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रहस्य: महादेव ने स्थापित किया था ये शिवलिंग! गड़रिये को भेड़ों के साथ बना दिया था पत्थर

ईटीवी भारत अपनी खास सीरीज रहस्य में आपकों अबतक कई रहस्यमयी स्थानों से परिचत करवा चुका है, इसी कड़ी में हम आपकों एक ऐसी जगह ले चलेगें जहां भोले नाथ ने साधाना की थी. यहां मौजूद गुफा अपने भीतर कई अनसुलझे रहस्यों को छिपाए बैठे हैं. धर्मशाला से 50 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा स्थान  त्रिलोकपुर नाम से विख्यात है. यहां सड़क किनारे भगवान शिव का गुफा नुमा एक प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर के अंदर छत  से  विचित्र जटाएं लटकती हैं, जिन्हें देख ऐसा लगता है कि मानो छत से सांप लटक रहे हों.

special story on trilokpur temple kangra
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Published : Feb 3, 2020, 9:11 AM IST

Updated : Feb 3, 2020, 11:49 AM IST

कांगड़ा: ईटीवी भारत अपनी खास सीरीज रहस्य में आपकों अबतक कई रहस्यमयी स्थानों से परिचत करवा चुका है, इसी कड़ी में हम आपकों एक ऐसी जगह ले चलेगें जहां भोले नाथ ने साधाना की थी. यहां मौजूद गुफा अपने भीतर कई अनसुलझे रहस्यों को छिपाए बैठे हैं.

धर्मशाला से 50 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा स्थान त्रिलोकपुर नाम से विख्यात है. यहां सड़क किनारे भगवान शिव का गुफा नुमा एक प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर के अंदर छत से विचित्र जटाएं लटकती हैं, जिन्हें देख ऐसा लगता है कि मानो छत से सांप लटक रहे हों.

यहां मौजूद शिवलिंग किसी इंसान या देवता ने नहीं बल्कि खुद महादेव ने स्थापित किया है. गुफा के भीतर बने इस मंदिर में प्रवेश करते ही सिर अपने आप शिव प्रतिमा के समक्ष श्रद्धा से झुक जाता है. मंदिर के बाहर एक छोटा सा नाला बहता है. जिसमें कई विशाल शिलाएं हैं. इन पत्थरों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानों बहुत सी भेड़े इस नाले में लेटी हों.

रहस्य

मंदिर को लेकर मान्यता है कि सतयुग में एक बार भगवान शिव इस गुफा के भीतर तपस्या में लीन थे. जिस स्थान पर भोले नाथ बैठे थे, वहां दो सोने के स्तंभ थे और उनके आसपास सोना बिखरा पड़ा था. भगवान शिव के सिर पर सैकड़ों मुख वाला सर्प छत्र की भांति उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रहा था. तभी एक गडरिया अपनी भेड़ों को चराता हुआ उधर से निकला. उसने गुफा में देखा कि एक साधु तपस्या में लीन हैं और यह भी देखा की साधु के चारो ओर सोना बिखरा पड़ा है.

बेशुमार सोने को देखकर गडरिये के मन में लालच आ गया और उसने स्वर्ण स्तंभों से सोना निकालने का प्रयास किया, इसी दौरान तपस्या में लीन भगवान शिव का ध्यान भंग हो गया और उन्होंने क्रोध में आकर गड़रिये को पत्थर होने का श्राप दे दिया. जो आज भी उसी मुद्रा में गुफा में मौजूद है. भगवान के श्राप ने आस-पास की हर वस्तु को पत्थर का बना दिया. गुफा में मौजूद सारा सोना भी पत्थर का हो गया.

भगवान भोलेनाथ की इस तपोस्थली आकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह गुफा अपने भीतर कई रहस्य संजोए हुए है, पत्थर का सर्प आज भी निरंतर महादेव का जलाभिषेक करता रहता है. लोगों की इस मंदिर पर अटूट आस्था और श्रद्धा है. शायद यही कारण है जो यहां आने वाले लोगों को हर क्षण भगवान शिव के होने की अनुभूति होती है.

ये भी पढ़ें: इस गुफा में चट्टानों से शिवलिंग पर गिरता था दूध! भस्मासुर से बचने के लिए शिवजी ने ली थी शरण

कांगड़ा: ईटीवी भारत अपनी खास सीरीज रहस्य में आपकों अबतक कई रहस्यमयी स्थानों से परिचत करवा चुका है, इसी कड़ी में हम आपकों एक ऐसी जगह ले चलेगें जहां भोले नाथ ने साधाना की थी. यहां मौजूद गुफा अपने भीतर कई अनसुलझे रहस्यों को छिपाए बैठे हैं.

धर्मशाला से 50 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा स्थान त्रिलोकपुर नाम से विख्यात है. यहां सड़क किनारे भगवान शिव का गुफा नुमा एक प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर के अंदर छत से विचित्र जटाएं लटकती हैं, जिन्हें देख ऐसा लगता है कि मानो छत से सांप लटक रहे हों.

