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ओल्ड टैक्स रिजीम या नई कर व्यवस्था क्या है बेस्ट, कितनी बार कर सकते हैं स्विच? जानें - OLD TAX REGIME

सैलरी पाने वाले और बिजनेस प्रोफेशनल्स सालाना पुरानी और नई कर व्यवस्था के बीच किसी एक को चुन सकते हैं.

Tax Regime
ओल्ड टैक्स रिजीम या नई कर व्यवस्था क्या है बेस्ट (Getty Images)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 30, 2025, 3:26 PM IST

नई दिल्ली: वर्तमान में, दो कर व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं. एक ओल्ड टैक्स रिजीम और दूसरी नई कर व्यवस्था.आयकर विभाग लोगों को किसी विशेष वित्तीय वर्ष के लिए अपनी पसंदीदा आयकर व्यवस्था चुनने की अनुमति देता है, जिसमें व्यक्ति के पेशे या टैक्स रेगूलेशन में उल्लिखित स्पेसिफिक क्राइटेरिया के आधार पर स्विच करने की अनुमति होती है.

हालांकि, टैक्सपेयर्स अक्सर अपने लिए उपयुक्त आयकर व्यवस्था चुनते वक्त दुविधा में रहते हैं. ऐसे में अगर आप भी पुरानी और नई रिजीम में आना चाहते हैं तो अब आप आसानी ने पुराने से नए टैक्स रिजीम में स्वीच कर सकते हैं. पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था के बीच स्विच करने के लिए आपको कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं.

सही कर व्यवस्था चुनें
उचित कर व्यवस्था चुनना एक महत्वपूर्ण निर्णय है. इसके लिए आपको अपनी वित्तीय परिस्थितियों और उद्देश्यों का मूल्यांकन करना होगा. ब्रेक-ईवन प्वाइंट, जिस पर दोनों व्यवस्थांए तुलनीय लाभ प्रदान करती हैं, आय के स्तर के आधार पर अलग होती है.

पुरानी व्यवस्था 80C, हाउस रेंट अलाउंस (HRA) और लीव ट्रैवल अलाउंस (LTA) जैसी श्रेणियों के तहत कई कटौती और छूट प्रदान करती है, जो योग्य व्यय वाले लोगों के लिए फायदेमंद हो सकती है. अगर आपने टैक्स-सेविंग साधनों में निवेश किया है, तो पारंपरिक व्यवस्था अधिक फायदेमंद साबित हो सकती है.

इसके विपरीत, नई व्यवस्था एक सरल कर संरचना प्रदान करती है, लेकिन इसके लिए सावधानीपूर्वक वित्तीय नियोजन की आवश्यकता होती है, क्योंकि कर-बचत निवेश अनुकूल परिणाम नहीं दे सकते हैं.

आप अपनी कर व्यवस्था कितनी बार बदल सकते हैं?
आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115BAC, जो नए टैक्स रिजीम से संबंधित है. यह उन लोगों को हर वित्तीय वर्ष में अपनी पसंदीदा कर व्यवस्था चुनने की अनुमति देती है, जिनकी वार्षिक बिजनेस इनकम शुन्य होती है. वहीं, सैलरी पाने वाले और बिजनेस प्रोफेशनल्स सालाना पुरानी और नई कर व्यवस्था के बीच किसी एक को चुन सकते हैं.

दूसरी ओर जो लोग इन श्रेणियों में नहीं आते हैं, वे अपनी लाइफ में केवल एक बार पुरानी और नई व्यवस्था के बीच स्विच कर सकते हैं, जबकि वेतनभोगियों के पास हर साल नई और पुरानी टैक्स रिजीम के बीच स्विच करने की सुविधा होती है.

जिन टैक्सपेयर्स ने पूरे साल के लिए नई टीडीएस व्यवस्था को चुना है, वे अपना आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल करते समय आसानी से अपनी पसंदीदा कर व्यवस्था बदल सकते हैं. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने आकलन वर्ष 2024-25 के लिए आयकर रिटर्न फॉर्म में संशोधन किया है.

