किन्नौर: देश और दुनिया में हिमाचल पर्यटन और सेब उत्पादन (Apple Production in Himachal) के लिए जाना जाता है. यही वजह है कि हिमाचल को एप्पल बाउल भी कहते हैं, लेकिन हिमाचल में सिर्फ सेब या फिर स्टोन फ्रूट की ही पैदावर नहीं होती. यहां के किसान कई ऐसी चीजों का उत्पादन कर रहे हैं जिससे उनकी आय में इजाफा हो. काला जीरा एक ऐसी ही फसल है जो आज किन्नौर के कुछ गांवों की आर्थिकी का सबसे बड़ा जरिया है.
काला जीरा- स्वाद में हल्की सी कड़वाहट वाला काला जीरा या काली जीरी एक मसाला है. तासीर में गर्म होने के कारण सर्दियों में इसका इस्तेमाल ज्यादा भी होता है और फायदेमंद भी. इसे खाने में इस्तेमाल करने के अलावा औषधि की तरह भी इस्तेमाल किया जाता है. आम जीरे के मुकाबले इसकी महक अधिक होती है. काला जीरा खाने का जायका बढ़ाने के काम तो आता ही है. इसका उपयोग नमकीन चाय में मसाले के तौर पर भी किया जाता है.
किन्नौर में काला जीरा- जो काला जीरा कभी जंगलों में उगता था उसे किसान आज खेतों में उगा रहे हैं. किन्नौर के कुछ गांवों में काला जीरा किसानों (black cumin cultivation in kinnaur) की आर्थिकी मजबूत करने में संजीवनी का काम कर रहा है. हिमाचल के लाहौल स्पीति जिले में भी कुछ किसान इसकी खेती कर रहे हैं. काला जीरा किन्नौर के शौंग, ब्रुआ, सांगला गांव में उगाया जा रहा है. इस इलाके में ये अत्यधिक लोकप्रिय नकदी फसल है. बाजार में इसका अच्छा खासा भाव मिल रहा है. काला जीरा उगाने वाले किसानों का कहना है कि इसकी फसल तैयार होने में थोड़ा समय लगता है. करीब दो साल तक फसल की देखभाल करनी पड़ती है.
किसानों को मलाल- दरअसल साल 2013 में पड़ोसी राज्य उत्तराखंड सरकार ने जीरे के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए चमोली क्षेत्र के किसानों को प्रोत्साहित किया और जरूरी मदद दी, लेकिन हिमाचल प्रदेश के किसानों (farmers of Himachal Pradesh) को सरकार इस तरह का बढ़ावा नहीं दे रही है. इस उदासीन रवैये के कारण ही हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में इस फसल के दिलचस्पी कम दिख रही है. कुछ लोग इसकी खेती कर रहे हैं, लेकिन काले जीरे की मार्केटिंग और तकनीकी ज्ञान के अभाव के कारण मुनाफा उतना नहीं हो पाता जितना होना चाहिए. कई बार तो नुकसान भी होता है.
उत्पादन और बिक्री- किन्नौर के गांव में हर वर्ष 150 से 200 क्विंटल जीरे का उत्पादन हो रहा है. ये जीरा 1500 रुपये से 2000 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकता है. जुलाई का महीना शुरू होते ही इसके थोक खरीददार गांव में ही पहुंचने लगते हैं. जो उन्हें डेढ से दो लाख रुपये प्रति क्विंटल तक दाम दे रहे हैं, लेकिन अगर सही तकनीक और सरकार की तरफ से इसकी खेती को बढ़ावा मिले तो काला जीरा हिमाचल के किसानों की किस्मत बदल सकता है.
क्या कहते हैं किसान- किन्नौर जिले के शोंग गांव के अभिषेक नेगी और नरेंद्र नेगी पिछले कई वर्षों से जीरे की खेती (farmers of Kinnaur) कर रहे हैं. उनका कहना है कि काले जीरे की किन्नौर जिले या हिमाचल के अलावा बाहरी राज्यों में भी काफी मांग है. काला जीरा वैसे तो जंगलों में प्राकृतिक रूप से तैयार होता है, लेकिन शोंग गांव के ग्रामीणों ने जंगलों से जीरे के बीज को अपने खेतों में बीजकर तैयार किया है. इसके बीज को बीजने के बाद शुरू के तीन साल फसल तैयार नहीं होती. तीन वर्ष के बाद इसकी फसल तैयार होती है और उसे बाजार तक पहुंचाया जाता है.
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सबसे खास है माको जीरा- जीरे की कई किस्में होती हैं जैसे मोटा जीरा, भूरा जीरा, हल्का सफेद जीरा, लेकिन सबसे उच्चतम क्वालिटी का माको जीरा होता है, जिसे काला जीरा भी कहते हैं. किन्नौर में यही काला जीरा कई किसानों की किस्मत रोशन कर रहा है. इस जीरे के दाने अन्य किस्म से पतले या बारीक और काले होते हैं, अन्य किस्मों से इसकी सुगंध भी अधिक होती है. खाने में इस जीरे की एक चुटकी जायका बदल देती है. इसकी खेती करने वाले किसान मानते हैं कि इसकी महक इतनी तेज होती है कि करीब 30 मीटर दूर से भी इसकी खुशबू आने लगती है. ये माको जीरा देश के गिने चुने हिस्सों में ही पाया जाता है और यही वजह है कि ये अन्य किस्म के जीरे से महंगा होता है.
दवा भी है काला जीरा- किन्नौर के आयुर्वेदिक चिकित्सालय (ayurvedic hospital in kinnaur) के डॉक्टर विद्या सागर नेगी बताते हैं कि काले जीरे को आयुर्वेद में भी औषधि माना जाता है और इसका प्रयोग कई आयुर्वेदिक दवाओं में प्रयोग होता है. कई रोगों की दवा है काला जीरा. पहली नजर में भले ये एक मसाले जैसा प्रतीत हो, लेकिन ये काला जीरा कई रोगों की दवा (benefits of black cumin) भी है. इसके कई फायदे हैं.
- काला जीरा और शाही जीरा इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है
- पेट दर्द में चुटकी भर काला जीरा गर्म पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है.
- जीरे को पानी में उबालकर सुबह खाली पेट पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं.
- इसे पेट का वायु विकार और बुखार में भी इसका इस्तेमाल होता है.
- पेट की बीमारियों के अलावा त्वचा के कई रोगों को समाप्त करने में भी ये कारगर सिद्ध होता है
- खाने में जायका बढ़ाने के अलावा तासीर में गर्म होने के कारण सर्दियों में फायदेमंद होता है.
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