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'छोटा हरिद्वार' बना कांगड़ा का कालेश्वर महादेव मंदिर, अस्थि विसर्जन करने पहुंच रहे लोग

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Published : Jun 11, 2020, 2:08 PM IST

कोरोना महामारी ने लोगों के जीवन को बदलकर रख दिया है. कोरोना संकट के बीच लोगों को एक राज्य से दूसरे राज्य में आवाजाही की मनाही थी. ऐसे में लोग अपने परिजनों की अस्थियां विसर्जित करने के लिए कांगड़ा जिला के कालेश्वर महादेव मंदिर पहुंच रहे हैं.

People doing bone immersion by reaching Kaleshwar Mahadev temple in Kangda for not reaching Haridrar
कालेश्वर महादेव मंदिर

ज्वालामुखी: कोरोना महामारी ने लोगों के जीवन को बदलकर रख दिया है. कोरोना संकट के बीच लोगों को एक राज्य से दूसरे राज्य में आवाजाही की मनाही थी. ऐसे में कांगड़ा जिले का कालेश्वर महादेव मंदिर, हरिद्वार के बाद अस्थि विसर्जन का सबसे बड़ा स्थान बन गया.

अपने परिजनों की अस्थियां हरिद्वार में विसर्जित करने में असमर्थ लोग अब ब्यास नदीं में अस्थि विसर्जन कर नम आंखों से विदाई दे रहे हैं. कालेश्वर महादेव मंदिर पांडव काल में निर्मित हुआ. अपने अज्ञात वास के दौरान पांडव यहां पर ठहरे थे. अपने आराध्य देव भगवान शिव की पिंडी से सुसज्जित मंदिर का निर्माण करवाया था.

रोचक बात यह है कि भगवान शिव की पिंडी जमीन के नीचे है जो लगातार धंस रही है, बताया जाता है कि अज्ञातवास के दौरान जब पांचों पांडव कुम्भ मेले के लिए यहां से नहीं निकल आए तो पांच तीर मारकर पहाड़ से जल धारा निकाली.

वीडियो.

जहां से पांच तीर्थों का पानी स्फुटित हुआ. इसे पंचतीर्थी के नाम से भी जाना जाता है. आम दिनों के साथ-साथ विशेष धार्मिक दिनों में उत्तर भारत के कई हिस्सों से लोग यहां स्नान के लिए पहुंचते हैं.

सभी जिलों से आ रहे लोग

मंदिर के महंत स्वामी विश्वानन्द ने बताया कि इस स्थान को हरिद्वार से एक जों भर ऊंचा माना जाता है. कालीनाथ कालेश्वर मंदिर की पिंडी जमीन के भीतर है. पिंडी के ऊपर गाय के पैर का निशान है. जिस कारण इसे काली नाथ के नाम से भी पुकारते हैं.

कालीनाथ मंदिर की आधी परिक्रमा करके लोग अपने मृत स्वजनों को साथ लगती ब्यास नदी के किनारे अंतिम संस्कार करते हैं. लॉकडाउन के कारण लोगों को हरिद्वार जाने में परेशानी हो रही है ऐसे में अस्थि विसर्जन के लिए आजकल यहां पर मंडी, कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर, ऊना, कुल्लू व चंबा से भी लोग पहुंच रहे हैं.

हमीरपुर से लेकर पहुंचे पिता की अस्थियां

हमीरपुर के अवाहदेवी से आए प्रकाश कुमार ने बताया वह भी अपने पिता की अस्थियां लेकर यहां विसर्जित करने आए हैं. उनका परिवार हरिद्वार इस कार्य के लिए जाता रहा है, लेकिन लॉकडाउन के कारण हरिद्वार पहुंचना ना के बराबर दिखा, तो कालेश्वर महादेव में ही अस्थियां विसर्जन करने पहुंचे.

लोगों के अस्थि विसर्जन से पूर्व पूजा पाठ करने वाले राजेश शर्मा ने बताया कि लॉकडाउन के बाद आज दिन तक वो 300 के करीब लोगों की अस्थियां विधिवत रूप से प्रवाहित करवा चुके हैं. कोरोना महामारी के कारण लोगों को आस थी कि परिस्थितियां सुधरेंगी तथा वे हरिद्वार जा सकेंगे.