आईटीआर फॉर्म 1 में, करदाताओं को अपनी पसंदीदा कर व्यवस्था चुनने का विकल्प दिया गया है, जिससे उन्हें अपने कर दायित्वों पर अधिक अधिकार प्राप्त होता है.

यह भी पढ़ें- 8वें वेतन आयोग में LDC और सीनियर क्लर्क की सैलरी में कितना हो सकता है इजाफा? जानें

नई दिल्ली: वर्तमान में, दो कर व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं. एक ओल्ड टैक्स रिजीम और दूसरी नई कर व्यवस्था.आयकर विभाग लोगों को किसी विशेष वित्तीय वर्ष के लिए अपनी पसंदीदा आयकर व्यवस्था चुनने की अनुमति देता है, जिसमें व्यक्ति के पेशे या टैक्स रेगूलेशन में उल्लिखित स्पेसिफिक क्राइटेरिया के आधार पर स्विच करने की अनुमति होती है.

हालांकि, टैक्सपेयर्स अक्सर अपने लिए उपयुक्त आयकर व्यवस्था चुनते वक्त दुविधा में रहते हैं. ऐसे में अगर आप भी पुरानी और नई रिजीम में आना चाहते हैं तो अब आप आसानी ने पुराने से नए टैक्स रिजीम में स्वीच कर सकते हैं. पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था के बीच स्विच करने के लिए आपको कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं.

सही कर व्यवस्था चुनें
उचित कर व्यवस्था चुनना एक महत्वपूर्ण निर्णय है. इसके लिए आपको अपनी वित्तीय परिस्थितियों और उद्देश्यों का मूल्यांकन करना होगा. ब्रेक-ईवन प्वाइंट, जिस पर दोनों व्यवस्थांए तुलनीय लाभ प्रदान करती हैं, आय के स्तर के आधार पर अलग होती है.

पुरानी व्यवस्था 80C, हाउस रेंट अलाउंस (HRA) और लीव ट्रैवल अलाउंस (LTA) जैसी श्रेणियों के तहत कई कटौती और छूट प्रदान करती है, जो योग्य व्यय वाले लोगों के लिए फायदेमंद हो सकती है. अगर आपने टैक्स-सेविंग साधनों में निवेश किया है, तो पारंपरिक व्यवस्था अधिक फायदेमंद साबित हो सकती है.

इसके विपरीत, नई व्यवस्था एक सरल कर संरचना प्रदान करती है, लेकिन इसके लिए सावधानीपूर्वक वित्तीय नियोजन की आवश्यकता होती है, क्योंकि कर-बचत निवेश अनुकूल परिणाम नहीं दे सकते हैं.

आप अपनी कर व्यवस्था कितनी बार बदल सकते हैं?
आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115BAC, जो नए टैक्स रिजीम से संबंधित है. यह उन लोगों को हर वित्तीय वर्ष में अपनी पसंदीदा कर व्यवस्था चुनने की अनुमति देती है, जिनकी वार्षिक बिजनेस इनकम शुन्य होती है. वहीं, सैलरी पाने वाले और बिजनेस प्रोफेशनल्स सालाना पुरानी और नई कर व्यवस्था के बीच किसी एक को चुन सकते हैं.

दूसरी ओर जो लोग इन श्रेणियों में नहीं आते हैं, वे अपनी लाइफ में केवल एक बार पुरानी और नई व्यवस्था के बीच स्विच कर सकते हैं, जबकि वेतनभोगियों के पास हर साल नई और पुरानी टैक्स रिजीम के बीच स्विच करने की सुविधा होती है.

जिन टैक्सपेयर्स ने पूरे साल के लिए नई टीडीएस व्यवस्था को चुना है, वे अपना आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल करते समय आसानी से अपनी पसंदीदा कर व्यवस्था बदल सकते हैं. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने आकलन वर्ष 2024-25 के लिए आयकर रिटर्न फॉर्म में संशोधन किया है.

आईटीआर फॉर्म 1 में, करदाताओं को अपनी पसंदीदा कर व्यवस्था चुनने का विकल्प दिया गया है, जिससे उन्हें अपने कर दायित्वों पर अधिक अधिकार प्राप्त होता है.

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