किन्नौर: जनजातीय जिला किन्नौर के पूह खंड के तहत ठंगी गांव में इन दिनों माघ मेले की शुरुआत हो चुकी है. बारिश हो या फिर बर्फबारी ये मेला पूरे आठ दिन चलता है. आस्था और विश्वास के इस मेले में ग्रामीण पूरी धरती के अच्छे की कामना करते हैं.
बता दें कि ठंगी माघ मेले की शुरुआत से लेकर आठवें दिन के अंत तक अलग-अलग तौर तरीकों व पारम्परिक रूप से मेले को मनाया जाता है. इसमें ठंगी के स्थानीय देवता रापुक शंकरस की पालकी उनके मंदिर से ठंगी स्कूल के प्रांगण में लेकर जाते हैं.
मेले में गांव की महिलाएं व पुरुष पूरी पारम्परिक वेशभूषा व आभूषण पहनकर देवता रापुक शंकरस के समक्ष हर दिन अलग-अलग तरीके से मेला करते हैं. वहीं, कुछ पुरुष मुखौटे पहनकर भी इस मेले में प्रवेश करते हैं जिसे मेले की शोभा मानी जाती है और इन मुखौटे वाले व्यक्तियों को देवता रापुक शंकरस द्वारा मेले में प्रमुख रूप से प्रथम श्रेणी में रखा जाता है.
मान्यताओं के अनुसार देवता रापुक शंकरस के गुर के रूप भी इन मुखौटों के रूप जैसे माने जाते हैं इसलिए इनका महत्व अधिक माना जाता है. माघ मेले में स्थानीय लोग व बौद्ध भिक्षु मिलकर पूजा पाठ व सुख समृद्धि की कामना करते हैं. इस पूजा पाठ में पहाड़ों से लाई गयी जड़ी-बूटी वाले धूप को जलाया जाता है, जिससे पूरे गांव में इसकी खुशबू फैल जाती है जिसे धुपांग शेननू भी कहते हैं.
साथ ही माघ मेले में देवता रापुक शंकरस के समक्ष फसलों के सूखे दाने और पेड़ पौधों की पूजा करते हैं जिसे स्थानीय बोली में रूम पजाम कहते हैं. रूम पजाम से आने वाले समय में सभी फसलों अच्छी होती हैं और हरियाली रहती है. इस मेले के दौरान बाहर से आए सभी मेहमानों के लिए घर में किन्नौरी खानपान का खास ध्यान रखा जाता है. इस दौरान किन्नौरी अंगूरी (मदिरा) ओगला, फाफड़ा के चिल्टे, चूल फाण्टिंग, सूखे मेवों की थालियां परोसी जाती हैं और पूरे आठ दिन लोगों की खूब सेवा की जाती है.
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