कांगड़ा: शारदीय नवरात्र का आज चौथा दिन है.आज माता कुष्मांडा की आराधना की जा रही है. हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े जिले में स्थित मां श्री बज्रेश्वरी माता का मंदिर जहां नवरात्रि में देश के कौने-कौने से पहुंचकर माथा टेककर मां से खुशहाली का वरदान मांग रहे है. बता दें कि मां के दरबार को कांगड़ा देवी मंदिर या नगरकोट की देवी के नाम से भी जाना जाता है. इसलिए इसे नगर कोट धाम भी कहा जाता है.(Maa Brajeshwari Devi Kangra)
मां बज्रेश्वरी पिंडी के रूप में मौजूद : मुख्य क्षेत्र के अंदर देवी बज्रेश्वरी पिंडी के रूप में मौजूद हैं. मंदिर में भैरव का एक छोटा मंदिर भी है. मुख्य मंदिर के सामने धायनु भगत की एक मूर्ति भी मौजूद है. उसने अकबर के समय देवी को अपना सिर चढ़ाया था. मंदिर के उत्सवों की बात की जाए तो यहां मकर संक्रांति का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. किंवदंती के अनुरास युद्ध में महिषासुर को मारने के बाद देवी को कुछ चोटें आई. उन चोटों को दूर करने के लिए देवी ने नागरकोट में अपने शरीर पर मक्खन लगाया था. इस प्रकार इस दिन को चिह्नित करने के लिएसदेवी की पिंडी को मक्खन से ढका जाता और मंदिर में एक सप्ताह तक उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है. वहीं, चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा गुप्त नवरात्रों में भी भंक्तों का तांता मां के दरबार में लगता है.
उत्तर भारत की 9 देवियां : उत्तर भारत की 9 देवियों में मां कांगड़ा देवी शुमार है.अन्य देवियों की बात की जाए तो माता वैष्णो देवी से लेकर सहारनपुर की शाकंभरी देवी तक शामिल है. पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी सती के पिता दक्षेस्वर द्वारा किए यज्ञ कुंड में उन्हे न बुलाने पर उन्होने अपना और भगवान शिव का अपमान समझा और उसी हवन कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए. तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड के चक्कर लगा रहे थे. उसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया और उनके ऊग धरती पर जगह-जगह गिरे. जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां एक शक्तिपीठ बन गया. उसमें से सती की बायां वक्षस्थल इस स्थान पर गिरा, जिसे मां ब्रजेश्वरी या कांगड़ा माई के नाम से पूजा और जाना जाता है.
पांडवों ने किया मंदिर का निर्माण: कहा जाता है कि मूल मंदिर महाभारत के समय पौराणिक पांडवों द्वारा बनाया गया था. कहते है कि एक दिन पांडवों ने देवी दुर्गा को अपने सपने में देखा , जिसमें उन्होंने बताया था कि वह नगरकोट गांव में स्थित है और यदि वह खुद को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो उन्हें उस क्षेत्र में उनके लिए मंदिर बनाना होगा नहीं तो वे नष्ट हो जाएंगे. उसी रात उन्होंने नगरकोट गांव में एक शानदार मंदिर बनवाया. 1905 में मंदिर को एक शक्तिशाली भूकंप ने नष्ट कर दिया था, लेकिन बाद में सरकार ने मंदिर का पुनर्निर्माण किया.
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