यहां मौजूद शिवलिंग किसी इंसान या देवता ने नहीं बल्कि खुद महादेव ने स्थापित किया है. गुफा के भीतर बने इस मंदिर में प्रवेश करते ही सिर अपने आप शिव प्रतिमा के समक्ष श्रद्धा से झुक जाता है. मंदिर के बाहर एक छोटा सा नाला बहता है. जिसमें कई विशाल शिलाएं हैं. इन पत्थरों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानों बहुत सी भेड़े इस नाले में लेटी हों.

रहस्य

मंदिर को लेकर मान्यता है कि सतयुग में एक बार भगवान शिव इस गुफा के भीतर तपस्या में लीन थे. जिस स्थान पर भोले नाथ बैठे थे, वहां दो सोने के स्तंभ थे और उनके आसपास सोना बिखरा पड़ा था. भगवान शिव के सिर पर सैकड़ों मुख वाला सर्प छत्र की भांति उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रहा था. तभी एक गडरिया अपनी भेड़ों को चराता हुआ उधर से निकला. उसने गुफा में देखा कि एक साधु तपस्या में लीन हैं और यह भी देखा की साधु के चारो ओर सोना बिखरा पड़ा है.

बेशुमार सोने को देखकर गडरिये के मन में लालच आ गया और उसने स्वर्ण स्तंभों से सोना निकालने का प्रयास किया, इसी दौरान तपस्या में लीन भगवान शिव का ध्यान भंग हो गया और उन्होंने क्रोध में आकर गड़रिये को पत्थर होने का श्राप दे दिया. जो आज भी उसी मुद्रा में गुफा में मौजूद है. भगवान के श्राप ने आस-पास की हर वस्तु को पत्थर का बना दिया. गुफा में मौजूद सारा सोना भी पत्थर का हो गया.

भगवान भोलेनाथ की इस तपोस्थली आकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह गुफा अपने भीतर कई रहस्य संजोए हुए है, पत्थर का सर्प आज भी निरंतर महादेव का जलाभिषेक करता रहता है. लोगों की इस मंदिर पर अटूट आस्था और श्रद्धा है. शायद यही कारण है जो यहां आने वाले लोगों को हर क्षण भगवान शिव के होने की अनुभूति होती है.

ये भी पढ़ें: इस गुफा में चट्टानों से शिवलिंग पर गिरता था दूध! भस्मासुर से बचने के लिए शिवजी ने ली थी शरण

Intro:हिमाचल की पर्वत श्रृंखलाओं पर बने देवी देवताओं के मंदिर ही हिमाचल को देवभूमि का दर्जा दिलाते हैं। जिला कांगड़ा में धर्मशाला से 50 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा स्थान है त्रिलोकपुर। इस छोटे लेकिन महत्वपूर्ण स्थान पर सड़क किनारे भगवान शिव का गुफा नुमा एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर के अंदर छत से ऐसी विचित्र जटाएं लटकती हैं, जिन्हें देख ऐसा लगता है मानो छत से सांप लटक रहे हों। वहीं शिव प्रतिमा के दोनों और पत्थर के स्तंभ यह प्रमाण देते हैं की शिवलिंग प्राकृतिक है।


Body:गुफा के आकार में बने इस मंदिर में प्रवेश करते ही सिर अपने आप शिव प्रतिमा के समक्ष श्रद्धा से झुक जाता है। मंदिर के बाहर एक छोटा सा नाला बहता है जिसमें कई विशाल शिलाएं अजीब सी आकृतियों जैसी लगती हैं। इन्हें देख कर ऐसा लगता है मानो बहुत सी भेड़े इस नाले में लेटी हों। मंदिर को लेकर मान्यता है कि सतयुग में एक बार भगवान शिव इस गुफा में एकांत पाकर तपस्या में लीन थे। जिस स्थान पर भोले शंकर बैठे थे वहां दो सोने के स्तंभ थे। उनके आसपास सोना बिखरा पड़ा था। भगवान शिव के सिर पर सैकड़ों मुख वाला सर्प छत्र की भांति उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रहा था। तभी एक गडरिया अपनी भेड़ों को चराता हुआ उधर से निकला। उसने गुफा में देखा कि साधु तपस्या में लीन है और यह भी देखा की साधु के चारो और सोना बिखरा पड़ा है। उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा साधु तपस्या में लीन है क्यों ना सोना उठा कर ले जाऊं। गड़रिये ने आसपास बिखरा सोना समेट लिया लेकिन उसको अधिक लालच आया और उसने सोचा की साधु के साथ खड़े दो स्वर्ण स्तंभों से भी सोना निकाल लूं।


Conclusion:इसी दौरान तपस्या में लीन भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई और उन्होंने क्रोध में आकर गड़रिये को पत्थर होने का श्राप दे दिया। जो आज भी उसी मुद्रा में गुफा में मौजूद है। लोगों का मानना है कि भगवान शिव के ऊपर लटकने वाले सांप के मुख से उस समय दूध टपकता था जो आज पानी बनकर टपकता है। मंदिर में बनी इन आकृतियों और प्राकृतिक रूप से विराजमान शिवलिंग को देखना रोजाना सैकड़ों लोग मंदिर में आते हैं।
विसुअल
शिव मंदिर त्रिलोकपुर।
बाइट
त्रिलोकपुर मंदिर पुजारी
बलबीर शर्मा
Last Updated : Feb 3, 2020, 11:49 AM IST
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