पल को तैयार करने की कवायद शुरू किया था और 2016 के आसपास उन्हें इस काम में सफलता हासिल हुई थी.
सत्यजीत नेगी(satyajit negi) का कहना है कि ग्राउंड एप्पल की बागवानी अमेरिका के कुछ हिस्सों में की जाती है. इसकी बागवानी के लिए उन्हें एक नेपाली मूल के व्यक्ति ने जानकारी दी थी. वे कहते हैं कि ग्राउंड एप्पल को तैयार होने में करीबन 8 महीनों का वक्त लगता है. ग्राउंड एप्पल सामान्य फल की तरह नहीं है. यह कंदमूल(root vegetable) जैसा दिखता है. इसका स्वाद लाजवाब है. यह पौष्टिकता से भरपूर है.
ग्राउंड एप्पल को 5,000 फीट की ऊंचाई या इससे ऊपर उगाया जा सकता है. विशेषज्ञों के मुताबिक कंद का स्वाद मीठे सेब की तरह रसीला होता है. इसमें इनुलिन के रूप में कार्बोहाइड्रेट्स (carbohydrates) मौजूद होता है. यह टाइप-2 मधुमेह रोगियों(diabetic patient) के खानपान के अनुकूल होता है.
किन्नौर जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्र में ग्राउंड एप्पल को तैयार करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है. आलू की भांति(like a potato) दिखने वाला ग्राउंड एप्पल वाकई में बेहद स्वाद के साथ लोगों के जीवन में आर्थिक रूप से मजबूती व बीमारियों को जड़ से दूर करने में सहायक सिद्ध होगा. इसका प्रयोग सब्जी के तौर पर भी किया जाता है. इस फल से जैम, जूस और चटनी भी बनाई जाती है.
सत्यजीत नेगी ने बताया कि प्रदेश के पूर्व राज्यपाल आचार्य देवव्रत(former governor acharya devvrat) से भी उन्होंने ग्राउंड एप्पल के प्रोत्साहन को लेकर मुलाकात की थी. वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह(former chief minister late virbhadra singh) से भी इस विषय पर काफी चर्चाएं की थी. प्रदेश में अभी भी ग्राउंड एप्पल की बागवानी तेज गति से आगे नहीं बढ़ी है. यदि सरकार ग्राउंड एप्पल की बागवानी पर ध्यान देती है तो भूमिगत सेब की बागवानी में क्रांति ला सकता है.
सत्यजीत नेगी का कहना है कि यह फल बिल्कुल ऑर्गेनिक तरीके से(organic farming) तैयार किया जाता है. रासायनिक उर्वरकों(chemical fertilizers) का प्रयोग भी नहीं होता है. जीरो बजट खेती(zero budget farming) की परिभाषा में यह सटीक भी बैठता है. आने वाले समय में ग्राउंड एप्पल में कम मेहनत व अधिक लाभ देखने को मिलेगा.
हिमाचल में सौ साल का सफर है सेब उत्पादन का
हिमाचल में सेब उत्पादन को सौ वर्ष से अधिक का समय हो चुका है. इस दौरान प्रदेश ने कई बदलाव देखे हैं. मौसम में भी और पैदावार में भी. पहले सेब की परंपरागत किस्म रॉयल का बोलबाला था. आजकल विदेशी किस्मों की धूम मची है. किस्मों ने भी नए रंग-रूप देखें हैं तो मौसम ने भी बदलाव के कई चरण देख लिए हैं. यदि हिमाचल प्रदेश में 1980 से 1990 के दौरान के समय पर नजर डालें तो राज्य में 3600 फीट तक की ऊंचाई वाले इलाकों में भी सेब की अच्छी पैदावार होती थी. अब मौसम में बदलाव है और उक्त ऊंचाई वाले इलाकों का तापमान बढ़ने से यहां सेब का उत्पादन प्रभावित हुआ है. ये अलग बात है कि ऐसे इलाकों में अब अपेक्षाकृत कम चिलिंग आवर्स की जरूरत वाली नई किस्में पैदा की जा रही हैं.
हाई बेल्ट की तरफ एप्पल प्रोडक्शन के शिफ्ट होने का कारण बर्फ का कम गिरना है. आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 1981 से वर्ष 1985 के बीच हिमाचल प्रदेश में 827.38 सेटीमीटर तक बर्फ गिरी थी. वहीं, साल 2011-2012 में यह बर्फबारी कम होकर केवल 82.8 सेंटीमीटर रह गई. हिमाचल के गर्म जलवायु वाले जिला बिलासपुर में एक प्रगतिशील बागवान हरिमन ने गर्म जलवायु में भी सेब उगा कर वैज्ञानकों को हैरान कर दिया है. सेब पैदा करने के लिए कम से कम 1200 से 1600 चिलिंग आवर्स जरूरी है. यानी तापमान में काफी ठंडक होनी चाहिए, लेकिन हरिमन ने गर्म इलाके में भी सेब पैदा कर दिखाया है. हरिमन शर्मा बिलासपुर के पनियाला गांव में अपनी नर्सरी में सेब पर अनुसंधान करने के लिए जाने जाते हैं. उनकी खोज को वैज्ञानिक समुदाय भी हैरानी से देखता है.
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