धर्मशाला: कहते हैं जहां चाह वहां राह है. इसे शाहपुर विधानसभा के रैत की रहने वाली सुदर्शना देवी ने सच साबित कर दिखाया है. सुदर्शना चीड़ की पत्तियों से राखी बना रही है, जिसे लोग काफी पसंद भी कर रहे हैं.
दरअसल, बचपन में घटी एक घटना में सुदर्शना का हाथ जल गया था. इसके बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और कुछ अलग करने की ठानी. अब वे चीड़ की पत्तियों से कारीगरी करती हैं और इसी में आगे बढ़कर उन्होंने अपनी पहचान भी बनाई है.
पीएम मोदी ने कुछ दिन पहले वॉकल फॉर लॉकल की बात कही थी, जिसके तहत स्थानीय उत्पादों को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है. वहीं, 3 अगस्त को रक्षा बंधन का त्यौहार है. इसलिए सुदर्शना ने चीड़ की पत्तियों से राखी बनाने की सोची.
सुदर्शना देवी बताती हैं कि उन्होंने बुजुर्गों को बग्गड़ के घास और खजूर के पत्तों से काम करते देखा था. इसलिए उन्होंने चीड़ के पत्तों और धागों से कुछ बनाने का सोचा. अब रक्षा बंधन के लिए इनसे राखियां बना रही हैं.
सुदर्शना देवी ने कहा कि सोशल मीडिया पर चीड़ के पत्तियों से बनी राखियों के फोटो डाले थे. इसके चलते बाहरी राज्यों से भी राखियों के ऑर्डर आए हैं. अब तक बाहरी राज्यों में 150 से 200 राखियां ऑर्डर पर भेजी जा चुकी हैं. उन्होंने कहा कि प्रशासन की ओर से ट्रेनिंग प्रोग्राम भी दिए गए थे. इनमें पूरे हिमाचल में 5 से 6 हजार महिलाओं को प्रशिक्षत किया गया. अब ये महिलाएं भी काम कर रही हैं.
बता दें कि सुदर्शना चीड़ की पत्तियों से चपाती बॉक्स, फूलदान, टेबल मैट, पेन बॉक्स, ट्रे आदि घरेलू उत्पाद बना चुकी हैं. इन उत्पादों को बनाने को लेकर सुदर्शना हजारों महिलाओं को प्रशिक्षण भी दे चुकी हैं. सुदर्शना देवी ने सरकार से मांग की है कि इन प्रॉडक्ट की मार्केटिंग की बेहतर व्यवस्था करें, जिससे इस काम को कर रही महिलाओं को भी अच्छे दाम मिल सकें.
सुदर्शना देवी चीड़ की पत्तियों पर साल 2007 से काम कर रहीं हैं. सबसे पहले इन पत्तियों से टोकरी बनाकर शुरूआत की थी. काम करने पर नए-नए आइडिया आना शुरू हो गए. इसके बाद अलग-अलग प्रॉडक्ट बनाने शुरू किए. वर्ष 2007 से 2017 तक इन उत्पादों पर ज्यादा रिस्पांस नहीं मिला, लेकिन वर्ष 2018 में स्टार्ट अप हिमाचल की ओर से आईआईटी मंडी में हीरो ऑफ स्टेट अवार्ड मिला. इसमें उन्हें एक लाख रुपये मिले थे. इसके बाद ये उत्पाद सरकार की नजर में आए और सरकार उन्हें सहयोग करने लगी.
सुदर्शना बताती हैं कि चीड़ की पत्तियों के प्रॉडक्ट में बरसात में फंगस आने की समस्या रहती थी. इस बारे में उन्होंने अवॉर्ड लेते समय पूछा था. फिलहाल, इस समय वे सीएसआईआर पालमपुर में एक साल की ट्रेनिंग ले रही हैं, जिसमें से 9 महीने बीत चुके हैं और 3 महीने बाकी हैं.
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