अब लॉकडाउन खुलने के बाद भी जब वो लोग वहां जा नहीं सके तो यहीं आकर विसर्जन कर रहे हैं. राजेश के अनुसार अस्थि विसर्जन के वाद लोग पंचतीर्थी में स्नान करके अपने घरों को जा रहे हैं. मान्यता है कि पंचतीर्थी में पांच तीर्थो की जलधारा सैंकड़ों वर्षों से बह रही है.

'छोटा हरिद्वार' बना कांगड़ा का कालेश्वर महादेव मंदिर, अस्थि विसर्जन करने पहुंच रहे लोग

ज्वालामुखी: कोरोना महामारी ने लोगों के जीवन को बदलकर रख दिया है. कोरोना संकट के बीच लोगों को एक राज्य से दूसरे राज्य में आवाजाही की मनाही थी. ऐसे में कांगड़ा जिले का कालेश्वर महादेव मंदिर, हरिद्वार के बाद अस्थि विसर्जन का सबसे बड़ा स्थान बन गया.

अपने परिजनों की अस्थियां हरिद्वार में विसर्जित करने में असमर्थ लोग अब ब्यास नदीं में अस्थि विसर्जन कर नम आंखों से विदाई दे रहे हैं. कालेश्वर महादेव मंदिर पांडव काल में निर्मित हुआ. अपने अज्ञात वास के दौरान पांडव यहां पर ठहरे थे. अपने आराध्य देव भगवान शिव की पिंडी से सुसज्जित मंदिर का निर्माण करवाया था.

रोचक बात यह है कि भगवान शिव की पिंडी जमीन के नीचे है जो लगातार धंस रही है, बताया जाता है कि अज्ञातवास के दौरान जब पांचों पांडव कुम्भ मेले के लिए यहां से नहीं निकल आए तो पांच तीर मारकर पहाड़ से जल धारा निकाली.

वीडियो.

जहां से पांच तीर्थों का पानी स्फुटित हुआ. इसे पंचतीर्थी के नाम से भी जाना जाता है. आम दिनों के साथ-साथ विशेष धार्मिक दिनों में उत्तर भारत के कई हिस्सों से लोग यहां स्नान के लिए पहुंचते हैं.

सभी जिलों से आ रहे लोग

मंदिर के महंत स्वामी विश्वानन्द ने बताया कि इस स्थान को हरिद्वार से एक जों भर ऊंचा माना जाता है. कालीनाथ कालेश्वर मंदिर की पिंडी जमीन के भीतर है. पिंडी के ऊपर गाय के पैर का निशान है. जिस कारण इसे काली नाथ के नाम से भी पुकारते हैं.

कालीनाथ मंदिर की आधी परिक्रमा करके लोग अपने मृत स्वजनों को साथ लगती ब्यास नदी के किनारे अंतिम संस्कार करते हैं. लॉकडाउन के कारण लोगों को हरिद्वार जाने में परेशानी हो रही है ऐसे में अस्थि विसर्जन के लिए आजकल यहां पर मंडी, कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर, ऊना, कुल्लू व चंबा से भी लोग पहुंच रहे हैं.

हमीरपुर से लेकर पहुंचे पिता की अस्थियां

हमीरपुर के अवाहदेवी से आए प्रकाश कुमार ने बताया वह भी अपने पिता की अस्थियां लेकर यहां विसर्जित करने आए हैं. उनका परिवार हरिद्वार इस कार्य के लिए जाता रहा है, लेकिन लॉकडाउन के कारण हरिद्वार पहुंचना ना के बराबर दिखा, तो कालेश्वर महादेव में ही अस्थियां विसर्जन करने पहुंचे.

लोगों के अस्थि विसर्जन से पूर्व पूजा पाठ करने वाले राजेश शर्मा ने बताया कि लॉकडाउन के बाद आज दिन तक वो 300 के करीब लोगों की अस्थियां विधिवत रूप से प्रवाहित करवा चुके हैं. कोरोना महामारी के कारण लोगों को आस थी कि परिस्थितियां सुधरेंगी तथा वे हरिद्वार जा सकेंगे.

अब लॉकडाउन खुलने के बाद भी जब वो लोग वहां जा नहीं सके तो यहीं आकर विसर्जन कर रहे हैं. राजेश के अनुसार अस्थि विसर्जन के वाद लोग पंचतीर्थी में स्नान करके अपने घरों को जा रहे हैं. मान्यता है कि पंचतीर्थी में पांच तीर्थो की जलधारा सैंकड़ों वर्षों से बह रही है.

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